सरकार ने मंगलवार को बताया कि 2024-25 में भारत से ऑर्गेनिक उत्पादों का निर्यात 35 प्रतिशत बढ़कर $665.96 मिलियन (करीब ₹5,710 करोड़) हो गया, जो पिछले साल $494.80 मिलियन था। मात्रा के लिहाज से यह वृद्धि 41 प्रतिशत रही, जो 0.26 मिलियन टन से बढ़कर 0.37 मिलियन टन हुई. यह वृद्धि मुख्य रूप से ऑर्गेनिक अनाज (चावल), मोटे अनाज, चाय, मसाले, औषधीय पौधों, तिलहन और प्रोसेस्ड फूड के निर्यात में तेज़ी के कारण हुई है.
ऑर्गेनिक चावल और मोटे अनाज का निर्यात $86.66 मिलियन से बढ़कर $161.67 मिलियन, प्रोसेस्ड फूड $129.61 मिलियन से $154.01 मिलियन, औषधीय पौधों से जुड़े उत्पाद $72.42 मिलियन से $88.57 मिलियन, चाय $34.11 मिलियन से $45.13 मिलियन, मसाले $35.93 मिलियन से $45.42 मिलियन और तिलहन $25.64 मिलियन से $36.20 मिलियन पहुंच गया. हालांकि सरकार ने इसे भारतीय ऑर्गेनिक उत्पादों की वैश्विक मांग में वृद्धि बताया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ‘ऑर्गेनिक इंडिया’ ब्रांड को दोबारा मज़बूत करने के लिए प्रमाणन एजेंसियों की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों के बीच कई कदम उठाने की ज़रूरत है.
जनवरी 2025 में ऑर्गेनिक उत्पादों के मानकों में पारदर्शिता और वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिए ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्शन (NPOP)’ के आठवें संस्करण की शुरुआत की गई. इस मौके पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि भारत अगले तीन वर्षों में ऑर्गेनिक उत्पादों का निर्यात ₹20,000 करोड़ तक बढ़ा सकता है. उन्होंने बताया कि सहयोग, कृषि और वाणिज्य मंत्रालय मिलकर किसानों और एफपीओ को प्रशिक्षण, विपणन, पैकेजिंग और निर्यात सुविधा के जरिए ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने में जुटे हैं.
गोयल ने कहा कि वैश्विक स्तर पर ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग करीब ₹1 लाख करोड़ है और यह ₹10 लाख करोड़ तक पहुंच सकती है. भारत के पास सबसे अधिक ऑर्गेनिक किसान हैं और ऑर्गेनिक खेती के क्षेत्रफल में दूसरा स्थान है। थोड़े प्रयासों से भारत वैश्विक ऑर्गेनिक खेती में अग्रणी बन सकता है. सरकार ने NPOP पोर्टल और ट्रेसनेट 2.0 वेबसाइट को नए रूप में लॉन्च किया है, जिससे ऑर्गेनिक कारोबारियों को संचालन में आसानी और बेहतर पारदर्शिता मिलेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के साथ चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में सरकार को NPOP की पुनः मान्यता पर जोर देना चाहिए, ताकि भारतीय ऑर्गेनिक उत्पादों को बिना अतिरिक्त लागत के अमेरिकी बाजार में भेजा जा सके, क्योंकि अभी केवल अमेरिका की मान्यता प्राप्त एजेंसियों से ही प्रमाणन स्वीकार होता है.