Pinddaan in Gaya: आखिर गया में ही क्‍यों किया जाता है पिंडदान? जानिए पौराणिक वजह

Shubham Tiwari
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Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Pinddaan in Gaya: पितृपक्ष का समय चल रहा है. हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitripaksh 2023) के 15 दिनों का विशेष महत्व है. इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनका निमित श्राद्ध और पिंडदान (pinddaan) भी किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से वो सीधा हमारे पितरों को मिलता है, जिससे वो प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देते हैं.

वैसे तो पुराणों में पिंडदान के लिए देशभर में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने के लिए 55 स्थानों का वर्णन है, लेकिन बिहार के गया (Gaya) का स्थान सर्वोपरि है. यहां देश विदेश से लोग अपने पूर्वजों के पिंडदान और मोक्ष के लिए आते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि पितृपक्ष के दौरान आखिर गया में ही क्यों पिंडदान किया जाता है.

जानिए गया में क्यों किया जाता है पिंडदान?
पौराणिक मान्यतानुसार पितृपक्ष के दौरान भगवान श्रीहरि विष्णु गया में पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसलिए इसे पितृ तीर्थ कहा जाता है और इस जगह का सर्वोपरी स्थान है. मान्यता है कि गया में पिंडदान करने मात्र से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है. इसके साथ ही हमारे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा हमें पितृदोष से भी मुक्ति मिलती है.

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राजा दशरथ को मिला था मोक्ष
गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड के अनुसार भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ का पिंडदान गया में ही किया था. कथा के अनुसार भगवान राम और लक्ष्मण माता सीता को गया के फल्गु नदी के तट पर अकेला छोड़कर पिंडदान की सामग्री इकट्ठा करने के लिए चले गए थे. इसी दौरान राजा दशरथ वहां प्रकट हुए और माता सीता से पिंडदान की मांग की. जिसके बाद माता सीता ने तुरंत नदी किनारे बालू से पिंड बनाया फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए पिंडदान किया.

जिसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. तभी से यह मान्यता है कि बिहार के गया स्थित फाल्गु नदी के तट पर पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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