Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान शिव के सिर पर गंगा जी विराजमान है। भगवती भागीरथी गंगा भक्ति स्वरूपा हैं। शिव भक्ति मार्ग के आचार्य हैं। भगवान शिव साक्षात भगवान है, लेकिन स्वयं अपने द्वारा जीव मात्रा को कथा, कीर्तन रूपी भक्ति का उपदेश देते हैं। आचार्य उसी को कहते हैं जो केवल वाणी से नहीं अपने आचरण से भी संसार को सद्मार्ग का उपदेश करे। शिव भस्म और मुण्डों की माला धारण करते हैं, मुंडों की माला वैराग्य का प्रतीक है।
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हाथी के दांत के खिलौने बने भांति भांति। गैड़े की खाल सिपाही के मन भाई है।। मृत्यु के बाद भी अन्य जीवों का चमड़ा, दांत किसी काम आ जाता है, लेकिन मनुष्य अगर अपने जीवन में पुण्य कर्म और भगवान का भजन नहीं करता, तो मनुष्य का शरीर किसी के काम आने वाला नहीं है। “मानुष की देह काहु काम नहीं आई है।” ज्ञान के भगवान शिव मूर्ति मां स्वरूप ही है। भगवान शंकर किसी से विरोध नहीं करते, कोई उनका अपमान भी कर दे तो ध्यान नहीं देते, ज्यादा दुःखी नहीं होते, ज्ञानी की दृष्टि सम हो जाती है।
इसी कारण भगवान शंकर की पूजा उपासना में ध्यान का विशेष महत्व है। सभी हरि भक्तों को तीर्थगुरु पुष्कर आश्रम एवं साक्षात् गोलोकधाम गोवर्धन आश्रम के साधु-संतों की तरफ से शुभ मंगल कामना। श्रीदिव्य घनश्याम धाम श्रीगोवर्धन धाम कॉलोनी बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्रीदिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट, ग्रा.पो.-गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).