“50 सालों में पृथ्वी पर स्त्रियों का शासन होगा”, Bharat Dialogues Women Leadership Award 2025 को CMD उपेंद्र राय ने किया संबोधित

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आज (13 अप्रैल) भारत डायलॉग की ओर से Bharat Dialogues Women Leadership Award 2025 कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में भारत एक्सप्रेस के सीएमडी और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय गेस्ट ऑफ ऑनर के तौर पर शामिल हुए. सीएमडी उपेन्द्र राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अपने विचार रखे. उन्होंने कहा, 130 साल महिलाओं को लगेंगे पुरुषों के बराबर सैलरी पाने में. और ये जो पीड़ा है, शायद इसी एक पीड़ा ने औरतों को इतना अपमानित किया कि औरतें अपना औरत होने का अस्तित्व भूलकर पुरुष बनने की दौड़ में लग गईं. पुरुषों की सत्ता ने बहुत पहले समझ लिया था कि परमात्मा आधा पुरुष है और आधा स्त्री. और हमारे यहां कहा गया है कि ज्ञान की देवी सरस्वती हैं और शक्ति की देवी दुर्गा और धन की देवी लक्ष्मी. ये तीन चीजें मिलकर हमें पूरा संसार देती हैं. आदमी अपने जीवन में चाहता क्या है? धन, सम्मान, प्रेम और सुरक्षा.

श्रीकृष्ण ने कहा- स्त्रियों में मैं श्री हूं. मेधा हूं, कीर्ति हूं, क्षमा हूं

सीएमडी उपेन्द्र राय (CMD Upendrra Rai) ने आगे कहा, भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के 10वें अध्याय के 34वें श्लोक में औरतों के सात गुणों के बारे में बोला था. इसलिए कोशिश करूंगा की 7 सातों गुणों के बारे में बात करूं. श्लोक था- मृत्यु: सर्वहर्षश्चमुद्भवश्च भविष्यताम् | कीर्ति: श्रीवाच नारीणां स्मृतिर्मेधा धृति: क्षमा || उन्होंने अक्षरों में कहा, मैं ओंकार हूं, समासों में कहा कि मैं द्वंद समास हूं, समय में कहा कि मैं अक्षयकाल हूं. उसी तरह से उन्होंने इस 34वें श्लोक में कहा, मैं ही सबको जन्म देने वाला हूं, मैं ही सबका सर्वनाश करके अपने में समाहित कर लेने वाला हूं. मैं ही वर्तमान हूं, मैं ही भविष्य हूं. जिस प्रकार से तुम मुझे शब्दों में ओंकार के रूप में जानते हो, पर्वतों में हिमालय के रूप में जानते हो, गायों में कामधेनु के रूप में जानते हो, उसी तरह से स्त्रियों में कीर्ति हूं. अगर स्त्रियों में तुम मुझे देखना चाहते हो, तो स्त्रियों में मैं श्री हूं. मेधा हूं, कीर्ति हूं, क्षमा हूं.

श्रीकृष्ण ने 16 हजार स्त्रियों से शादी क्यों की?

सीएमडी उपेन्द्र राय ने आगे कहा, दुनिया में जितने बड़े विचारक हुए, यहां तक की महात्मा बुद्ध. भारत के होठों पर जो थोड़ा नमक है, वह महात्मा बुद्ध की वजह से है. क्यों है? क्योंकि मानव के रूपांतरण की दिशा में बुद्ध ने जो क्रांतिकारी बातें कहीं, और मानवता को पंडितों के थोथे कर्मकांडों से मुक्त करके अंतर्जागरण की जो बात की, बुद्ध से पहले उतनी साफ तरीके से किसी ने नहीं की. मैं मानता हूं कि बुद्ध, महावीर और कृष्ण जैसे लोग अपने समय से बहुत पहले पैदा होते हैं. जैसे कृष्ण के बारे में, जैसी आलोचनाएं कृष्ण के समकालीन हुईं, उससे ज्यादा कटु शब्दों में आज भी लोग करते हैं, यहां तक कि कृष्ण के बारे में जो बातें अभी भी की जाती हैं कि उन्होंने 16 हजार शादियां कर ली थी. तो अभी 80 साल पहले हैदराबाद के निजाम ने तो 500 शादियां की थी, तो कृष्ण जैसे शक्तिशाली आदमी ने अगर 16 हजार शादियां की, जिनके जैसा तीनों लोकों में कोई नहीं था, तो उन्होंने 32 गुना ज्यादा ही तो की थी. जिन औरतों से उन्होंने शादी की, वे सब औरतें जरासंध के पास बंदी थीं. क्योंकि उन सभी औरतों की वह यज्ञ की बेदी में बलि देने वाला था. जब श्रीकृष्ण ने भीम से जरासंध का वध करवाया और उन सभी औरतों को मुक्त करवाया, तो औरतों ने कहा कि हम अब कहां जाएं? हमें कौन पूछेगा, हमें समाज में जगह कहां मिलेगी? तब श्रीकृष्ण ने कहा कि आप सब को मैं अपनाता हूं. उन्होंने उन सभी से शादी की. ये निर्णय लेना, इतना तरल होना, इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना, यह सिर्फ कृष्ण ही कर सकते थे.
सीएमडी उपेन्द्र राय (CMD Upendrra Rai) ने कहा, भारत में या फिर पश्चिम में, जितने विचारक हुए, उन्होंने कहीं न कहीं स्त्रियों के बारे में बड़ी कठोर बातें की. यहां तक की महात्मा बुद्ध ने भी कह दिया कि अगर स्त्रियां संघ में शामिल होंगी, तो संघ की आयु पांच सौ साल से ज्यादा नहीं होगी, लेकिन जब उनकी मां और पत्नी ने आग्रह किया, जब बुद्ध की ख्याति दुनिया भर मे चारों ओर फैल रही थी, तब उनकी मां ने भी कहा कि पुत्र मुझे भी तो मुक्ति का मार्ग चाहिए, और तुमने ऐसा क्यों कर रखा है कि स्त्रियां संघ में नहीं आ सकती हैं. क्या तुम अपनी मां में भी दोष देखते हो, तो वह अपने मां के इस आग्रह को टाल नहीं सके और संघ में प्रवेश दिया.

स्त्रियां पुरुष जैसा क्यों बनना चाहती हैं?

सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, आदि शंकराचार्य ने 3 हजार साल पहले कहा था कि स्त्रियां नरक की खान हैं. हालांकि बाद में उसे सुधारा. शुरुआत में दुनिया के बड़े विचारकों-साधकों को डर लगा स्त्रियों से. सिग्मंड फ्रायड से लेकर नीतसे से लेकर, जितने भी विचारक हुए, सभी ने अर्थविहीन बातें कीं. यहां तक की चीन में 1770 तक तक, अगर कोई पुरुष स्त्री का मर्डर कर देता था, तो उसके ऊपर केस दर्ज नहीं होता था. इसके साथ ही चीन में जो उच्च घराने की महिलाएं थीं, वह जब पैदा होती थीं, तो उन्हें लोहे के जूते पहनाए जाते थे, क्योंकि जब उसके पैर विकसित नहीं होंगे, तो जब वह महफिल में जाएगी तो आदमी के कंधे का सहारा लेकर चलेगी, अकेले नहीं चलेगी. अगर अकेले चलने की कोशिश करेगी तो चार-पांच कदम चलने के बाद गिर जाएगी, तो जो ये पीड़ा गुजरी है औरतों के ऊपर, इसने औरतों को मजबूर किया कि क्यों न हम भी इसी रास्ते को अपना लें, जो पुरुष जैसा ही है. क्योंकि पुरुष बनने में सम्मान मिल रहा है और औरत होने में सिर्फ अपमान ही अपमान, लेकिन एक उम्मीद की किरण भी है. तो कहने का मतलब ये है कि भगवान श्री कृष्ण जब औरतों के इन गुणों के बारे में बात करते हैं, तो मैं इस बात को शिद्दत से महसूस करता हूं कि ये दुनिया सुंदरतम और बेहतर से बहतर तब बनेगी, जब स्त्रियां अपने स्त्रीत्व को पूरा उपलब्ध हो जाएगी.
अभी पुरुषों ने अपने प्रभाव से डकैती डाल रखी है. अभी स्त्रियां इस द्वंद में हैं कि मुझे पुरुषों के बराबर बैठना है. कभी स्त्री पुरुष से बहुत आगे थी. हमारे यहां जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश की जो कल्पना है, जिसमें एक जन्म देने वाले हैं, दूसरे पालन करने वाले हैं तीसरे यानी कि महादेव सर्वनाश करने वाले हैं. जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन. तो जो इतना असंतुलन आया, वो कैसे आया? वो इसलिए आया कि आज से 100 साल पहले, भारत में एक परिवार में बामुश्किल एक दो लोगों की शादी होती थी. जेंडर रेशियो इतना खराब और गिरा हुआ था. महाभारत में अगर द्रौपदी की शादी पांच पुरुषों हुई, तो ये बहुत सामान्य बात थी. तब ऐसा ही होता था. क्योंकि 100 साल पहले का इतिहास देख लीजिए, प्रेमचंद की कहानियों को पढ़ लीजिए, पुराना साहित्य पढ़ लीजिए, रजनी पामदत्त की किताब वर्तमान भारत को पढ़ लीजिए, आपको समझ में आ जाएगा कि हमारी स्थिति क्या थी? तो जो लोग कहते हैं कि पहले समय बहुत अच्छा था, रामराज्य था. तो राम के समय में भी औरतों की स्थिति बहुत खराब थी. राम के समय में भी ऐसी कोई कल्पना नहीं है कि चोर-डाकू नहीं थे. पूरी रामायण भरी पड़ी है, इन कहानियों से. मैंने भी रामायण पढ़ी है, जब मैं छोटा था, तब घर पर रोज दो घंटा बैठकर रामायण अपने चाचा को सुनाता था. तब मुझे कहानी पता था, कथानक पता था, लेकिन उसके तात्विक ज्ञान के बारे में नहीं पता था. लेकिन कहानी सारी मुझे पता चल गई थी. 1995 में जब मैं हाईस्कूल पास करके घर से निकला, तब मुझे तात्विक ज्ञान के बारे में पता होना शुरू हुआ.

समाज में असंतुलन कैसे आया?

सीएमडी उपेन्द्र राय (CMD Upendrra Rai) ने कहा, जो समाज में असंतुलन पैदा हुआ, वह कैसे आया? तो जैसे हमारे यहां ऋषि-मुनियों ने पुरुषों के लिए कुछ नियम बनाए, हालांकि पुरुषों ने कोई नियम माना नहीं, सबसे ज्यादा नियम उन्होंने ही तोड़े. लेकिन स्त्रियों ने नियम माना, और बहुत सालों तक माना. हजारों सालों तक इस यात्रा को पूरा किया. ऋषियों ने नियम बनाया कि पुरुष व्यायाम करेगा, लेकिन स्त्री के लिए बनाया गया कि गायन करेगी, नृत्य करेगी, कला सीखेगी. पहले ताकत के सिर्फ दो पर्याय थे, पहला ये कि आदमी के पास कितनी जमीन है और दूसरा ये कि आदमी के पास कितनी औरतें हैं. इसके अलावा दुनिया में दो परिभाषाएं थीं, पहली- धनवान की और दूसरी गरीब की, लेकन अब, विज्ञान ने इतनी दौलत पृथ्वी पर पैदा कर दी है कि अब अलग तरह की गरीबी की चर्चा हो रही है, जैसे कोई बुद्धि से गरीब है, कोई शरीर से गरीब है, कोई विचारों से गरीब है इत्यादि. मैं ये कहना चाह रहा हूं कि जो औरतों पर संस्कार पड़े, एक एक करके, जैसे हम क्रोध करते हैं और शांत हो जाते हैं, लेकिन क्रोध की एक रेखा हमारे ऊपर निर्मित हो जाती है. जैसे में एक कमरे में पानी गिरा दें और अगले दिन आएं तो पानी नहीं मिलेगा, लेकिन उस पानी की लकीरें जरूर दिखाई देंगी. मतलब पानी ने फर्श पर अपने संस्कार छोड़ दिए. हमारे यां जो अगले जन्म की बात की जाती है, तो जो हम यहां करते हैं, उसका लेखा-जोखा इस जन्म में हो जाता है.

“50 सालों में पृथ्वी पर स्त्रियों का शासन होगा”

मैं आज आपको एक बात बोलता हूं आप 50 साल घड़ी मिलाकर रख लीजिए. पुरुष ने दुनिया पर शासन इसलिए किया, क्योंकि वह ताकतवर था, लेकिन अब Muscular ताकत की जरूरत नहीं रह गई है. अब इस दुनिया में वही शासन करेगा, जो क्रिएटिव होगा, जिसके अंदर धैर्य होगा, जिसके अंदर जितना क्षमा होगा, जिसके अंदर जितना प्यार होगा, जिसके अंदर जितनी कीर्ति होगी, जो कृष्ण कहते हैं. और मैं कृष्ण की इस बात से सहमत हूं कि ये पहला मौका आया है कि स्त्रियां सही अर्थों में अगले 50 सालों में इस पृथ्वी पर शासन करेंगी. पुरुषों का शासन नहीं होगा. AI के जमाने में आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जितने भी AI के बेस्ट मॉड्यूल बनाए गए हैं, वह सब स्त्रियों ने बनाए हैं. उसमें पुरुषों का सिर्फ 10 फीसदी योगदान है.
सीएमडी उपेन्द्र राय ने आगे कहा, तो जैसा श्री कृष्ण कहते हैं कि स्त्रियों में मैं श्री हूं, मेधा हूं, कीर्ति हूं, क्षमा हूं. एक छोटी सी कहानी से इस बात को समाप्त करूंगा. लंदन में एक प्रतियोगिता हुई, जिसमें एक आदमी को पहला पुरस्कार मिला. वहां पर सभी ने अपनी अनूठी बातें कहीं, लेकिन उसने एक बहुत ही सहज सी बात कही. उसने कहा कि हाइड पार्क में मैंने दो औरतों की एक वीडियो बनाई है. दोनों एक ही बेंच पर एक घंटे तक बैठी रहीं, लेकिन दोनों ने कोई बात नहीं की. तो हास्य प्रतियोगिता में उसे इस वीडियो के लिए पहला पुरस्कार मिला कि दो औरतें एक बेंच पर एक घंटे बैठी रहीं और बात नहीं की. तो जो महिलाएं बैठकर गपशप करती हैं, कृष्ण ने उसे वाक् नहीं कहा है. कृष्ण ने जिसे वाक् कहा है उसका मैं एक उदाहरण देता हूं- जो बातचीत होती है, वह वाक् नहीं है.

सीएमडी उपेन्द्र राय ने सुनाई वाचस्पति की कहानी

सीएमडी उपेन्द्र राय (CMD Upendrra Rai) ने कहा, वाचस्पति हुए, जिन्होंने ब्रह्मसूत्र पर टीकाएं लिखीं, और 12 साल लगे उनको टीकाएं लिखने में, और उससे पहले उनके माता-पिता ने उनसे एक आग्रह किया कि हमारे लिए ही सही तुम शादी कर लो. माता-पिता की बात मानकर वाचस्पति ने शादी की और औरत को घर ले आए. उसके बाद उन्होंने टीकाएं लिखना शुरू किया, जिसमें उन्हें 12 साल लगे. इस बीच उन्होंने अपने माता-पिता से कहा कि जिस दिन टीकाएं लिख लूंगा, उसी के अगले दिन संन्यास ले लूंगा और जंगल चला जाऊंगा. वह समय भी आया, जब आधी रात को उनकी टीकाएं पूरी हो गईं. तबी उन्होंने देखा कि एक औरत दीए की लौ को बढ़ा रही है. तब उन्होंने औरत से पूछा कि देवी आप कौन हैं? तब उस औरत ने जवाब दिया कि मैं आपकी पत्नी हूं, जिसे आप 12 साल पहले शादी करके लाए थे. मैं ही रोज दीया जलाती थी, सुबह लेकर जाती थी, लेकिन आप अपने काम में इतने व्यस्त थे कि मुझे लगा कि आपको डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए. आज आपने मुझसे इतना ही पूछा, यही मेरे लिए बहुत है. तब वाचस्पति ने कहा कि देवी मैं तो पहले से ही वचनबद्ध हूं कि मैं संन्यास ले लूंगा, जिस दिन मेरी टीकाएं पूरी हो जाएंगी.

पत्नी के नाम पर रखा टीकाओं का नाम भामती

सीएमडी उपेन्द्र राय (CMD Upendrra Rai) ने कहा, “वाचस्पति ने अपनी पत्नी से पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं? आपने मुझे क्यों नहीं याद दिलाया कि मैं आपसे शादी करके आपको लाया था. तब उस औरत ने कहा कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, आपने मुझसे पूछ लिया, यही बहुत है. तब वाचस्पति ने कहा कि मैं आपके लिए बस इतना ही कर सकता हूं कि जो 12 साल की तपस्या करके मैंने ये टीका लिखा है, उसे आपके नाम पर कर सकता हूं भामती. मेरी ओर से यही आपके लिए गिफ्ट होगा, क्योंकि 12 साल तक आपने मेरी प्रतीक्षा की है, तो इस दौरान की जो उपलब्धियां है, वह आपके नाम पर कर देता हूं. कहानी बताती है कि वाचस्पति उठे और माता-पिता को प्रणाम किया और पत्नी के भी पैर छुए और जंगल चले गए, उसके बाद वह कभी नहीं लौटे और न ही कभी मुलाकात हुई, तो कृष्ण ने जिस वाक् की बात की है, जिस वाणी की बात की है, जो वाचस्पति और भामती के बीच जो थोड़े संवाद है, मैं उसको कहता हूं वाक्. जब औरत मौन को उपलब्ध होती है, तब उसकी वाणी में ताकत आ जाती है. तब उसके मुंह से जो निकलता है वह ऋचाएं निकलती हैं. फिर उससे वेद पैदा होता है.”
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