इंडियन सोसाइटी ऑफ गांधीयन स्टडीज कॉन्फ्रेंस: महात्मा गांधी इकलौते ऐसे आदमी, जिनपर किया गया सबसे ज्यादा अध्ययन- उपेंद्र राय

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

हैदराबाद के CPDUMT ऑडिटोरियम, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय (MANUU) में 27 से 29 जनवरी 2025 तक इंडियन सोसाइटी ऑफ गांधीयन स्टडीज (ISGS) का 45वां वार्षिक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. सम्मेलन का उद्घाटन मुख्य अतिथि भारत एक्सप्रेस न्‍यूज नेटवर्क के CMD और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय ने किया. सम्मेलन का विषय “महात्मा गांधी की पत्रकारिता और समकालीन समय में इसकी प्रासंगिकता” है. इस दौरान सम्मेलन में सीएमडी उपेन्द्र राय को सम्मानित भी किया गया.

“गांधीजी पर सबसे ज्यादा हुआ अध्ययन”

सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, महात्मा गांधी इकलौते ऐसे आदमी थे, जिनपर सबसे ज्यादा अध्ययन किया गया.पहले मैं कॉलेजों में पढ़ाने से शर्माता था, लेकिन पिछले दो वर्षों में अलग-अलग संस्थानों में जाकर पढ़ाना शुरू किया तो बहुत कुछ अच्छा निकलकर आया. आज के समय में सोशल मीडिया पर मुझे सुनने वालों की संख्या तेजी के साथ बढ़ रही है. इंस्ट्राग्राम पर 6.6 मिलियन लोग जुड़ चुके हैं.

उपेन्द्र राय ने कहा कि मोहनदास करमचंद से गांधी और गांधी से महात्मा और फिर राष्ट्रपति बनने के सफर पर जरूर बात होनी चाहिए. महात्मा गांधी सबसे महान पत्रकार थे. महात्मा गांधी की पत्रकारिता मिशन की पत्रकारिता थी. युवाओं को गांधी जी के बारे में विस्तार से जानना चाहिए. जिस कुर्सी को पाने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने संघर्ष किया, उसे जवाहर लाल नेहरू को महात्मा गांधी ने दे दिया.”

सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, ईसा मसीह को जब सूली पर चढ़ाया गया, तब उनके सबसे करीबी 8 मित्र छोड़कर भाग गए, लेकिन तीन महीनों ने उनके शव को सूली से नीचे उतारा, जिसमें एक महिला वेश्या थी. दो अन्य थी, जो दूर से ईसा मसीह को सुनती थीं.

प्रेस शब्द कब आया?

सीएमडी उपेन्द्र राय ने बताया कि अब बात आती है कि मीडिया की भूमिका, तो पहले यह समझ लेना चाहिए कि विधायिका,न्यायपालिका और कार्यपालिका पहले से थीं. दुनिया के अन्य देशों, अमेरिका-ब्रिटेन में थे. प्रेस शब्द पैदा कहां से हुआ था? अस्तित्व में कब आया ये शब्द? ये चौथा खंभा लोकतंत्र का. यह 1787 में आया, जब ब्रिटेन के पार्लियामेंटेरियन और विचारक एडमंड बर्ग ने अपने एक भाषण में कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के ऊपर आंख रखने के लिए एक आंख होनी चाहिए, वो होनी चाहिए प्रेस. तब ब्रिटेन का राज पूरी दुनिया में था. जब ये बात ब्रिटेन के पार्लियामेंट से उठी तो पूरी दुनिया में फैल गई. और लोकतंत्र का चौथा खंभा बना लिया.

इसके बाद प्रेस शब्द अस्तित्व में आया. जिसके बाद से अब तक ये चीजें हमारे जेहन में हैं, लेकिन एक बात आपको बताना चाहूंगा कि भले ही मैं एक मेनस्ट्रीम मीडिया से जुड़ा हूं, एक चैनल को मैं संचालित कर रहा हूं. लेकिन मैं बहुत साफ शब्दों में कहना चाहूंगा कि आने वाले दिनों में डिजिटल मीडिया का ही भविष्य है. सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया जो समाज के निर्माण में योगदान देता है, वह बहुत अभूतपूर्व है.

कुछ उदाहरण दे रहा हूं- मई 2023 में मणिपुर की उस घटना को मेनस्ट्रीम मीडिया ने नहीं दिखाया, जिसमें दो बहनों को नग्न करके घुमाया गया था. फिर किसी ने फेसबुक पर इस वीडियो को पोस्ट किया और पूरे देश में फैल गई. संसद से लेकर सड़क तक, सुप्रीम कोर्ट तक. जो उस छोटे से क्लिप ने जागरण पैदा किया, वह बड़ा अद्भुत था, कमाल का था, और उससे परिवर्तन देखने को मिला.

खबर से युद्ध जैसा संकट पैदा हो गया

दूसरा उदाहरण- पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार दिया जाता है, उस वक्त, जब पुलित्जर अपना अखबार निकालते थे, तो उनके सामने एक उनका कंपटीटर भी अखबार निकालता था. ये लोग जर्नलिज्म के लिए जो कहानियां छपीं, अमेरिका और क्यूबा में युद्ध जैसा संकट पैदा हो गया. पुलित्जर के प्रतिद्वंद्वी ने एक खबर छाप दी, कि क्यूबा के एक जहाज पर स्पेन ने हमला करके उसे डुबा दिया है. जबकि जहाज किसी और कारण से डूबा था, लेकिन उस अखबार ने खबर को ट्विस्ट के साथ छाप दिया.

तीसरा उदाहरण- जब वियतनाम और अमेरिका के बीच युद्ध चल रहा था, तब वाशिंगटन पोस्ट ने और वियतनाम के अखबारों ने एक कोआर्डिनेटेड फोटो छापी, जिसमें एक छोटी बच्ची थी, जिसके आधे कपड़े जले हुए थे, और चीखते हुए स़क पर दौड़ रही थी, वहीं वाशिंगटन पोस्ट ने छापा कि युद्ध की विभीषिका, यह लड़ाई कब रुकेगी. इस एक फोटो ने अमेरिका के लोगों में ऐसी चेतना पैदा कर दी कि अमेरिकी लोग ही अपनी सरकार के खिलाफ हो गए, जिसके बाद अमेरिका को यह लड़ाई रोकनी पड़ी.

आज हर आदमी के हाथ में सोशल मीडिया ने एक ताकत दी है. सीधे अपनी बात दुनिया तक पहुंचा सकते हैं. मेनस्ट्रीम मीडिया अपने दायित्व को निभाने में फेल हो रहा है. इसलिए मैं मानता हूं कि सोशल मीडिया अपना दायित्व बहुत अच्छे से निभा रहा है.

अपने संबोधन के अंत में सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा कि “मुझे पत्रकारिता करते हुए 28 साल हो गया है. जब मैं 17 साल का था, तब से काम कर रहा हूं. इन वर्षों में जो भी सीखा, वही बोलता हूं. अगर किसी तरह की कोई गलती हुई हो तो उसके लिए माफी चाहूंगा.

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