Bihar Chhath Puja: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत इस साल 17 नवंबर से हो रहा है. हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाई जाती है. छठ पूजा पर देवी षष्ठी यानी छठी मईया की पूजा की जाती है. मान्यता है कि छठ मईया की पूजा करने से सुख-समृद्धि, धन, वैभव, यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है.
महिलाएं संतान की सुखी जीवन के लिए छठ व्रत करती है. वैसे तो छठ महापर्व की धूम पूरे देश में रहती है. लेकिन बिहार में यह महापर्व बहुत प्रसिद्ध है. यहां इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. बिहार में सदियों से छठ पूजा मनाने की परंपरा चली आ रही है. तो चलिए जानते हैं बिहार में छठ पूजा (Bihar Chhath Puja) क्यों सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है.
छठ पूजा का महत्व
बिहार में छठ पूजा का महापर्व सबसे अधिक लोकप्रिय है. यहां 4 दिन तक इस महापर्व की धूम रहती है. चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में नहाय खाय, खरना, डूबते व उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. विशेष तौर पर नि:संतान महिलाओं के लिए छठ पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि छठ पूजा का व्रत रखने से नि:संतान को संतान सुख मिलता है. इसके साथ ही परिवार को खुशहाली का आशीर्वाद मिलता है.
महाभारत काल से है कनेक्शन
वहीं बात करें बिहार की तो यहां छठ पूजा की प्रथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं की मानें तो सूर्यपुत्र कर्ण का संबंध बिहार के भागलपुर से है. कर्ण यहां सच्चे मन से सूर्य देव की उपासना करते थे और पानी में घंटों खड़े रहकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते थे. मान्यता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सप्तमी तिथि को कर्ण सूर्यदेव की विशेष आराधना करते थे. तब से ही यहां छठ पूजा की परंपरा की शुरूआत हुई थी.
द्रौपदी ने किया था छठ
छठ पूजा की एक अन्य कथा पांडव की पत्नी द्रौपदी से जुड़ी हुई है. अज्ञातवास के दौरान पांडव बिहार के इलाकों में काफी दिनों तक रहे थे. कहा जाता है कि मुंगेर के भीमबांध में अज्ञातवास के दौरान भीम छिपकर रहते थे. पौराणिक कथा की मानें तो जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए थे तो द्रौपदी ने पुराने वैभव को वापस पाने के लिए छठ व्रत किया था. सूर्य देव की उपासना के बाद ही धीरे-धीरे अच्छा समय वापस लौटा.
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