भारत के हरित क्षेत्र में हुई वृद्धि, अब देश के 25.17 प्रतिशत क्षेत्र में फैला है वन और वृक्ष आवरण!

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत में वन और वृक्ष आवरण में वृद्धि हुई है, जिससे देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का अब 25.17 प्रतिशत हिस्सा कवर हो गया है. यह वृद्धि कुल 1,445 वर्ग किलोमीटर (जो दिल्ली के बराबर है) के वन क्षेत्र में हुई है. लेकिन, इस आंकड़े के साथ एक जटिल तस्वीर भी सामने आई है. रिपोर्ट में बताया गया कि अधिकतर वृद्धि वृक्षारोपण और कृषि वानिकी के माध्यम से हुई है, जबकि प्राकृतिक वनों में लगातार गिरावट भी देखी गई है.

प्राकृतिक वनों की गुणवत्ता पर चिंता

हालांकि, भारत के हरित क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन रिपोर्ट ने यह भी खुलासा किया गया है कि पिछले दशक में 92,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक प्राकृतिक वन घने से खुले श्रेणी में गिर गए हैं, जिससे वन संसाधनों की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं. देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में इस रिपोर्ट को लॉन्च करते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव (Bhupendra Yadav) ने कार्बन पृथक्करण के संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रगति की बात की और बताया कि भारत ने 2005 के आधार वर्ष के मुकाबले 2.29 बिलियन टन CO2 की वृद्धि हासिल की है.

रिपोर्ट में क्या है नया ?

इस बार की रिपोर्ट में एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है, जिसमें कृषि वानिकी और बांस क्षेत्र के विस्तार को प्रमुखता दी गई है. भारत में बांस के क्षेत्र में 5,227 वर्ग कि.मी. की वृद्धि हुई है, और कृषि वानिकी के तहत 127,590.05 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल किया गया है. रिपोर्ट में विभिन्न राज्यों का विश्लेषण किया गया है. मध्य प्रदेश सबसे बड़ा वन क्षेत्र रखने वाला राज्य है, उसके बाद अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र का स्थान है. हालांकि, कुछ राज्यों में गिरावट भी देखी गई, जैसे मध्य प्रदेश, कर्नाटका, लद्दाख और नागालैंड में.

नीति निर्माताओं, योजनाकारों और वन विभागों के लिए महत्वपूर्ण संसाधन है यह रिपोर्ट

यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं, योजनाकारों और वन विभागों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो वन संसाधनों की स्थिति को समझने और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करेगी. भारत की वन नीति और पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से यह रिपोर्ट बहुत अहम है और यह संकेत देती है कि भविष्य में अधिक ध्यान और उपायों की आवश्यकता है, ताकि हम अपने वन संसाधनों की गुणवत्ता को बचा सकें.

More Articles Like This

Exit mobile version