Parali Burning: चूल्हे में आर्सेनिक वाले उपले और पराली जलाने से गॉल ब्लैडर का कैंसर हो रहा है. यह खुलासा केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला समेत असम और बिहार और देश के कई बड़े संस्थानों के अध्ययन में किया गया है. अब इस अध्ययन को कांगड़ा, मंडी, कुल्लू और हमीरपुर जिलों में भी किया जा रहा है. यह अध्ययन केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के पशु विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. रंजीत कुमार के द्वारा किया गया है.
ये संस्थान हुई शामिल
डॉ. रंजीत कुमार के अलावा भी इसमें इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतप्रकाश बंसल, अधिष्ठाता अध्ययन प्रो. प्रदीप कुमार और पशु विज्ञान विभाग के अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार का भी विशेष सहयोग रहा है. बता दें कि इस अध्ययन में डॉ. भुवनेश्वर बरुआ कैंसर संस्थान गुवाहाटी, महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र पटना, सेंटर फॉर क्रोनिक डिजीज कंट्रोल नई दिल्ली और अन्य संस्थानों ने भी इसमें हिस्सा लिया.
प्रोफेसर रंजीत कुमार ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि गोबर में आर्सेनिक पाया जाता है. लोग उपलों का उपयोग कर रहे हैं. उसमें से जो धुआं निकलता है, इससे टॉरिन एक्टिव हो जाता है. वहीं, जिन क्षेत्रों की पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होती है, वहां अनाज के साथ पराली में भी आर्सेनिक आ जाता है.
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Parali Burning: 400 लोगों की हुई जांच
जब उपलों या पराली को जलाई जाती है, तो इससे आर्सिनेट गैस निकलती है. खाना बनाने के दौरान महिलाएं इन्हें इनहेल कर लेती हैं. लेकिन इससे आर्सेनिक कैंसर का कारण बन रहा है. इतना ही नही, अध्ययन के दौरान बायोप्सी को देखा तो उनमें आर्सेनिक 500 पीपीबी तक मिला जोकि पानी में 10 से ज्यादा मान्य नहीं होता है. इसके लिए 400 से ज्यादा लोगों की अस्पताल में जांच की गई. इसके साथ ही विशेषज्ञ गांवों में भी गए.
पानी में आ रहा आर्सेनोफाइराइट
डॉ. रंजीत कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश हिमालयन रॉक पर आता है. इस रॉक की उपर की ओर हर वर्ष चार सेंटीमीटर मूवमेंट हो रही है. जिससे आर्सेनोफाइराइट पानी में आ रहा है. पानी से पराली और अनाज में आ रहा है और जब गाय-भैंस इसी पराली को खाते हैं तो यह गोबर में भी आ जा रहे हैं. आपको बता दें कि पहले इसके वजह से गॉल स्टोन बनता है और उसके बाद गॉल ब्लैडर कैंसर का रूप ले ले रहा है. यही वजह है कि यहां भी इस विषय पर विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है.