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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
एक पीएचडी स्कालर के निष्कासन पर रोक लगाते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जेएनयू अपने नियमों के उल्लंघन के साथ-साथ प्राकृतिक न्याय व निष्पक्षता के सिद्धांतों का भी अवहेलना कर रहा है. वह ऐसा कर अपने छात्रों को बलपूर्वक निष्कासित कर रहा है. न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने उक्त टिप्पणी करते हुए मुख्य प्रॉक्टर के गत साल के 8 मई के आदेश पर रोक लगा दी. उस आदेश के तहत एक छात्रा अंकिता सिंह को इस आधार पर निष्कासित कर दिया गया था कि उसने अध्यक्ष के कार्यालय में तोड़फोड़ की तथा छात्रों व संकाय सदस्यों के साथ र्दुव्यवहार किया.
ऐसा पहला मामला नहीं
न्यायमूर्ति ने कहा, जेएनयू का यह कोई पहला मामला नहीं है, जो इस अदालत के समक्ष आया है, जिसमें नियम कानून का उल्लंघन कर छात्र को जर्बदस्ती निष्कासित किया गया हो. न्यायमूर्ति ने अगस्त 2022 में पारित एक कार्यालय आदेश पर ध्यान दिया, जिसके अनुसार कई अधिकारियों ने छात्रा को तत्काल चिकित्सा मुहैया कराने की सिफारिश की थी. उसने कहा था कि छात्रा को सहायता देने के लिए एक कानूनी चिकित्सा बोर्ड का गठन होना चाहिए. छात्रा ने कहा था, उसे ऐसी कोई सहायता नहीं दी गई है. साथ ही निष्कासन से पहले किसी भी आरोप के खिलाफ़ कारण बताने का अवसर नहीं दिया गया था.
कोर्ट ने छात्रा के निष्कासन पर लगाई रोक
कोर्ट ने कहा, छात्रा ने जो कहा है अगर वह सही है तो यह बेहद परेशान करने वाली स्थिति है. छात्रा को तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता थी. लेकिन, अगस्त 2022 के आदेश में न तो छात्रा की बीमारी का उल्लेख है और न ही उन र्दुव्यवहार का, जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया है. इसलिए छात्रा के निष्कासन संबंधी आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाई जाती है. उसे उसी पाठय़क्रम में प्रवेश दिया जाए, जिसमें वह पहले अध्ययन कर रही थी. उसे अपनी पढ़ाई जारी भी रखने दिया जाए. इसके बाद कोर्ट ने JNU से इस मुद्दे पर अपना जवाब देने को कहा है. बता दें कि इस मामले में अगली सुनवाई कोर्ट 9 जुलाई को करेगा.