Medha Patkar: दिल्ली पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को किया गिरफ्तार, कोर्ट ने जारी किया था गैर-जमानती वारंट

Divya Rai
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Medha Patkar: नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटेकर को दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया. यह गिरफ्तारी एक डिफेमेशन (मानहानि) मामले में की गई है. कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था.

कोर्ट के आदेश के बाद हुई गिरफ्तारी

कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार सुबह मेधा पाटकर (Medha Patkar) को गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने यह कार्रवाई की. बुधवार को ही अदालत ने मेधा पाटकर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया. यह कार्रवाई उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि के मामले में दोषसिद्धि के बाद की गई है. मामला दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने 2001 में दर्ज कराया था.

3 मई को होगी अगली सुनवाई

साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा था कि मेधा पाटकर अदालत में उपस्थित नहीं हुईं और उन्होंने जानबूझकर सजा से जुड़े आदेश का पालन नहीं किया. पाटकर की मंशा स्पष्ट रूप से अदालत के आदेश की अवहेलना करने और सुनवाई से बचने की थी. चूंकि सजा पर कोई स्थगन आदेश मौजूद नहीं है, इसलिए कोर्ट ने कहा कि पाटकर को पेश कराने के लिए अब दबाव का सहारा लेना अनिवार्य हो गया है. अगली तारीख के लिए दोषी मेधा पाटकर के खिलाफ दिल्ली पुलिस आयुक्त के कार्यालय के माध्यम से गैर-जमानती वारंट जारी किया जाए. इस मामले पर अगली सुनवाई तीन मई को होगी.

मानहानि के तहत दर्जा कराया गया था मामला

बता दें कि मेधा पाटकर ने पिछले वर्ष मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ अपील की थी. अपील में उन्हें जमानत मिल गई थी और उन्हें दी गई पांच महीने की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा को स्थगित कर दिया गया था. यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दर्ज किया गया था.

विनय कुमार सक्सेना ने 2001 में यह मामला दर्ज कराया था, जब वह अहमदाबाद स्थित एनजीओ ‘नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे. सक्सेना ने कहा था कि मेधा पाटकर ने 25 नवंबर 2000 को जारी एक प्रेस नोट में उन्हें कायर व देश विरोधी होने और उन पर हवाला लेनदेन में शामिल होने का आरोप लगाया था. मामले में कोर्ट ने पाटकर को दोषी ठहराते हुए कहा था कि उनके बयान जानबूझकर, दुर्भावनापूर्ण और सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से दिए गए थे.

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