UN: एक बार फिर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए- इंसाफ (पीटीआई) के संस्थापक इमरान खान ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है. पूर्व पीएम ने संविधान में संशोधनों को लागू करने के मौजूदा सरकार के फैसले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र को एक पत्र लिखा है. उनका कहना है कि इस फैसले का उद्देश्य देश में न्यायिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को खतरा पहुंचाना है.
अपने नियोजित संवैधानिक संशोधनों को लागू करने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार जरूरी संख्या जुटाने का प्रयास कर रही है. इसी पर इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा. साथ ही एडवर्ड फिट्जगेराल्ड केसी और तात्याना ईटवेल और जेनिफर रॉबिन्सन के माध्यम से न्यायाधीशों और वकीलों की स्वतंत्रता पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत मार्गरेट सैटरथवेट को एक तत्काल अपील भी दायर की है. दोनों को खान के परिवार द्वारा उनकी ओर से संयुक्त राष्ट्र में भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय वकालत करने का निर्देश दिया गया है.
पूर्व पीएम इमरान खान के अधिवक्ता फिट्जगेराल्ड केसी, ईटवेल और रॉबिन्सन ने दावा किया कि संविधान में किए गए बदलावों का उद्देश्य वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को प्रभावित करना है और इससे देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए मौजूदा सजा को मजबूत किया जाएगा.
पूर्व पीएम पहले भी लिख चुके हैं पत्र
यह पहली बार नहीं है, जब इमरान खान ने पाकिस्तान के घरेलू राजनीतिक मामलों के बारे में किसी अंतरराष्ट्रीय निकाय को पत्र लिखा है. इससे पहले भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से आग्रह किया था कि वह 8 फरवरी के चुनाव का ऑडिट कराए. उन्होंने चुनावों में धांधली होने का आरोप लगाया था.
इमरान खान की यह है मांग
संवैधानिक बदलावों का मकसद न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाना और एक संवैधानिक अदालत का गठन करना शामिल है, जिसका खान और उनकी पार्टी ने कड़ा विरोध किया है. संयुक्त राष्ट्र को लिखे पत्र में खान ने यह कहते हुए चिंता जताई है कि यह कानून, कानून के शासन और पाकिस्तान के लोगों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करता है. अपील में संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत से मामले पर इस्लामाबाद को तत्काल संदेश जारी करने का आग्रह किया गया है.
पूर्व पीएम ने बताया ये खतरा
यूएन को लिखे अपने पत्र में इमरान खान ने कथित तौर पर कहा है कि संवैधानिक संशोधनों से सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र एक नए संघीय संवैधानिक न्यायालय को मिल जाएगा, नए संघीय संवैधानिक न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का चयन एक नई नेशनल असेंबली समिति द्वारा किया जाएगा, जिसकी बैठकें निजी तौर पर होंगी. इससे न्यायिक नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं और इसे न्यायिक स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक जांच को कम करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है.