Brahma Kumaris Global Summit 2024: भारत एक्सप्रेस के सीएमडी उपेन्द्र राय को ‘राष्ट्र चेतना अवॉर्ड’ से किया गया सम्मानित

Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Brahma Kumaris Global Summit 2024: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में ब्रह्माकुमारीज संस्था की ओर से आयोजित चार दिवसीय वैश्विक शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया. यह सम्मेलन ब्रह्माकुमारीज संस्था के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में आयोजित किया जा रहा है. इसमें देश-विदेश की कई हस्तियां शामिल हो रही हैं.

राष्ट्र चेतना अवॉर्ड से किया गया सम्मानित

आध्यात्मिकता के माध्यम से स्वस्थ समाज विषय पर आयोजित यह सम्मेलन 4 से 7 अक्टूबर तक चलेगा. इस समिट में आज (4 अक्टबूर) भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक और एडिटर-इन-​चीफ उपेन्द्र राय भी शामिल हुए. सीएमडी उपेन्द्र राय का मंच पर शॉल ओढ़ाकर स्वागत किया गया. इसके साथ ही उन्हें राष्ट्र चेतना अवॉर्ड से किया गया सम्मानित. इस दौरान सीएमडी उपेन्द्र राय ने समिट को संबोधित भी किया.

कार्यक्रम को सीएमडी उपेन्द्र राय ने किया संबोधित

जिसमें उन्होंने कहा, हमारे देश में आध्यात्म और धर्म को मिलाकर देखने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन मैंने जब से इस विषय को थोड़ा बहुत समझा और जाना, तो पाया कि आध्यात्मिकता और धर्म बिल्कुल अलग-अलग हैं. इसलिए थोड़ी बात धर्म पर और थोड़ी बात आध्यात्मिकता पर होनी चाहिए. इसलिए पहले धर्म पर दो लाइन जरूर कहूंगा कि धर्म जिन लोगों ने पाया, पैदा किया शायद उनके जीवन में कभी क्रांति का सूत्रपात हुआ होगा, तब कोई धर्म पैदा हुआ होगा, लेकिन हम जिस धर्म को मानते हैं, वह हमारा बपौती है, क्योंकि वह हमें मिला हुआ है. हमारे जीवन में न कभी कोई क्रांति हुई नहीं और ना कोई परिवर्तन आया. इसलिए जब मैं सोचता हूं इस पड़ाव पर आकर तो मुझे लगता है कि अपने बच्चे को किसी धर्म की शिक्षा नहीं देनी चाहिए, बल्कि उसे वो सारी सुविधाएं मुहैया कराना चाहिए, जिससे वो सारे धर्मों को पढ़े. उसे मैं किसी भी धर्म का न बनाऊं, बल्कि ये आजादी दूं कि तुम जिस धर्म को चाहो वो पढ़ो और जिस दिन तु्म्हें मौज आ जाए, तुम्हारी आत्मा झूम उठे, उस दिन तुम उसी धर्म को अपना लेना, क्योंकि धर्म अनेक हैं, औऱ सभी धर्मों ने परमात्मा तक पहुंचने के रास्ते बताए हैं, लेकिन सभी रास्ते सही नहीं हैं, कोई एक रास्ता पकड़कर ही अंतिम तक पहुंचा जा सकता है. अगर मैं इसे दूसरे शब्दों में कहूं, तो साध्य और साधन महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वो रास्ता महत्वपूर्ण है, जो एक दिन मंजिल में तब्दील हो जाता है.

उन्होंने ने आगे कहा कि जैसे कोई चित्रकार है, कोई कवि है या फिर कोई गणितज्ञ है, और कवि को हम अगर गणित का धर्म दे दें तो शायद उसे उस रास्ते पर चला नहीं जाएगा. कवि कामन बड़ा निर्मल होता है, वो गणित के सवालों को, पहेलियों को शायद सुलझाते-सुलझाते फेल हो जाए, ठीक ऐसा ही हम सबके जीवन में भी होता है. हम अपने दिमाग में इतना ज्यादा कूड़ा-करकट भर लेते हैं कि मूल्यवान चीजों को रखने की जगह ही नहीं बचती है. आध्यात्म हमें सिखाता है कि जीवन में मूल्यवान चीजों के लिए कम मूल्यवान चीजों को जितनी तन्मयता से छोड़ता चला जाता है, वही जीवन में सही अर्थों में आध्यात्मिक संतुलन को प्राप्त करता है, लेकिन अक्सर हम देखते हैं कि जो हमने रहीम के दोहे में पढ़ा है कि ‘साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय’. रहीम कहते हैं कि साधु और सज्जन का स्वभाव सूप की तरह होना चाहिए. जोव्यर्थ को हटा दे और मूल्यवान चीजों को बचा ले, आध्यात्म भी हमें यही सिखाता है. मूल्यवान वो कृत्य है जिसके किए से किसी एक के भी व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान आ जाए, हमारे किए किसी एक काम से समाज को थोड़ी सी भी गति मिल जाए वही मूल्यवान है.

सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, अगर हम रास्ते पर पड़ा कंकड़-पत्थर या फिर कांटा किसी दूसरे के लिए उठाकर फेंक दें या फिर किसी के आंगन में जाकर वहां पर झाड़ू लगा दें, यही आध्यात्म है. इसके अलावा जो भी है वो सिर्फ कर्मकांड है. जिससे जीवन में सिर्फ कूड़ा-कचरा के अलावा कुछ भी इक्ट्ठा नहीं होता है.

इस दौरान सीएमडी उपेन्द्र राय ने महात्मा बुद्ध की एक कहानी सुनाई, जिसमें उन्होंने बताया कि महात्मा बुद्ध के सबसे करीबी शिष्य सरीपुत्र की जब महात्मा बुद्ध से मुलाकात हुई तो उन दोनों के बीच घंटों संवाद चला. इस दौरान सरीपुत्र ने महात्मा बुद्ध से एक सवाल पूछा, जिसका उत्तर मिलने पर सरीपुत्र ने कहा कि पूरे जीवन सीखी हुई मेरी सारी विद्याओं को इतने सरल और गूढ़ तरीके से समझाया कि मुझे लगता है इन्हें सीखने में मेरा सारा जीवन व्यर्थ गया. सरीपुत्र ने जो सवाल पूछा था वो था कि आप ईश्वर को नहीं मानते, पूजा, कर्मकांड में भरोसा नहीं करते, ये सारे यम-नियम और व्रत-उपवास ये क्या सभी व्यर्थ है? इसपर बुद्ध ने जवाब दिया कि हम एक नदी के किनारे बैठे हों, और नदी को पार करना हो तो कोई भी व्यक्ति क्या करेगा? इसपर उनके शिष्य ने कहा कि अगर पानी गहरा नहीं होगा तो चल के पार कर लिया जाएगा, अगर गहरा होगा और तैरना जानता होगा, तो तैर कर पार कर लेगा, अगर डरता होगा तो नाव की मदद से पार कर लेगा. तब महात्मा बुद्ध ने कहा, अगर वो आदमी कहे कि नदी का दूसरा किनारा खुद चलकर इधर आ जाए. इसपर सरीपुत्र ने कहा कि फिर तो वो आदमी मूर्ख ही होगा जो ऐसा कहेगा. तब फिर बुद्ध ने कहा- हम पूजा-पाठ, व्रत-नियम करके यही तो मांगते हैं, जो प्राकृतिक तरीके से संभव न हो और हम चाहते हैं कि वो हो जाए. इसी के लिए हम पूजा-पाठ करते हैं, व्रत रखते हैं, लेकिन जिस दिन परमात्मा के सामने मांग रख दी, तो फिर पूजा कैसी? एक चौराहे पर बुद्ध और एक भिखारी खड़ा है, जिसमें जमीन-आसमान का अंतर है. एक पाई-पाई जोड़कर सम्राट बनना चाहता है, वहीं एक सम्राट सबकुछ छोड़कर कटोरा लेकर चौराहे पर खड़ा है. एक वक्त की रोटी के लिए. यहां पर बुद्ध बताते हैं कि आध्यात्म क्या है? जिस भिखारी के कटोरे में हम लोग दो-चार सिक्के डाल आते हैं, वो बताता है कि संसार क्या है?

संत एकनाथ जी का सुनाया किस्सा

इसपर एकनाथ जी ने कहा कि बिल्कुल बचा लूंगा, मैं बचाने ही आया हूं. लेकिन इसके लिए किसी एक को अपना जीवन त्याग करना होगा. इसपर लड़के की मां ने कहा कि मैं अपना जीवन दे देती, लेकिन इसके पिता की इतनी आयु हो चुकी है कि अगर उन्हें मैं छोड़कर चली गई तो उनका कोई ध्यान नहीं रखेगा. फिर एकनाथ जी ने उसकी पत्नी की तरफ देखा तो पत्नी ने कहा कि अब तो ये जा ही रहे हैं, अगर मैं भी चली गई तो इन दो छोटे-छोटे बच्चों का ध्यान कौन रखेगा? जब एकनाथ जीने भाई की तरफ देखा तो उसने कहा कि मैं अपनी जान नहीं दे सकता हूं क्योंकि मेरा भी परिवार है. ये सारी बातें बेहोशी की हालत में पड़ा वो लड़का भी सुन रहा था. एकनाथ जी ने उसके माथे पर हाथ रखा और कहा कि तुमने मुझसे एक सवाल पूछा था कि मेरा मन इन रंगीनियों को देखकर क्यों नहीं फिसलता है? पिछले 7 दिनों में क्या ऐसा कोई भी ख्याल तु्म्हारे मन में आया, जो तुम उस दिन मुझे बताकर आए थे, इसपर लड़के ने जवाब दिया कि गुरुजी क्या बात कर रहे हैं, जब आदमी मृत्यु के नजदीक हो, और मरण शैया पर पड़ा हुआ हो तो क्या उसके मन में ऐसा ख्याल आएगा. तब एकनाथ जी ने कहा कि ऐसे ही मैं कब से मरण शैया पर हूं. बस सिर्फ ये शरीर जो है साधे हुए है. जब आदमी मरने पर होता है तो विचार नहीं आता है और संत अपने को मार देता है. मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है.

सीएमडी उपेन्द्र राय ने अपना संबोधन खत्म करते हुए कहा कि आध्यात्म हमारे रोज के जीवन का हिस्सा है, लेकिन संतत्व उसकी मंजिल है.

1930 के दशक में हुई थी शुरुआत

ब्रह्माकुमारी एक आध्यात्मिक आंदोलन है, जिसकी शुरुआत 1930 के दशक में सिंध के हैदराबाद में हुई थी. ब्रह्माकुमारीज आध्यात्मिक आंदोलन मानव शरीर और सामाजिक पहचानों के स्तर से परे जाने के महत्व पर बल देता है, जिसे ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. यह शरीर के बजाय आत्माओं के रूप में पहचान की धारणा पर बल देता है और इसका उद्देश्य आत्म-चेतना पर केंद्रित वैश्विक संस्कृति स्थापना करना है.

Latest News

भारत के कार्बन उत्सर्जन एवं हरित क्रांति के प्रयासों की अमेरिका में हुई सराहना: डॉ. दिनेश शर्मा

UP News: उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सांसद डा. दिनेश शर्मा ने  राजधानी दिल्ली में आयोजित ’’ ग्रीन  फ्यूचर...

More Articles Like This

Exit mobile version