वैश्विक ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए ने शुक्रवार, 15 नवंबर को भारत में अपने निवेश को 20% तक बढ़ा दिया, जबकि निकट भविष्य में भारतीय बाजारों में प्रवेश करने के लिए संभावित विदेशी फंड प्रवाह के मद्देनजर चीन में अपने निवेश को कम कर दिया. इसकी वजह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद बीजिंग की अर्थव्यवस्था को लेकर निवेशकों में चिताओं का पैदा होना है. इसके अलावा उसने इसके लिए भारत की स्थिर आर्थिक स्थितियों और मजबूत विदेशी प्रवाह का हवाला दिया है, जो फिर से प्रवेश करने के लिए तैयार है.
यह बदलाव चीन की नई आर्थिक चुनौतियों के बीच हुआ है. क्योंकि, सीएलएसए ने एक नोट में कहा है कि ‘Trump 2.0 व्यापार युद्ध को बढ़ावा दे रहा है. ठीक उसी समय जब निर्यात चीन के विकास में सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन गया है.’ यह नोट अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फिर से चुने जाने का जिक्र करता है. इस निर्णय ने सीएलएसए के भारत से चीन में निवेश के पहले के आवंटन को उलट दिया है. यह उलटफेर ऐसे समय में हुआ है, जब भारत में विदेशी निवेशकों का लगातार बहिर्गमन हो रहा है, सितंबर की कमजोर आय और बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच एफपीआई (फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट) ने निवेश वापस खींच लिया है. विदेशी संस्थानों ने अक्टूबर से अब तक भारतीय इक्विटी में 1.14 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध बिक्री की है. ‘पाउंसिंग टाइगर, प्रीवेरिकेटिंग ड्रैगन’ शीर्षक वाले नोट में वैश्विक ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर वापसी और हाल के महीनों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली 1.44 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने के बाद अपना रुख बदल दिया.
सीएलएसए ने क्या कहा?
अपने नोट में सीएलएसए ने कहा, यूएस यील्ड्स और महंगाई पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) के लिए राहत की गुंजाइश को कम करती हैं. हमें लगता है कि इन चिंताओं के कारण ऑफशोर निवेशकों द्वारा बायर्स स्ट्राइक हो सकती है, जिन्होंने सितंबर की शुरुआत में पीबीओसी द्वारा आर्थिक राहत पैकेज जारी होने के बाद चीन में निवेश किया था, इसलिए हमने अक्टूबर की शुरुआत में अपने रणनीतिक आवंटन को उलट दिया है और चीन पर बेंचमार्क और भारत पर 20 प्रतिशत ओवरवेट पर वापस आ गए. Global Brokerage Firm का मानना है कि ट्रंप 2.0 में चीन और अमेरिका में ट्रेड वार में वृद्धि होगी. काफी हद तक इसका लाभ भारत को होगा.
सबसे कम जोखिम वाला बाजार
वैश्विक ब्रोकरेज ने कहा, ‘भारत ट्रंप की प्रतिकूल व्यापार नीति के लिए सबसे कम जोखिम वाले क्षेत्रीय बाजारों में से एक है. इसके अलावा, जब तक ऊर्जा की कीमतें स्थिर रहती हैं, उस समय तक भारत मजबूत होते अमेरिकी डॉलर के दौर में विदेशी मुद्रा स्थिरता का एक अपेक्षाकृत अच्छा उदाहरण हो सकता है.’ सीएलएसए के नोट में आगे कहा गया है कि अक्टूबर से भारत में विदेशी निवेशकों की ओर से मजबूत बिकवाली देखी गई है, जबकि इस वर्ष हमने जिन निवेशकों से मुलाकात की, वे विशेष रूप से भारतीय अंडरएक्सपोजर को समाप्त करने के लिए इस तरह के खरीद अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे. घरेलू मांग मजबूत बनी हुई है, जो विदेशी निवेशकों की घबराहट को संतुलित कर रही है. हालांकि, वैल्यूएशन अभी अधिक है लेकिन, अब पहले की अपेक्षा कम हो गए हैं.
अक्टूबर 2023 में CLSA ने भारत को महत्वपूर्ण रूप से अपग्रेड किया था, जो 40 प्रतिशत अंडरवेट से बढ़कर 20 प्रतिशत ओवरवेट हो गया था. फर्म ने उस समय अपग्रेड के लिए अनुकूल क्रेडिट वातावरण, डिस्काउंटेड रूसी क्रूड के कारण कम ऊर्जा लागत और मजबूत जीडीपी विकास संभावनाओं को प्रमुख कारणों के रूप में उद्धृत किया था. हालांकि, अक्टूबर 2024 तक CLSA ने अपनी रणनीति को समायोजित किया, भारत के ओवरवेट को घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया, जबकि ड्रैगन राष्ट्र में बाजार में सुधार के शुरुआती संकेतों के बीच चीन को भी जोड़ दिया.
ये भी पढ़ें :- काशी विश्वनाथ मंदिर में CM योगी ने की पूजा, हॉस्पिटल पहुंचकर जाना पूर्व विधायक श्यामदेव राय चौधरी का हाल