Unlocking Potential: पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री की ओर भारत के बढ़ते कदम

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण के तहत, देश को वैश्विक विनिर्माण शक्ति बनाने की दिशा में पेट्रोकेमिकल उद्योग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पेट्रोकेमिकल्स के उत्पादन के जरिए भारत को आर्थिक विकास की गति तेज़ करने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की संभावना है.

भारत का पेट्रोकेमिकल उद्योग लगभग $220 बिलियन का है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 6 प्रतिशत का योगदान करता है और 5 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देता है. इसके अलावा, भारत में प्रति व्यक्ति पेट्रोकेमिकल्स की खपत करीब 12 किलोग्राम है, जो वैश्विक औसत का एक तिहाई है, जो इस क्षेत्र में बड़े निवेश और विकास की संभावना को दर्शाता है.

भारत पेट्रोकेमिकल्स और रसायनों का शुद्ध आयातक है, और देश को लगभग 45 प्रतिशत पेट्रोकेमिकल इंटरमीडिएट्स के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. इसकी सालाना आयात राशि लगभग $88.6 बिलियन है, जो भारत के सबसे बड़े आयात खंडों में से दूसरा है. हालांकि, $124 बिलियन के निवेश की योजना के साथ, इस निर्भरता को महत्वपूर्ण रूप से कम करने का लक्ष्य रखा गया है.

वैश्विक स्तर पर कुछ प्रमुख रासायनिक निर्माण ब्लॉकों में अत्यधिक क्षमता मौजूद है, जैसे एथिलीन, प्रोपिलीन, ब्यूटाडीन, बेंजीन आदि, और अधिकांश अतिरिक्त क्षमता चीन में है. यह वैश्विक अधिकता और कुछ देशों में सप्लाई में स्थिरता की कमी भारत में सस्ते आयातों को बढ़ा सकती है, जो भारतीय निर्माताओं की प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकते हैं.

दिक्‍कतों के संभावित समाधान

  • शुल्क संरचना में बदलाव: भारत में कुछ पेट्रोकेमिकल उत्पादों पर शुल्क संरचना में विसंगतियां हैं, जैसे PET (पेट बोतल ग्रेड चिप्स) और PVC (पॉलीविनाइल क्लोराइड). इन उत्पादों पर शुल्क को उचित स्तर पर लाने से घरेलू उत्पादकों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल सकता है. उदाहरण स्वरूप, PVC पर शुल्क को फिर से 10 प्रतिशत तक बढ़ाने से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, जो निर्माण क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
  • उत्पादन-लिंक प्रोत्साहन: भारत में पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में नवाचार, निवेश और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन-लिंक प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का सहारा लिया जा सकता है. इस योजना के तहत वित्तीय प्रोत्साहन देकर, उत्पादकों को विशेष रसायन, उच्च-मानक रसायनिक निर्माण में मदद मिल सकती है, जिससे उद्योग में आत्मनिर्भरता और उत्पादकता में वृद्धि होगी.
  • अनुसंधान और विकास: भारत को पेट्रोकेमिकल्स के क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान पर निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है. नवीनतम उत्पादन प्रौद्योगिकियों और वैकल्पिक कच्चे माल के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान को बढ़ावा देने से उत्पादन लागत में कमी और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है. इस क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और उच्च-प्रदर्शन गणना (HPC) जैसी नई तकनीकों का उपयोग भी महत्वपूर्ण हो सकता है.
  • बुनियादी ढांचे का सुधार: पेट्रोकेमिकल क्षेत्र के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है, जिसमें उत्पादन, भंडारण और परिवहन की क्षमता को बढ़ाने के लिए पेट्रोलियम, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स निवेश क्षेत्रों (PCPIRs) और प्लास्टिक पार्क जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जा रहा है. इससे उत्पादन लागत में कमी आएगी और समय की बचत होगी.

भारत के पेट्रोकेमिकल उद्योग का भविष्य उज्जवल है, बशर्ते कि घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाने और प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने के लिए उचित कदम उठाए जाएं. इन सुधारों से भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में और अधिक सशक्त होगा और वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को मजबूत करेगा.

भारत का पेट्रोकेमिकल क्षेत्र निवेश और सुधारों के जरिए अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मजबूत कर सकता है. यदि नीति, बुनियादी ढांचे और अनुसंधान में सही कदम उठाए जाते हैं, तो भारत न केवल आयात निर्भरता को कम कर सकता है, बल्कि वैश्विक पेट्रोकेमिकल हब बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है.

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