भारत से ऑस्कर अवार्ड के लिए फिल्मों के चुनाव में इंपा का होना चाहिए दखल: अभय सिन्हा

भारत में फिल्म निर्माताओं की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर एसोसिएशन ( इंपा) के अध्यक्ष अभय सिन्हा ने कहा है कि इस साल आस्कर अवार्ड के लिए भारत से आधिकारिक प्रविष्टि भेजने में इंपा भी अपना दावा पेश करेगा। इंपा के अध्यक्ष अभय सिन्हा का कहना है कि यूनेस्को से मान्यता प्राप्त विश्व की सबसे बड़ी संस्था फेडरेशन इंटरनेशनल डि आर्ट फोटोग्राफिक ( फियाप )ने इंपा को सदस्यता प्रदान कर दी है। भारत में फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ( एफएफआई) और राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम ( एन एफ डी सी) ही इसके सदस्य हैं लेकिन इन दोनों संस्थाओं ने कई सालों से फियाप को अपनी वार्षिक सदस्यता नहीं दी है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फोटोग्राफिक आर्ट दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को अपने तय मानदंडों के आधार पर मान्यता प्रदान करती है। कान, बर्लिन, वेनिस, टोरंटो, बुशान सहित दुनिया भर में होने वाले सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह इसी संस्था से मान्यता प्राप्त करते हैं।

भारत में इस संस्था ने केवल चार अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों को मान्यता दी है- गोवा, केरल, बंगलुरु और कोलकाता। इस संस्था की वार्षिक सदस्यता  25 हजार 170 यूरो है यानी करीब 25 लाख रुपए। अभय सिन्हा का कहना है कि  पिछले साल जून 2024 से फियाप का सदस्य बन जाने के बाद आस्कर पुरस्कार में भारत से आफिशियल प्रविष्टि भेजने का काम भी इंपा को मिल जाएगा। अब तक भारत से आस्कर अवार्ड के लिए आदि प्रविष्टि भेजने का काम फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया करती रहीं हैं। हर साल यह संस्था किसी वरिष्ठ फिल्म निर्देशक की अध्यक्षता में एक जूरी बनाकर दो चरणों में भारत से आस्कर अवार्ड में भेजी जाने वाली एक फिल्म का चुनाव करती है। अभय सिन्हा का यह बयान तब आया है जब भारत से आस्कर अवार्ड के लिए भेजी गई आधिकारिक प्रविष्टि के बतौर किरण राव और आमिर खान की फिल्म ‘ लापता लेडीज ‘ पहले ही दौर में प्रतियोगिता से बाहर हो गई और इस बारे में बयानबाजी शुरू हो गई।
अभय सिन्हा का कहना है कि हमें इस मामले में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यह देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा मामला है। यहां यह बता दें कि फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा आस्कर अवार्ड के लिए भेजी जाने वाली फिल्मों का स्ट्राइक रेट बहुत खराब है।  पिछले 97 सालों के आस्कर पुरस्कारों के इतिहास में दुर्भाग्य से केवल तीन भारतीय फिल्में ही अंतिम दौर तक पहुंच पाई – महबूब खान की ” मदर इंडिया ”  (1957), मीरा नायर की ” सलाम बांबे ‘ ( 1988) और आशुतोष गोवारिकर- आमिर खान की ” लगान (2001)।” पिछले दिनों गोवा में आयोजित भारत के 55 वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इंपा ने पहली बार बड़े पैमाने पर भागीदारी की थी और अपना एक पानी में तैरता लग्जरी क्रूज लगाया था।  इस क्रूज पर करीब एक हजार लोगों ने इस दौरान इंडस्ट्री मीटिंग और नेटवर्किंग की।  इंपा ने फिल्मों के कापीराइट पर फेडरेशन इंटरनेशनल डि आर्ट फोटोग्राफिक (फियाप) के विशेषज्ञ  बर्ट्रांड मौलियर (सीनियर एडवाइजर, इंटरनेशनल अफेयर्स) को खास तौर से आमंत्रित किया। इसको  इंपा के अंतर्राष्ट्रीय मामलों के प्रमुख यूसूफ शेख ने संचालित किया।

 

इंपा ने फिल्म बाजार में भी अपना स्टाल लगाया। पांच दिनों तक इंपा के क्रूज पर दर्जनों फिल्मों के ट्रेलर और पोस्टर लांच किए गए, नेटवर्किंग पार्टियां हुई और सिनेमा के बाजार से जुड़ी हुई गतिविधियां संचालित की गई। इंपा के अध्यक्ष अभय सिन्हा कहते हैं कि बड़े फिल्म निर्माता तो अपनी फिल्मों को विदेशों में प्रदर्शित करने में कामयाब हो जाते हैं पर भारत के हजारों छोटे छोटे फिल्म निर्माताओं के पास ऐसे अवसर नहीं होते।  इसी बात को ध्यान में रखकर पिछले साल इंपा ने 77 वें कान फिल्म बाजार में  भागीदारी की जिससे भारतीय सिनेमा को नया बाजार मिलना  संभव हुआ है। अभय सिन्हा बताते हैं कि भारतीय सिनेमा के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार की संभावनाओं को तलाशने के लिए इस साल उनकी अध्यक्षता में इंपा का प्रतिनिधि मंडल 75 वें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह (13-23 फरवरी 2025) में बड़े पैमाने पर भागीदारी करेगा।
वे कहते हैं कि उनके अध्यक्ष चुने जाने से पहले उनके बिजनेस गुरु टी पी अपने इंपा के पंद्रह साल तक अध्यक्ष रहे लेकिन कोई बड़ा फैसला नहीं ले सके। संस्था का विस्तार भी नहीं किया। उन्होंने कहा कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद इंपा की कार्य प्रणाली में कई बदलाव किए गए। फिल्म निर्माताओं के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा की सुविधाएं बढ़ाई गई। वे कहते हैं कि इंपा भारतीय फिल्म निर्माताओं की सबसे पुरानी संस्था है जिसकी स्थापना 1937 में हुई थी। देशभर में इसके करीब 40 हजार सदस्य हैं।  उन्होंने कहा कि पिछले 88 सालों से यह संस्था देश भर के फिल्म निर्माताओं के हितों के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि उनकी नई टीम में सुषमा शिरोमणि (सीनियर वाइस प्रेसिडेंट), अतुल पी पटेल (वाइस प्रेसिडेंट) , सुरेन्द्र वर्मा (वाइस प्रेसिडेंट) और यूसूफ शेख जैसे कर्मठ लोग हैं।

याद रहे कि पायल कपाड़िया की फिल्म भले ही भारत के फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की जूरी ने आस्कर अवार्ड के लिए नहीं चुना पर उसे प्रतिष्ठित गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड के लिए दो दो नामांकन मिल गए- विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की श्रेणी में। पायल कपाड़िया गोल्डन ग्लोब अवार्ड में नामांकित होने वाली पहली महिला फिल्मकार बन गई है। आस्कर अवार्ड में भारत की ओर से आधिकारिक प्रविष्टि भेजने वाली फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया की जूरी के अध्यक्ष जाह्नू बरुआ का बयान छपा कि यह फिल्म तकनीकी रूप से कमजोर है। उनका यह बयान तब आया जब उनकी चुनी हुई किरण राव की फिल्म ‘लापता लेडीज’ आस्कर अवार्ड की प्रतियोगिता से पहले ही दौर में बाहर हो गई। उनके बयान की प्रतिक्रिया में हंसल मेहता, सुधीर मिश्रा आदि फिल्मकारों के बयानों की बाढ़ आ गई।
हालांकि, यहां यह बात बता दें कि इस मामले से भारत सरकार का कुछ भी नहीं लेना देना है। इसी बीच पायल कपाड़िया के लिए दो खुश खबरी आई। पहली यह कि चूंकि उनकी फिल्म अमेरिका में प्रदर्शित हो गई है, लिहाजा वह स्वतंत्र रूप में 97 वे आस्कर अवार्ड के मुख्य प्रतियोगिता खंड की कई श्रेणियों में शामिल हो गई है। दूसरे, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जानेवाली पसंदीदा फिल्मों की सूची में ‘ आल वी इमैजिन ऐज लाइट ‘ पहले नंबर पर है। इस साल 77 वें कान फिल्म समारोह में पायल कपाड़िया की हिंदी मलयाली फिल्म ‘ आल वी इमैजिन ऐज लाइट ‘ ने न सिर्फ मुख्य प्रतियोगिता खंड में जगह बनाई वल्कि बेस्ट फिल्म का पाल्मा डोर के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार ग्रैंड प्रिक्स भी जीत कर इतिहास बना दिया।
तीस साल बाद किसी भारतीय फिल्म ने मुख्य प्रतियोगिता खंड में जगह बनाई थी। इससे पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म ‘ स्वाहम ‘ प्रतियोगिता खंड में चुनी गई थी।इसके बारे में काफी कुछ दुनिया भर में आज तक लिखा जा रहा है। उस समय पश्चिम के कई मशहूर फिल्म समीक्षकों का मानना था कि यदि यह फिल्म भारत में आस्कर पुरस्कार के लिए भेजी जाती है तो इसके जीतने की काफी संभावना है। माना जा रहा था कि पायल कपाड़िया की फिल्म बेस्ट इंटरनेशनल फिल्म की श्रेणी में आस्कर पुरस्कार जीत सकती है। ‘डेट लाइन’ , ‘वैरायटी’, ‘बालीवुड रिपोर्टर’, स्क्रीन इंटरनेशनल ‘ आदि दुनिया की कई मशहूर फिल्म पत्रिकाओं में इस आशय के यहां लेख भी छपे थे। इसकी मुख्य वजह यह है कि इधर  कान फिल्म समारोह और आस्कर पुरस्कारों के बीच कुछ साझेदारी बढ़ रही है।

 

पिछले कई सालों से लगातार आस्कर पुरस्कारों में कान फिल्म समारोह की फिल्मों के करीब दो दर्जन से अधिक नामांकन हुए हैं। उसी तरह कान फिल्म समारोह में लगातार हालीवुड और अमेरिकी सिनेमा का वर्चस्व बढ़ा है। आस्कर अवार्ड की जूरी में वोट देने वाले करीब सात हजार वोटर पहले ही कान, बर्लिन, वेनिस जैसे फिल्म समारोहों में इन फिल्मों को देख चुके होते हैं इसलिए इन फिल्मों के अवार्ड जीतने की संभावना बढ़ जाती है। इंपा के अध्यक्ष अभय सिन्हा कहते हैं कि हमें सिनेमा की गुणवत्ता के बारे में संवेदनशील रवैया अपनाना होगा तभी भारतीय सिनेमा विश्व स्तर पर अपना स्थान बना सकेगा। इस साल आस्कर अवार्ड में भारत से नामांकन के विवाद को देखते हुए अब समय आ गया है कि इंपा को इसमें दखल देना चाहिए। बिहार के भोजपुर जिला के एक गांव में जन्मे अभय सिन्हा इस समय भोजपुरी फिल्मों के सबसे बड़े निर्माता हैं। वे अब तक पचास से भी अधिक फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं। वे अपनी कई भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग लंदन में कर चुके हैं।

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