New Delhi: साल 2020 के दिल्ली दंगों में नूरा और नबी मोहम्मद को सजा, लूटपाट और आगजनी में थे शामिल

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

New Delhi: दिल्ली की अदालत ने साल 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में नूर मोहम्मद उर्फ नूरा और नबी मोहम्मद नाम के दो आरोपितों को दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई. दोनों को सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा, जो अपराध किए गए थे, वे नफरत और लालच से प्रेरित थे. अदालत ने नूरा को चार साल की जेल की सजा सुनाई, जबकि नबी मोहम्मद को इस मामले में पहले ही काट चुके सजा को पर्याप्त माना.

कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने नूरा को सजा सुनाते हुए कहा, “दंगों की कार्रवाई नफरत से प्रेरित थी, जबकि डकैती और नकद राशि की लूट लालच से प्रेरित थी.” नूरा और नबी मोहम्मद को खजूरी खास पुलिस स्टेशन में दर्ज 2020 में किए गए एफआईआर में पिछले महीने दोषी ठहराया था. नूरा को एक दंगाई भीड़ का सदस्य होने के लिए दोषी ठहराया गया था, जिसने विभिन्न दुकानों में तोड़फोड़ की और आग लगा दी थी.

उसने कुछ व्यक्तियों को लूट लिया था और धारा-144 का भी उल्लंघन किया था. नबी मोहम्मद को डकैती का भी दोषी ठहराया गया था. दोषी नूर मोहम्मद उर्फ ​​नूरा को कोर्ट ने आईपीसी की धारा 148/427/435/436 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया है. दोषी नूर मोहम्मद उर्फ ​​नूरा को आईपीसी की धारा 392 और 188 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए भी दोषी ठहराया गया है. वहीं, दोषी नबी मोहम्मद को आईपीसी की धारा 411 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है.

ऑपइंडिया के पास मौजूद कोर्ट के फैसले की कॉपी के अनुसार, “नूर मोहम्मद ने 24 फरवरी 2020 को दोपहर 2:30 बजे से 3:00 बजे के बीच चाँद बाग पुलिया के पास एक मीटिंग की. इसका उद्देश्य हिंदू समुदाय के लोगों को नुकसान पहुँचाना था.” कोर्ट ने कहा, “इस मीटिंग का उद्देश्य क्षेत्र की संपत्ति, वाहनों और व्यक्तियों के साथ-साथ हिंदू समुदाय से संबंधित व्यक्तियों को अधिकतम नुकसान पहुँचाना, उनकी दुकानों, घरों और संपत्तियों में आपराधिक अतिक्रमण, बर्बरता, चोरी और आगजनी करना था.”

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “नूर मोहम्मद ने दंगा किया और दिलीप की ऑटो मोबाइल दुकान में तोड़फोड़ की और फिर आग लगा दी. उसका और शिव कुमार का मोबाइल फोन लूट लिया. साथ ही उपरोक्त दुकान में पड़े सामान को भी नुकसान पहुँचाया. अशोक फोम एंड फर्नीचर नाम के दुकान में तोड़फोड़ और आगजनी करते हुए रामदत्त पांडे, मनोज नेगी, सोनू शर्मा, पप्पू और अशोक कुमार की मोटरसाइकिलों में आग लगा दी.  दोषी नूरा सहित यह भीड़ दिल्ली पुलिस द्वारा पारित निषेधाज्ञा (धारा 144) का उल्लंघन करते हुए एकत्र हुई थी.”

दिलचस्प बात यह है कि नूर मोहम्मद को चार वर्ष की सजा सुनाते हुए अदालत ने कहा कि उसकी पृष्ठभूमि से पता चलता है कि वह धार्मिक उन्माद में बह जाने वाला था. लोकमान शाह बनाम स्टेट ऑफ डब्ल्यूबी, (2001) 5 एससीसी 235 के मामले की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि उन्होंने पाया कि नूरा मोहम्मद भी उसी श्रेणी में आता है. फैसले के जिस हिस्से का हवाला दिया गया है, उसमें कहा गया है कि सांप्रदायिक दंगे में, जो लोग शिकार की तलाश में सड़कों पर निकलते हैं, वे लोगों को नहीं जानते.

वे बस धार्मिक उन्माद से ग्रस्त हो जाते हैं. ऐसा करने वाले लोग अधिकतर अशिक्षित होते हैं और पढ़े-लिखे नेताओं के भड़काऊँ भाषणों से प्रभावित हो जाते हैं. इस आधार पर नूरा मोहम्मद को अदालत ने 4 वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई. अदालत ने यह सजा सुनाते हुए कहा, “यहाँ ऊपर की गई चर्चा को ध्यान में रखते हुए, मैंने पाया कि इस मामले में किया गया अपराध कोई हल्का अपराध नहीं है, लेकिन शिक्षा की कमी, भीड़ की भावनाओं का प्रभाव, अशांत जीवन और दिया गया अपराध है तथा दोषी नूरा की पारिवारिक पृष्ठभूमि को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.”

नबी मोहम्मद को पहले ही जेल में बिताई गई सज़ा सुनाई गई थी. नबी को चोरी का मोबाइल रखने का दोषी ठहराया गया था. अदालत ने कहा, “जहाँ तक ​​दोषी नबी मोहम्मद का सवाल है, मुझे लगता है कि इस मामले में मुकदमे का सामना करने और दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में समय बिताने से उसे पर्याप्त सबक मिल गया होगा.”

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