‘Make in India’ की ताकत से सशक्त हो रहा भारत का रक्षा क्षेत्र, वैश्विक अस्थिरता के बीच बना रहा है नई मिसाल

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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कोविड महामारी और वैश्विक स्तर पर जारी भू-राजनीतिक तनावों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमजोरियों को उजागर कर दिया है. देरी, लागत में बढ़ोतरी और संचालन में रुकावटें अब आम हो गई हैं. रक्षा क्षेत्र में, जहां हर पल अहम होता है, ऐसे में संचालन को लचीला और अनुकूल बनाना अब रणनीतिक आवश्यकता बन चुका है. रक्षा निर्माण से जुड़ी कंपनियां अब अपने संचालन में डिजिटल परिवर्तन, स्थानीयकरण, कुशल श्रमबल और एडवांस अनुसंधान पर ज़ोर देकर अपने तंत्र को और मजबूत बना रही हैं ताकि किसी भी बाधा के समय वे तेजी से प्रतिक्रिया दे सकें.

आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्निर्माण

अब तक रक्षा कंपनियां लंबी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भर थीं, जिसमें ‘जस्ट इन टाइम’ मॉडल अपनाया जाता था. लेकिन वैश्विक संकटों और व्यापार प्रतिबंधों ने इस प्रणाली की सीमाएं उजागर कर दीं. इसके जवाब में अब कंपनियां “जस्ट इन केस” मॉडल को अपना रही हैं, जिसमें विकल्प तैयार होते हैं और ज़रूरी संसाधनों की बफरिंग की जाती है. ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने इस बदलाव को मज़बूती दी है. अब कई भारतीय कंपनियां न केवल फाइनल असेंबली, बल्कि आवश्यक कंपोनेंट्स और सब-सिस्टम्स का निर्माण भी देश में ही कर रही हैं, जिससे आत्मनिर्भरता और रणनीतिक सुरक्षा दोनों को बल मिला है.

डिजिटल टेक्नोलॉजी का बढ़ता उपयोग

अब रक्षा उत्पादन में डिजिटलीकरण एक नई रीढ़ बन चुका है. डिजिटल ट्विन, AI आधारित पूर्वानुमान तकनीकें और रियल-टाइम एनालिटिक्स जैसी आधुनिक टेक्नोलॉजीज़ उत्पादन को बेहतर बनाने, रुकावटों की पूर्व-जानकारी देने और संचालन को लगातार चालू रखने में अहम भूमिका निभा रही हैं. वर्चुअल सिमुलेशन तकनीक से कंपनियां बिना किसी असल रुकावट के संकट के हालात में अपनी तैयारी को परख सकती हैं. साथ ही, IoT सेंसर की मदद से मशीनों की स्थिति की निगरानी होती है, जिससे दक्षता और सुरक्षा दोनों में सुधार होता है.

साइबर सुरक्षा: डिजिटल युग की अनिवार्यता

जैसे-जैसे रक्षा कंपनियां डिजिटल हो रही हैं, वैसे-वैसे साइबर हमलों का खतरा भी बढ़ रहा है. अब यह सिर्फ IT विभाग की चिंता नहीं, बल्कि पूरे बिजनेस का संवेदनशील मामला है. कंपनियां अब एन्क्रिप्शन, फायरवॉल, इंट्रूज़न डिटेक्शन जैसे सुरक्षा उपाय अपना रही हैं. साथ ही, AI और मशीन लर्निंग आधारित सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग कर रही हैं जो रियल-टाइम में ख़तरों की पहचान और निवारण कर सकती हैं. नियमित साइबर ऑडिट और पेन टेस्टिंग अब अनिवार्य प्रोटोकॉल बन गए हैं.

भविष्य के लिए तैयार हो रहा है श्रमबल

तकनीक जितनी ज़रूरी है, उतना ही जरूरी है कि मानव संसाधन भी समय के अनुसार ढलें. कंपनियां अब कर्मचारियों को डिजिटल स्किल्स, सिस्टम थिंकिंग और साइबर जागरूकता से लैस कर रही हैं. इससे कर्मचारी नई तकनीकों को जल्दी अपना पा रहे हैं. विभिन्न कार्यों में दक्ष कर्मचारियों का विकास संचालन को अधिक लचीला बनाता है. साथ ही, ITIs, यूनिवर्सिटीज़ और कौशल केंद्रों से सहयोग लेकर कंपनियां युवा प्रतिभाओं को तैयार कर रही हैं.

निजी-सार्वजनिक साझेदारियों की भूमिका

रक्षा उत्पादन कंपनियां अब मजबूत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स की ओर बढ़ रही हैं. इससे रिस्क शेयरिंग, इनोवेशन और स्थायी सरकारी समर्थन सुनिश्चित हो रहा है. इन साझेदारियों से कंपनियां अत्याधुनिक तकनीकों तक पहुंच बना रही हैं और दीर्घकालिक ऑर्डर भी सुरक्षित कर रही हैं.
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