Mirza Ghalib Shayari: ‘मैं नादान था, जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब’, पढ़ें मिर्जा गालिब के शानदार शेर

Divya Rai
Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Mirza Ghalib Shayari: जब भी किसी को इश्क का इजहार करना होता है या किसी का दिल टूटता है, तो मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib) के शेर मरहम की तरह काम करते हैं. मशहूर शायरों में एक गालिब उर्दू भाषा के ऐसे कलावंत थे, जो अपने शब्दों से जादूगरी करते थे. 27 दिसंबर 1797 को सैनिक परिवार में जन्में गालिब के शायरी और (Mirza Ghalib Shayari) गजल आज भी युवा पीढ़ी के बीच सराहे जाते हैं. आइए गालिब की जयंती पर जानते हैं उनके कुछ दिल छू लेने वाले शेर, जिसने दुनिया को इश्क की तहजीब सिखाई…

मिर्जा गालिब के दिल छू लेने वाले शेर

1- पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है,
कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या।

2- हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

3- वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं,
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया !

4- तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला
उसमें कुछ शाएबा-ए-ख़ूबिए-तकदीर भी था

5- इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

6- इश्क़ ने गालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के!

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7- हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

8- आए है बेकसीए इश्क पे रोना गालिब
किसके घर जाएगा सेलाब-ए-बला मेरे बाद

9- हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूं होता तो क्या होता !

10- ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में

11- मैं नादान था,
जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा के एक दिन,
अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी।
मिर्जा गालिब।

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