Chhath Puja 2023: कौन है छठी मईया, जानिए इनसे जुड़ी पौराणिक कहानियां

Chhath Puja 2023: दिवाली के छह दिन बाद छठ पूजा होती है. हिन्‍दू पंचांग के मुताबिक, छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक माह से शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है, लेकिन षष्ठी और सप्तमी तिथि पर छठी मईया और सूर्य देव की उपासना का विधान है. षष्‍ठी ति‍थि को डूबते सूर्य को अर्घ्‍य देकर यह महापर्व मनाया जाता है. इस बार 17 नवंबर से छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है.

नहाय खाय से शुरू होकर उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने तक यह महापर्व चलता है. चार दिनों का यह त्‍योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. महिलाएं संतान की सुखी जीवन और दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं. मान्यता है कि छठी मैया निःसंतानों की भी झोली भरती हैं. तो आइए जानते हैं कि छठी मैया कौन हैं और इनसे जुड़ी पौराणिक कहानियां क्या है. 

छठी मैया कौन हैं

धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं. इनको सूर्य देव की बहन भी माना जाता हैं. छठ व्रत में षष्ठी मैया की पूजा अराधना की जाती है, इसलिए इस व्रत का नाम छठ पड़ा. पौराणिक कथा के मुताबिक, ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के लिए खुद को दो भागों में बांट दिया. जिसमें दाएं भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप निकल कर सामने आया. पौराणिक कथाओं की मानें तो सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना कहा जाता है. चूंकि प्रकृति का छठा अंश होने की वजह से देवी का एक नाम षष्ठी भी है. जिन्हें छठी मईया के नाम से जाना जाता हैं.

छठी मईया से जुड़ी पौराणिक कथा

छठी मईया से जुड़ी बहुत से पौराणिक कथाएं व मान्‍यताएं है. एक पौराणिक कथा के मुताबिक, राजा प्रियंवद का कोई संतान नहीं था. महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को यत्र आहुति के लिए बने प्रसाद को खाने के लिए कहा. जिसके बाद प्रियंवद की पत्नी पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था. प्रियंवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे.

ये भी पढ़ें :- Chhath Puja 2023: दीपावली के बाद छठ पूजा की तैयारि‍यां जोरो पर, सूप-दउरा की बढ़ी मांग

कहा जाता है कि उसी समय ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्‍होंने प्रियंवद से कहा कि वे षष्ठी माता हैं, उनकी पूजा करने से पुत्ररत्‍न की प्राप्ति होगी. छठी मईया के कहने पर राजा प्रियंवद ने ठीक वैसा ही किया. जिसके बाद उन्हें तेजस्वी संतान की प्राप्ति हुई. तब से कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन षष्ठी माता यानी छठी मईया की पूजा की परंपरा शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है. 

भगवान राम और माता सीता ने भी रखा था छठ व्रत

पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी छठ का व्रत रखा था. कहा जाता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को माता सीता और भगवान श्रीराम ने छठ का व्रत किया था और सूर्य देव की पूजा की थी.

कर्ण ने की थी सूर्यदेव की पूजा

पौराणिक कथा के मुताबिक, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य देव की उपासना की थी. कर्ण को सूर्यदेव का परम भक्त कहा जाता था. वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे. सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बने.

ये भी पढ़ें :- Chhath Puja Special: छठ पूजा का रामायण से भी है कनेक्शन, इस शहर में माता सीता ने रखा था छठ का व्रत

Latest News

Aaj Ka Rashifal: कर्क, तुला, मीन समेत इन राशि के जातकों को मिलेगी अपार सफलता, जानिए राशिफल

Aaj Ka Rashifal, 09 April 2025: वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 राशियों का वर्णन हैं. हर राशि का...

More Articles Like This

Exit mobile version