Chhath Puja में व्रती महिलाएं क्यों लगाती हैं नाक से मांग तक सिंदूर? जानिए क्‍या है इसका पौराणिक महत्व

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Chhath Puja Sindor Tradition: दिवाली के बाद अब पूरे उत्तर भारत में छठ पूजा की धूम नजर आ रही है. आस्‍था का महापर्व छठ सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति और संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है. ये पर्व खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मनाया जाता है. वहीं इस दिन व्रती महिलाएं नाक से मांग तक सिंदूर लगाती हैं, लेकिन क्‍या आप जानते है कि आखिर छठ पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी नाक से लेकर मांग तक सिंदूर क्यों लगाती है?  यदि नहीं, तो चलिए जानते है.

Chhath Puja Sindor: क्यों लगाते हैं नाक तक सिंदूर

हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के सोलह श्रृंगार में सिंदूर का खास महत्‍व होता है. सिंदूर को सुहाग की निशानी मानी जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिलाएं अपने पति की लम्‍बी आयु के लिए नाक से मांग तक सिंदूर है. ऐसी मान्‍यता है कि सिंदूर जितना लंबा होता है, पति की आयु भी उतनी ही लंबी होती है. सिंदूर पति की आयु के साथ ही परिवार में भी सुख-समृद्धि लाता है.

इसलिए लगाया जाता है नारंगी सिंदूर

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, छठ पर्व पर महिलाएं नारंगी रंग के सिंदूर से मांग भरती हैं. कहा जाता है कि छठ पर्व के दिन नारंगी रंग के सिंदूर से मांग भरने से पति की लंबी आयु के साथ व्यापार में भी बरकत होती है. उनको हर राह में सफलता मिलती है. इतना ही नहीं, नारंगी रंग का सिंदूर भगवान हनुमान जी का बेहद ही प्रिय रंग है. इसे वैवाहित जीवन खुशमय होता है.  

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छठ पूजा की कथा

कथा पुराणों के अनुसार महाभारत काल के समय पांडवों के राजपाट जुए में हारने पर द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था. द्रौपदी के इस व्रत से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिलाया था. और तभी से ही घरों में सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए छठ का व्रत रखा जाने लगा. कथा के मुताबिक, महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने सबसे पहले घंटों पानी में खड़े रहकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया और पूजा की.

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