HCः इलाहाबाद HC ने भ्रष्टाचार एवं रिश्वत लेने के आरोपी दरोगा की बर्खास्तगी को किया निरस्त

Ved Prakash Sharma
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-8 (2) (बी) के प्राविधानों के अन्तर्गत पर्याप्त साक्ष्य के आधार हो तो भी, बगैर विभागीय कार्यवाही के पुलिस कर्मी की बर्खास्तगी अवैध है एवं नियम तथा कानून के विरूद्ध है. कोर्ट ने रिश्वत लेने के आरोप में बर्खास्त दरोगा को बहाल करने का आदेश पारित किया है तथा बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अतिप्रिया गौतम को सुनकर पारित किया.

इस मामले का तथ्य यह है कि दरोगा गुलाब सिंह पुलिस स्टेशन ईकोटेक, ग्रेटर नोएडा जनपद गौतमबुद्धनगर में उपनिरीक्षक के पद पर कार्यरत था. याची पर यह आरोप था कि उसके द्वारा मु.अ.सं. 22/2019 धारा 380 आई.पी.सी. की विवेचना की जा रही थी एवं विवेचना के दौरान प्रकाश में आए अभियुक्त राजीव सरदाना से 27 जनवरी 2023 को सार्वजनिक रूप से खुले स्थान पर रूपए 4 लाख की रिश्वत लेते हुए उसे गिरफ्तार किया गया. उक्त के सम्बंध में उपनिरीक्षक गुलाब सिंह के विरूद्ध थाना सूरजपुर जनपद गौतमबुद्धनगर में मु.अ.सं. 48/2023 धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत केस पंजीकृत कराया गया.

उक्त मुकदमें में दरोगा गुलाबचंद को 27 जनवरी 2023 को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत होने के बाद वह 12 मार्च 2024 को जेल से रिहा हुआ. याची के विरूद्ध 27 जनवरी 2023 को एन्टीकरप्शन टीम द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई एवं उसी दिन याची को को उ.प्र. अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-8 (2) (बी) के प्राविधानों के अन्तर्गत यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया गया कि उसे खुले स्थान पर 4 लाख रूपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया है. जिस कारण इस प्रकरण में किसी जॉच की आवश्यकता नहीं है, एवं उपनिरीक्षक द्वारा इस प्रकार के कृत से जनमानस में पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है.

हाईकोर्ट ने कहा है कि बगैर स्पष्ट कारण बताए कि क्यों विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती एवं सिर्फ इस आधार पर कि याची के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य है, जिससे यह साबित हो रहा है कि याची दोषी है, नियमित विभागीय कार्यवाही के बगैर पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करना गलत है.

याचिका में कहा गया है कि याची के ऊपर बर्खास्तगी आदेश में जो आरोप लगाए गए है, वह बिल्कुल असत्य एवं निराधार है एवं उसे साजिशन अभियुक्त राजीव सरदाना द्वारा षडयंत्र करके एन्टीकरप्शन टीम की मिलीभगत से गलत रिकवरी दिखाई गई है. जबकि याची ने रिश्वत के एवज में 4,00,000 रूपये नहीं लिए है और न ही याची के पास से कोई रिकवरी हुई है.

याची के वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम का कहना था कि उक्त प्रकरण में बगैर विभागीय कार्यवाही किए एवं बगैर नोटिस तथा सुनवाई का अवसर प्रदान किए याची को सेवा से पदच्युत किया गया है, जो कि सर्वोच्च न्यायालय एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रतिपादित किए गए विधि की व्यवस्था के विरूद्ध है.

हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को निरस्त कर दिया है एवं याची को समस्त सेवा लाभ देने के साथ बहाल करने का आदेश पारित किया है.

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