क्या है Patanjali भ्रामक विज्ञापन मामला? जिसे लेकर SC की फटकार के बाद रामदेव को माफी मांगनी पड़ी

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने के ​लिए दायर किए गए हलफनामों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार (10 अप्रैल) को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह माफी नहीं दे सकता है. अदालत 22 नवंबर 2023 को उत्तराखंड के हरिद्वार शहर में रामदेव द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस और 4 दिसंबर 2023 को पतंजलि द्वारा दिए गए एक विज्ञापन को लेकर नाराज थी, जो 21 नवंबर 2023 के अदालत के आदेश का कथित उल्लंघन था. भ्रामक विज्ञापनों का मामला पिछले कई सालों ने रामदेव और बालकृष्ण का पीछा कर रहा है.
दोनों अपनी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद के औषधीय उत्पादों के असर के बारे में विज्ञापनों में बड़े-बड़े दावे करते रहे हैं, जिसके खिलाफ एलोपैथी डॉक्टरों के संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर ​की है. आईएमए ने अपनी में बाबा रामदेव और पतंजलि पर कथित तौर पर भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने, कुछ बीमारियों के इलाज का दावा करने और दवाइयों की एलोपैथी शाखा की आलोचना करने का आरोप लगाया है. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की सुप्रीम कोर्ट पीठ ने पहले उनके द्वारा दायर माफी हलफनामे पर असंतोष व्यक्त किया था और उन्हें कारण बताओ नोटिस पर बेहतर प्रतिक्रिया दाखिल करने का मौका दिया था.
कारण बताओ नोटिस कथित तौर पर 21 नवंबर 2023 को अदालत को दिए गए वचन का उल्लंघन करने के लिए जारी किए गए थे, कि वे ‘औषधीय प्रभावों का दावा करने वाले या चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ अचानक बयान’ जारी नहीं करेंगे. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अगस्त 2022 में पतंजलि द्वारा ‘Misconceptions Spread by Allopathy’ (एलोपैथी द्वारा फैलाई गईं गलतफहमियां) शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

 विज्ञापन में क्या दावा किया था पतंजलि ने

पतं​जलि ने इस वि​ज्ञापन में कुछ पॉइंटर्स के साथ बताया था कि बीपी, शुगर, थायराइड, आंख और कान के रोग, त्वचा रोग, लिवर, गठिया, अस्थमा और हार्ट ब्लॉकेज जैसी लाइलाज ​बीमारियों का एलोपैथी में कोई स्थायी इलाज नहीं है. इलाज को फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा इस तरह से डिजाइन किया गया है कि मरीज पूरी जिंदगी बस उनकी दवाएं ही खरीदता रहे. पतंजलि ने ये दावा भी किया था कि उनके पास इन बीमारियों का आयुर्वेदिक इलाज है, जिसमें कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है, उसे एलोपैथी की तरह दवा लेने की जरूरत नहीं होती है.

नवंबर 2023 के आदेश का भी नहीं किया पालन

21 नवंबर 2023 में याचिका पर पहली सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को चेतावनी दी थी कि भ्रामक विज्ञापनों के लिए उस पर प्रति विज्ञापन 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लग सकता है. अदालत ने मौखिक रूप से पतंजलि को यह दावा करने के खिलाफ चेतावनी भी दी थी कि उनके उत्पाद बीमारियों को पूरी तरह से ‘ठीक’ कर सकते हैं. इसी के साथ पतंजलि और उसके अधिकारियों को यह हिदायत भी दी थी कि वह मीडिया में किसी भी चिकित्सा प्रणाली की आलोचना करने वाले बयान जारी नहीं करेंगे. शीर्ष अदालत ने आदेश में कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने उसे आश्वासन दिया था कि ‘अब से खासकर पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निर्मित और मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल किए गए उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग के संबंध में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा.
पतंजलि ने यह भी कहा था कि असर के संबंध में या चिकित्सा की किसी भी पद्धति के खिलाफ कोई भी बयान किसी भी रूप में मीडिया में जारी नहीं किया जाएगा.’ शीर्ष अदालत ने कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ‘इस तरह के आश्वासन का पालन करने के लिए बाध्य है.’ आश्वासन का पालन नहीं करने और उसके बाद मीडिया में बयान जारी किए जाने पर शीर्ष अदालत ने अप्रसन्नता व्यक्त की थी. न्यायालय ने बाद में पतंजलि को कारण बताओ नोटिस जारी किया कि क्यों न उसके खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू की जाए. पतंजलि का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने कहा था, ‘विशेष रूप से कंपनी द्वारा निर्मित और मार्केंटिग किए गए उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग से संबंध किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया जाएगा और औषधीय प्रभावों का दावा करने या दवा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ कोई बयान किसी भी रूप में मीडिया को जारी नहीं किया जाएगा.’

IMA ने रामदेव पर क्या आरोप लगाए हैं

1. बाबा रामदेव ने एलोपैथी को ‘स्टुपिड और दिवालिया साइंस” बताया है.
2. रामदेव ने दावा किया है कि एलोपैथिक दवा कोविड-19 मौतों के लिए जिम्मेदार है.
3. रामदेव ने लोगों से कहा कि वे कोविड के टीके न लगवाएं.
4. फार्मा और चिकित्सा उद्योग के खिलाफ ‘गलत सूचना का निरंतर, व्यवस्थित और बेरोकटोक प्रसार’ करने का अभियान चलाया.
5. पतंजलि उत्पादों के उपयोग से कुछ बीमारियों के इलाज के बारे में झूठे और निराधार दावे किए.

इन कानूनों के उल्लंघन का आरोप

1. Drugs & Other Magical Remedies Act, 1954 (DOMA): भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने पर पहले अपराध के लिए छह महीने तक की कैद या जुर्माना हो सकता है. दूसरी बार अपराध करने पर कारावास की अवधि एक वर्ष तक बढ़ सकती है.
2. Consumer Protection Act, 2019 (CPA) की धारा 89 में कहा गया है, ‘कोई भी निर्माता या सेवा प्रदाता जो गलत या भ्रामक विज्ञापन बनाता है, जो उपभोक्ताओं के हितों के लिए हानिकारक है तो उसे एक अवधि, जिसे 2 साल के कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, की सजा दी जा सकती है और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इसके आगे के अपराध पर कारावास को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माने की राशि को 50 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है.’

IMA को डॉक्टरों का ‘गैंग’ बताया था

हालांकि रामदेव ने आदेश की परवाह किए बिना IMA को डॉक्टरों का ऐसा ‘गैंग’ घोषित कर दिया, जो उन्हें बदनाम करने का षड्यंत्र रच रहा है. रामदेव ने बालकृष्ण के साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके अप्रत्यक्ष तौर पर अदालत के आदेश पर ही सवाल उठा दिया था. रामदेव ने कहा था कि डॉक्टरों का गिरोह योग और नेचुरोपैथी के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रहा है. उन्होंने यह दावा भी किया था कि वह एविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट सिस्टम से बीमारियों को कंट्रोल यानी क्योर करते हैं. उन्होंने कई ऐसे युवकों और युवतियों को पेश करके यह दावा भी ठोका कि वह इन लोगों की शुगर और थायराइड की बीमारी पूरी तरह से ठीक कर चुके हैं. साथ ही आरोप लगाया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और पूरा मॉर्डन मेडिकल सिस्टम झूठ बोल रहा है.

कोविड-19 महामारी के समय उपजा था विवाद

ये बात कोविड-19 महामारी के समय की है. रामदेव महामारी के दौरान लगातार यह दावा करते नजर आए थे कि उनकी कंपनी (Patanjali Ayurved) ने कोविड-19 के इलाज की दवा खोज ली है. हालांकि आज तक इन दावों के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. इतना ही नहीं इस दौरान वह एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली और एलोपैथी डॉक्टरों पर लगातार निशाना साध रहे थे. दरअसल उस समय तक कोविड-19 का कारगर इलाज नहीं ढूंढ पाने को लेकर वह एलोपैथी और इससे जुड़े डॉक्टरों को आलोचना करते नजर आ रहे थे और अखबारों में पतंजलि के उत्पादों के कोविड-19 के इलाज में कारगर होने का दावा भी कर रहे थे. इस दवा का नाम ‘कोरोनिल’ था.

एलोपैथी को दिवालिया साइंस बताया था

मई 2021 में उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह कथित तौर पर यह कहते हुए पाए गए थे कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’. उन्होंने यह तक कह दिया था कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई.

वीडियो में कथित तौर पर वह कहते हैं, ‘लाखों लोगों की मौत एलोपैथी की दवा खाने से हुई है. जितने लोगों की मौत हॉस्पिटल न जाने के कारण हुई है, ऑक्सीजन न मिलने के कारण हुई है उससे ज्यादा लोगों की मौत ऑक्सीजन मिलने के बावजूद और एलोपैथी दवा मिलने के कारण हुई है.’ एक अन्य वीडियो में महामारी के दौरान उन्होंने ऑक्सीजन की कमी का भी माखौल उड़ाया था. उस समय रोजाना हजारों की संख्या में लोग कोविड-19 के कारण मारे जा रहे थे. अस्पताल – ऑक्सीजन, दवाएं और बेड – की कमी से जूझ रहे थे. उस समय वायरल एक अन्य वीडियो में रामदेव ने कहा था, ‘बेड कम पड़ गए, हॉस्पिटल कम पड़ गए, दवा कम पड़ गई, (शवों को) फूंकने के लिए श्मशान कम पड़ गए. चारों तरफ नकारात्मक वातावरण बना रखा है.’

एलोपैथी दवाओं को लेकर उनके विवादास्पद बयानों और पतंजलि उत्पादों को लेकर किए गए दावों की वजह से यह विवाद उपजा था, जिसके खिलाफ डॉक्टरों की शीर्ष संस्था Indian Medical Association ने अदालत का रुख किया था. तब मामला दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा था. याचिका में रामदेव पर आरोप लगाया था कि वह जनता को गुमराह कर रहे हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली ज्यादातर मौतों के लिए एलोपैथी जिम्मेदार है और दावा कर रहे हैं कि (पतंजलि के उत्पाद) ‘कोरोनिल’ से कोविड-19 का इलाज किया जा सकता है.

राजद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग हुई थी

रामदेव के खिलाफ कार्रवाई करने के IMA और डॉक्टरों की अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने उन्हें एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें, जिसके बाद उन्होंने अपना बयान वापस तो ले लिया था, लेकिन यह विवाद बना रहा, क्योंकि रामदेव की ओर से लगातार बयान देने का सिलसिला जारी रहा. IMA ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखकर उनके खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की थी. मई 2021 में IMA, उत्तराखंड ने इन टिप्पणियों के लिए रामदेव को मानहानि का नोटिस देते हुए उनसे माफी मांगने या 1000 करोड़ रुपये का मुआवजा देने के लिए तैयार रहने के लिए कहा था. हालांकि रामदेव में इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया और मामला अंतत: सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया.
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