राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के विश्लेषण से पता चला है कि भारत में बाघों की मृत्यु दर में 37 प्रतिशत की गिरावट आई है. साल 2024 में अब तक 115 मौतें दर्ज की गई हैं, जबकि 2023 में 182 मौतें दर्ज की गई थीं. इसके अलावा अवैध शिकार के मामले पिछले साल के 17 से घटकर इस साल चार हो गए हैं. मौतों की संख्या में प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों कारण शामिल हैं. क्योंकि, NTCA की वेबसाइट पर अभी तक बाघों की मृत्यु के कारणों, जैसे कि क्षेत्रीय संघर्ष, दुर्घटनाएं, जहर या बिजली का झटका, को निर्दिष्ट नहीं किया गया है.
एनटीसीए के अधिकारियों ने डेटा रिपोर्टिंग में अंतराल को उजागर किया. एक अधिकारी ने कहा, ‘राज्यों ने मृत्यु के सटीक कारणों पर डेटा जमा करने और फोरेंसिक रिपोर्ट भेजने में देरी की है.’ मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बाघों की सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गईं. इस साल मध्य प्रदेश में 46 मौतें हुईं, जो 2023 में 43 से थोड़ी ज्यादा है. महाराष्ट्र में 50% की कमी देखी गई, जहां 2024 में 23 मौतें हुईं, जबकि पिछले साल 46 मौतें हुई थीं. कर्नाटक में 11 मौतें हुईं, जो पिछले साल से एक कम है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
उत्तराखंड के देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब ने शिकार से संबंधित मौतों में कमी का श्रेय प्रभावी उपायों और संरक्षण प्रयासों को दिया. हबीब ने कहा, ‘वर्तमान में बाघों की मौतों का एक बड़ा हिस्सा प्राकृतिक कारणों से होता है, जो कुछ क्षेत्रों में आबादी के संभावित स्थिरीकरण का सुझाव देता है. यह प्रवृत्ति मानव-वन्यजीव संघर्ष और आवास विखंडन जैसी उभरती चुनौतियों का समाधान करते हुए आवास संरक्षण में प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर देती है.’