प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के कारण भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर के निर्यात में इजाफा हो रहा है, साथ ही वैश्विक निवेशकों की भी देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रुचि बढ़ रही है. इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (आईईएसए) के अध्यक्ष, अशोक चंदल ने बुधवार को न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में यह बयान दिया. उन्होंने कहा कि पीएलआई से न केवल स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा मिला है, बल्कि भारत वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य भी बन गया है. चंदाल के मुताबिक, सरकार की नीतियों ने उन चुनौतियों को दूर किया है, जिनकी वजह से भारत पहले चीन और वियतनाम जैसे स्थापित विनिर्माण केंद्रों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहा था.
‘मेक इन इंडिया’ और पीएलआई जैसी योजनाओं ने इलेक्ट्रॉनिक निर्माण को लागत-प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर्स, ऑटोमोटिव और फार्मास्यूटिकल्स सहित विभिन्न क्षेत्रों में पीएलआई योजना के तहत भुगतान जारी करना शुरू कर दिया है. इससे यह साबित होता है कि सरकार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर रही है, जिससे आगे और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा. भारत के इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में सबसे बड़ा योगदान एप्पल का है, जिसने देश में अपने निर्माण कार्यों को तेजी से बढ़ाया है.
चंदाल ने कहा कि एप्पल के अनुबंध निर्माता, जैसे कि फॉक्सकॉन और पेगाट्रॉन, जो अब आंशिक रूप से टाटा ग्रुप के अधीन हैं—ने भारत को उच्च-तकनीकी विनिर्माण के क्षेत्र में एक मजबूत पहचान दिलाई है. “एप्पल के लिए निर्माण कार्य करना भारत की गुणवत्ता और तकनीकी क्षमताओं का प्रमाण है. इसने भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक बाजार में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है,” उन्होंने कहा. एप्पल अब भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में 50% से अधिक का योगदान देता है.
हालांकि, स्मार्टफोन भारत के इलेक्ट्रॉनिक निर्यात के लिए मुख्य कारक रहे हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण वृद्धि देखी जा रही है. चंदाल के अनुसार, ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन, मेडिकल डिवाइसेज़, औद्योगिक IoT, और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में निर्यात की अपार संभावनाएं हैं. “भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार 2030 तक $500 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जिससे निर्यात के असीम अवसर पैदा होंगे. हालांकि, घरेलू मूल्य संवर्धन (value addition) को बढ़ाना एक प्रमुख प्राथमिकता बनी हुई है,” उन्होंने कहा.
चंदाल ने भारत की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने और अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया. उनका मानना है कि यदि भारत अपनी विनिर्माण क्षमताओं को और सुदृढ़ करता है और स्थानीय स्तर पर अधिक मूल्यवर्धन करता है, तो वह वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन सकता है. उन्होंने कहा “सरकार की दीर्घकालिक नीतियां और वैश्विक निवेशकों का बढ़ता भरोसा भारत को विश्वस्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं,”.