Climate Change: आज के समय में एक तरफ जहां बढ़ती टेक्नोलॉजी हमारे रोजमर्रा के कामों को आसान बना रही है. वहीं, दूसरी ओर तमाम तरह की समस्याएं भी पैदा कर रहा है. ऐसे में ही अब जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ लार्ज लैंग्वेज मॉडल जैसे- OpenAI का ChatGPT, और सोशल मीडिया से जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए जा रहे कदम प्रभावित हो सकते हैं.
बता दें कि यह दावा ग्लोबल इन्वायरमेंटल पॉलिटिक्स जर्नल (जीईपी) में छपे एक आर्टिकल में किया गया है. कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए जा रहे कदमों को लेकर एआई, सोशल मीडिया और दूसरे टेक प्रोडक्ट और प्लेटफॉर्म इसे लेकर न्यट्रल हैं या वे कुछ हद तक सकारात्मक हैं.
गंभीर मुद्दों से भटका रहे ध्यान
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि ये उन सभी रचनात्मक सोच और समस्या-समाधान के लिए मानवीय क्षमताओं को कम कर सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा ये प्लेटफॉर्म गंभीर वैश्विक मुद्दों की अहमियत को भी कम कर रहें है.
उन्होंने कहा कि ये टेक्नोलॉजी मानवीय व्यवहार और सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित कर रही हैं, इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण और प्रतिक्रियाओं को भी आकार दे रही हैं” उन्होंने आगे बताया कि एआई और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड बदलता रहता है, जिससे वे जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर भी बात से भी ध्यान भटकता रहता है.
Climate Change: कम हो रही रचनात्मकता
जेनेरेटिव एआई की समीक्षा के दौरान उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर बार-बार नकारात्मक खबरों को चलते लोगों में आशा कम और निराशा ज्यादा होने लगी है, जो हमें जलवायु परिवर्तन पर संगठित होने से रोकता है. टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता से रचनात्मक और सोचने की क्षमता पर असर पड़ता है. ऐसे में सोशल मीडिया और एआई के द्वारा अक्सर गलत या पक्षपातपूर्ण जानकारी मिलती है, जो जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए जाने वालें कामों को बाधित करता है.
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