Buddha relics: आज भगवान बुद्ध की निशानी को भारत से थाईलैंड भेजा जा रहा है. इन निशानियों में चार तो अकेले राजधानी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संजोकर रखा हुआ है. अब इनकों थाईलैंड में सार्वजनिक तौर पर रखा जाएगा. बता दें कि संस्कृति मंत्रालय ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी थी.
भगवान बुद्ध से जुड़ी निशानी के अलावा उनके दो शिष्य सारिपुत्त और महा मोग्गलाना के पवित्र अवशेष हैं जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बनने को तैयार हैं. बता दें कि इनका संबंध उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर जिले से है. जिले के पिपरहवा गांव में खुदाई के दौरान ये पवित्र अवशेष मिले थे. इन निशानियों की दुनियाभर के बौद्ध समुदाय में अच्छा-खासा महत्व है.
बिहार के राज्यपाल भी जा रहें
ऐसा पहली बार होगा जब भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों की निशानी एक साथ प्रदर्शित की जाएगी. इन पवित्र अवशेषों को लेकर बिहार के गर्वनर राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर और केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में 22 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल थाईलैंड जा रहा है.
वायुसेना के विमान से ले जाए जाएंगे निशान
ये सभी पवित्र अवशेष भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान के जरिये ले जाया जाएगा. इस कार्यक्रम को लेकर पूरी तैयारी है. थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंचने पर अवशेषों को बैंकॉक के नेशनल म्यूजियम में सुरक्षित रखा जाएगा.
थाईलैंड में बौद्ध समाज के लोग भगवान बुद्ध की याद में ‘माखा बुचा दिवस’ मनाते हैं. इसी दिन से यहां भगवान बुद्ध से जुड़ी पवित्र निशानी को प्रदर्शित किया जाएगा, जहां लोग अपनी ओर से इनके प्रति सम्मान का भाव व्यक्त करेंगे. 19 मार्च को सभी निशान वापस से भारत आ जायेंगे.
थाईलैंड और बौद्ध धर्म
वैसे तो थाईलैंड का नाम लोगों के जुबान पर पर्यटन के लिए होता है लेकिन ये दक्षिण पूर्व भारत का इकलौता ऐसा देश है जो कभी गुलाम नहीं हुआ. बौद्ध धर्म के अलावा राजशाही और सेना ने यहां के समाज और लोगो के जीवन को गढ़ा है. वर्ष 1947 के बाद देश में ज्यादातर समय सेना के शासन रहें. बीच में कुछ समय के लिए लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई सरकारें आईं लेकिन ये काफी छोटा समय रहा.
लगभग 7 करोड़ की जनसंख्या वाला देश थाईलैंड का हर सांतवा शख्स राजधानी बैंकॉक में निवास करता है. यहां की सबसे बड़ी आबादी बौद्ध धर्म को मानती है. जानकारी के मुताबिक, आबादी की तकरीबन 94 प्रतिशत जनसंख्या बौद्ध धर्म मानने वाली है और ये उनके रीति-रिवाजों का हिस्सा भी है. हालांकि थाई संविधान बौद्ध या किसी अन्य धर्म को देश का धर्म नहीं बताती, लेकिन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार पर खासा जोर देती है.
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