मोटे अनाज के प्रति लोगों का बढ़ रहा रुझान, स्वास्थ्य के लिए है वरदान

मोटे अनाज के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा यह स्वास्थ्य के लिए वरदान है. मोटा अनाज यदि गुणों की खान हैं तो बाजरा उनका सिरमौर है. रेगिस्तान की रानी, सूरज का साथी, गरीबों का सोना- ये सभी उपनाम एक साधारण से दिखने वाले अनाज के हैं, जिसका नाम है बाजरा. 4000 वर्ष का इतिहास समेटे बाजरा ने अफ्रीका से भारत की यात्रा तय की और यहां की संस्कृति में इस कदर रच-बस गया कि दादी मां की कहानियों से लेकर खेतों के नजारों तक, हर जगह इसकी छाप देखने को मिलती है.

सूखे और कमजोर जमीन पर भी फसल देता है बाजरा

आज जब आधुनिक जिंदगी की भागदौड़ में हम पौष्टिकता की तलाश कर रहे हैं, तो बाजरा एक सुखद माध्यम की तरह सामने आता है. ये वो हीरो है, जो सूखे और कमजोर जमीन पर भी फसल देता है. जहां गेहूं और मक्का प्यासे होकर हार मान लेते हैं, वहां बाजरा अपना हरा झंडा लहराता रहता है. ये गुण ही इसे पर्यावरण का आदर्श साथी बनाते हैं, लेकिन बाजरा की असली ताकत तो उसके अंदर छिपी है. वो आयरन, कैल्शियम और विटामिन ई का खजाना है, जो आपके शरीर को हर जरूरी तत्व देता है. फाइबर, मैग्नीशियम, जिंक और विटामिन बी कॉम्प्लेक्स के साथ मिलकर ये आपके सेहत की रखवाली करता है.

हर मोर्चे पर आपके साथ खड़ा है बाजरा 

एनीमिया को हराना हो, वजन को कम करना हो, मधुमेह को कंट्रोल करना हो या हृदय को मजबूत बनाना हो, बाजरा हर मोर्चे पर आपके साथ खड़ा है. एंटीऑक्सिडेंटस गुणों से भरपूर ये कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और सांस की तकलीफ को भी दूर भगाता है. यहां तक कि माइग्रेन के दर्द से भी ये छुटकारा दिला सकता है, लेकिन बाजरा सिर्फ तन को ही नहीं, बल्कि मन को भी प्रसन्न रखता है. खिचड़ी से लेकर रोटी, पराठे बाजरा, ज्वार, जौ, रागी जैसे मोटे अनाज गेंहूं के आटे में मिलाकर या दूसरे अवतारों में पहले खूब खाए जाते थे, लेकिन धीरे धीरे इनकी जगह गेहूं चावल और मैदा ने ले ली. इसकी कई वजहें रहीं.

गेहूं और चावल ने हमें कई जरूरी पोषक तत्वों से दूर कर दिया

गेहूं और चावल स्वाद में मोटे अनाज से बेहतर माने गए. व्यस्त जीवनचर्या में आसानी से पकने वाले चावल और गेहूं के पिसे हुए पैकेट बंद आटे ने अपनी जगह बना ली, लेकिन कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च से भरपूर गेहूं और चावल ने हमें कई जरूरी पोषक तत्वों से दूर कर दिया. खान-पान में बदलाव का नतीजा ये हुआ कि मोटापे, डायबिटीज और दिल की बीमारियों के मामले में देश पहले नंबर पर पहुंच गया. इस स्थिति में एक बार फिर स्वास्थ्य विशेषज्ञों को मोटे अनाज की खूबियां याद आई. फिटनेस को लेकर जागरूक होने वाले भारतीयों को बाजरा, आटे का चोकर, रागी और ज्वार प्रिेस्क्रिप्शेन में लिखकर दिए जाने लगे. फिर से देश में मोटे अनाज की मांग बढ़ी है और इसकी एक बड़ी वजह उसका स्वास्थ्यकर होना है.
इसके कई लाभ हैं. जानकार मानते हैं कि मोटे अनाज को प्रोत्साहन मिलना खेती को जहरीले उर्वरक और कीटनाशक से मुक्ति दिलाने में सहायक होने वाला है. इससे एक ओर जहां एक नागरिक एवं पर्यावरण स्वास्थ्य में सुधार होगा, वहीं दूसरी तरफ रासायनिक उर्वरक के आयात और सब्सिडी पर हो रहे भारी खर्च से मुक्ति मिलेगी, जिससे देश की आर्थिक सेहत में व्यापक सुधार हो सकता है. बाजरा हमें याद दिलाता है कि पुरानी चीजों में भी नयापन तलाशने की कोशिश करें. अगली बार बाजार जाते समय आधुनिक पैकेजों के चकाचौंध में न खोएं, बल्कि बाजरा की ओर एक नजर जरूर डालें. ये प्राचीन अनाज आपकी जिंदगी में स्वाद और सेहत का एक नया अध्याय लिखने को तैयार है.

आइए बाजरा को अपनी रसोई और अपने भविष्य का हिस्सा बनाएं

आइए सब मिलकर बाजरा को अपनी रसोई और अपने भविष्य का हिस्सा बनाएं. बाजरा के प्रति 100 ग्राम में आप कितना पोषण पाएंगे, उस पर भी दृष्टि डालना बेहद जरूरी है. यदि कोई व्यक्ति अपने आहार में 100 ग्राम बाजरे का उपयोग करता है तो दैनिक जरूरत की 18 प्रतिशत कैलोरी, 22.5 प्रतिशत कार्बोहाइटेट, 23.2 प्रतिशत प्रोटीन, 7.7 प्रतिशत वसा, 45.2 प्रतिशत फाइबर, 4.2 प्रतिशत कैल्शियम, 44.4 प्रतिशत आयरन, 0.4 प्रतिशत सोडियम, 8.6 प्रतिशत पोटैशियम एवं 26.7 फास्फोरस प्राप्त कर लेता है.
ये आंकड़े बताते हैं कि बाजरा कितना पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक है. वर्तमान परिस्थिति में हमें ऐसी फसलों को उपजाने की आवश्यकता है, जो जलवायु परिवर्तन के दुश्प्रभावों को बेहतर ढंग से झेलते हुए खाद्य एवं पोशण सुरक्षा में सहायक बन सकें. ऐसे में बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों की खेती सर्वोत्तम विकल्प है. मोटे अनाज की खेती देश के छोटे और गरीब किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं, जिन पर जलवायु परिवर्तन और सूखा-बाढ़ का सर्वाधिक विपरीत प्रभाव पड़ता है.

विपरीत मौसम को झेलने में मोटे अनाज की क्षमता बेहतर

मोटे अनाज की खेती में महंगे एवं जहरीले रासायनिक खाद और कीटनाशकों की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे खेती की लागत घटाने में प्रभावी रूप से सहायता मिलती है. इस तरह मोटे अनाज की खेती देश के पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं. मोटे अनाज वाली फसलों की खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों के साथ कम उपजाऊ जमीन में भी होती है. विपरीत मौसम को झेलने में इनकी क्षमता बेहतर है. बाजरा खाने से ताकत मिलती है. बाजरा कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करता है, जिससे हृदय स्वस्थ रहता है. डायबिटीज से बचाव में भी बाजरा काम आता है. बाजरे में फाइबर भरपूर मात्रा में होता है, जो पाचन क्रिया को भी ठीक करता है. जौ का पानी पीने से वजन नियंत्रित रहता है. जौ को किडनी की सेहत के लिए अच्छा माना गया है.

मोटे अनाजों की खेती में बहुत कम होती है पानी की खपत

ज्वार को वैसे तो पशुओं के चारे में बहुत इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसकी एक किस्म में भरपूर मात्रा में पोटैशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. खून बढ़ाना हो या बीमारियों से दूर रहने के लिए इम्यून सिस्टम मजबूत करना हो, ज्वार बहुत काम आता है. गेहूं और धान यानि चावल के मुकाबले मोटे अनाजों की खेती में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसके अलावा इसकी खेती के लिए यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. ऐसे में ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर हैं.
वह मोटा और सस्ता अनाज, जिसे पशुओं के चारे के लायक समझकर थाली से दूर कर दिया गया, आज अपनी अहमियत रागी बिस्किट, ओटमील दलिया और मिलेट म्यूसली के स्मार्ट अवतार बता रहा है. खान-पान को लेकर दादी-नानी के नुस्खों और सीख को पुराना और आउटडेटेड समझने वालों को अब जिम ट्रेनर और न्यूट्रीशनिस्ट वही बातें नए तरीके से समझा रहे हैं. मोटे अनाज को प्रोत्साहन मिलना खेती को जहरीले उर्वरक और कीटनाशक से मुक्ति दिलाने में सहायक होने वाला है.

मोदी सरकार ने मोटे अनाजों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयास किए हैं

इससे जहां एक ओर नागरिक एवं पर्यावरण स्वास्थ्य में सुधार होगा, वहीं रासायनिक उर्वरक के आयात और सब्सिडी पर हो रहे भारी खर्च से मुक्ति मिलेगी, जिससे देश की आर्थिक सेहत में व्यापक सुधार हो सकता है. मोदी सरकार ने मोटे अनाजों को मुख्य धारा में लाने के लिए तमाम प्रयास किए हैं. विशेषकर अप्रैल 2018 से सरकार मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है.
उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छी-खासी वृद्धि की है. कई राज्यों में भी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं. मौसम के बिगड़ते मूड का सामना करते हुए खाद्य और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करना मोटे अनाज की उपज और उपयोग बढ़ाकर ही संभव है.
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