Shanishchari Amavasya 2023: आज सर्वपितृ अमावस्या पर करें ये उपाय, मिलेगी पितृ दोष के अलावा शनि के प्रकोप से मुक्ति

Shubham Tiwari
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Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Shanishchari Amavasya 2023: हिंदू धर्म में हर माह पड़ने वाली अमावस्या का महत्व है. लेकिन सर्वपितृ अमावस्या का अपना अलग ही महत्व है. इस बार पितृ विसर्जन यानी सर्वपितृ अमावस्या पर एक साथ कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं. बता दें कि इस बार अमावस्या आज यानी 14 अक्टूबर शनिवार के दिन है. शनिवार के दिन पड़ने वाली अमावस्य को शनिश्चरी अमावस्या के नाम से जानते हैं. ऐसे में इस दिन पितरों की विदाई के साथ-साथ शनिदेव की पूजा करने से शनि के बुरे प्रकोप से मुक्ति मिलेगी. आइए जानते हैं पूजा विधि व उपाय…

पितृ विसर्जन के दिन ऐसे करें पितरों की विदाई
काशी के ज्योतिष मर्मज्ञ श्रीनाथ प्रपन्नाचार्य के अनुसार हिंदू धर्म में सर्वपितृ अमावस्या यानी पितृ विसर्जन का बहुत महत्व है. इस दिन इज्जत सत्कार के साथ पूरे विधि-विधान से पितरों की विदाई करनी चाहिए.

  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करें और पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ में जल अर्पित करें.
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे तांबे के पात्र में जल रखकर शुद्ध घी का दीपक जलाएं.
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन गौधूली बेला में गाय को भोजन कराएं और हरा चारा खिलाएं.
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान कर दान करने से पितृ लोग प्रसन्न होते हैं.
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन पूर्वजों के नाम पर 5 जगह अलग-अलग भोजन निकालें और उसे खुले स्थान पर रख दें.
  • सर्वपितृ अमावस्या के घर पर ब्राम्हण को बुलाकर भोजन कराएं और उन्हें इज्जत सत्कार के साथ उन्हें इच्छानुसार दान-दक्षिणा दें.

शनि के प्रकोप से मुक्ति के लिए करें ये उपाय
इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर शनिवार इसलिए इसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाएगा. शनिश्चरी अमावस्या के दिन न्याय के देवता शनिदेव की पूजा आराधना करने से शनि के बुरे प्रकोप से मुक्ति मिलती है. ऐसे में यदि आप शनि की सााढ़ेसाती या ढैय्या से परेशान हैं तो शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा अवश्य करें. शनिदेव की पूजा करने के दौरान शनि स्त्रोत का पाठ करें.

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शनि स्त्रोत

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

एवं स्तुतस्तद सौरिग्रहराजो महाबल:।।

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(Disclaimer: इस लेख में दी गई सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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