आईसीआरए ईएसजी रेटिंग्स द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत ने कॉर्पोरेट जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर छठा स्थान हासिल किया है. रिपोर्ट के अनुसार, 127 भारतीय कंपनियां अब नेट-जीरो लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और ये कंपनियां मुख्य रूप से कपड़ा, सॉफ्टवेयर, और फार्मास्यूटिकल्स जैसे गैर-कठिन-से-कम करने वाले क्षेत्रों से संबंधित हैं.
आईसीआरए ईएसजी रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 127 कंपनियों में से लगभग 7 प्रतिशत उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों जैसे निर्माण सामग्री और खनन से संबंधित हैं, जबकि शेष कंपनियां वस्त्र, सॉफ्टवेयर और सेवाओं जैसे कम से मध्यम कार्बन फुटप्रिंट वाले क्षेत्रों से आती हैं. रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं वाली कंपनियों के कारण ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की ओर एक बड़ा बदलाव हुआ है, जिससे उत्सर्जन में कमी आई है.
SBTi क्या है ?
SBTi एक स्वैच्छिक लक्ष्य-निर्धारण पहल है, जिसके तहत कंपनियां विज्ञान-आधारित लक्ष्यों को अपनाने और उन्हें स्वतंत्र रूप से सत्यापित कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त कर सकती हैं. SBTi द्वारा क्षेत्र-विशिष्ट दिशानिर्देशों के आधार पर ये लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं. हालांकि भारत छठे स्थान पर है, लेकिन यूनाइटेड किंगडम SBTi नेट-जीरो लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध कंपनियों की संख्या में वैश्विक स्तर पर अग्रणी है. दूसरी ओर, चीन, जो कि सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ऐसी प्रतिबद्ध कंपनियों की संख्या में पीछे है.
ICRA ESG रेटिंग्स की प्रमुख रेटिंग अधिकारी, शीटल शरद ने कहा, “हमारे निष्कर्ष यह रेखांकित करते हैं कि नेट-जीरो लक्ष्यों की प्रतिबद्धता कितनी महत्वपूर्ण है और SBTi के साथ तालमेल बिठाना जलवायु रणनीतियों को मजबूत करने, पारदर्शिता को बढ़ावा देने और जवाबदेही को प्रोत्साहित करने का एक अच्छा तरीका है.
इस तरह की पहल और मानक भारत की जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में एक प्रमुख भूमिका को मान्यता देते हुए, विकासशील देशों में अवसंरचना-आधारित वृद्धि को ध्यान में रखते हुए लक्ष्यों की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करें. इससे अधिक कंपनियों को इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा.”
ऊर्जा, सीमेंट और खनन क्षेत्र का विश्लेषण
रिपोर्ट में 25 कंपनियों का विश्लेषण करते हुए पाया गया कि कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन अभी भी प्रमुख है, लेकिन ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है. सीमेंट क्षेत्र में, क्लिंकर उत्पादन के कारण उच्च उत्सर्जन को वैकल्पिक ईंधन और कार्बन कैप्चर तकनीकों के माध्यम से कम किया जा रहा है. वहीं, धातु और खनन क्षेत्र में उत्सर्जन स्तर में विविधता देखी गई है, जहां नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं वाली कंपनियां अधिक स्थायी प्रथाओं को अपना रही हैं.
ICRA के विश्लेषण के अनुसार, पिछले छह वर्षों में केवल कुछ ही कंपनियां अपने कुल उत्सर्जन को 11% तक कम करने में सफल रही हैं, हालांकि उन्होंने उत्सर्जन की तीव्रता को स्थिर या घटाने में कुछ हद तक प्रगति की है. रिपोर्ट के मुताबिक, ऊर्जा, सीमेंट और ऊर्जा क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों में से 10% से भी कम कंपनियां (जो भारत के कुल उत्सर्जन का लगभग 55% योगदान देती हैं) SBTi के माध्यम से नेट-जीरो लक्ष्यों की प्रतिबद्धता जताई है. रिपोर्ट में कहा गया कि, “इससे संकेत मिलता है कि लक्ष्य निर्धारण करने वाली कंपनियों की संख्या बढ़ने के बावजूद, यह उच्च उत्सर्जन वाली कंपनियों के पूर्ण रूप से शामिल न होने के कारण पर्याप्त नहीं हो सकता.”
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