पारसी होने के बावजदू रतन टाटा का हिंदू रीति-रिवाज से होगा अंतिम संस्कार? जानिए वजह

Shubham Tiwari
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Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Ratan Tata Antim Sanskar: देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है. टाटा ग्रुप को दुनिया भर में प्रसिद्धि दिलाने वाले उद्योगपति रतन टाटा के निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर है. आज शाम 4 बजे रतन टाटा का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.

अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो गईं हैं. उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए दक्षिण मुंबई में नरीमन प्वाइंट स्थित नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए) में रखा गया है. यहां पर आम से लेकर खास लोग रतन टाटा का अंतिम दर्शन कर सकते हैं, जिसके बाद अंतिम संस्कार किया जाएगा. रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं लेकिन उनके अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों की जगह हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा. आइए जानते हैं पारसी समुदाय से आने वाले रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू परंपरा के अनुसार क्यों किया जाएगा…?

हिंदू रीति रिवाज का ये है कारण

दरअसल, दुनियाभर में पारसी समुदाय की आबादी बहुत कम है. 2021 में हुए एक सर्वे के मुताबिक दुनिया में पारसियों की तादाद 2 लाख से भी कम है. इस समुदाय के लोगों दुनियाभर में अंतिम संस्कार की अनोखी परंपरा के चलते मुश्किल का सामना करना पड़ता है. टावर ऑफ साइलेंस के लिए उचित जगह नहीं मिलने और चील व गिद्ध जैसे पक्षियों की कमी के चलते पिछले कुछ सालों में पारसी लोगों ने अपने अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव शुरू किया है.

बताते चले कि पारसी समुदाय की परंपरा के अनुसार वह जब मरते हैं तो उनके शव को चील और गिद्ध को खाने के लिए रख दिया जाता है. किंतु अब भारत के आसमान से यह पक्षी लगभग गायब हो चुका है. ऐसे में पारसियों के लिए अपनी सदियों पुरानी परंपरा को निभाना भी बहुत मुश्किल हो गया है. यही वजह है कि पारसी समुदाय के लोग अपने परिजनों का अंतिम संस्कार हिंदुओं के श्मशान घाट पर करने लगे हैं.

पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका

गौरतलब है कि हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए. पारसी समुदाय में न तो शव को जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है. पारसी धर्म में मौत के बाद शव को पारंपरिक कब्रिस्तान जिसे टावर ऑफ साइलेंस या दखमा कहते हैं, वहां खुले में गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता है. गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है. हालांकि, रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया जाएगा. इससे पहले सितंबर 2022 में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री का अंतिम संस्कार भी हिंदू रीति रिवाजों से किया गया था. ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना महामारी के समय शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हुए थे. उस दौरान पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार के रीति रिवाजों पर रोक लगा दी गई थी.

बता दें कि पारसी समुदाय के व्यक्ति की मौत के बाद शव को आबादी क्षेत्र से दूर बने दखमा यानी टावर ऑफ साइलेंस में ले जाया जाता है. टावर ऑफ साइलेंस में शव को ऊंचाई पर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है. इसके बाद मृतक के लिए आखिरी प्रार्थना शुरू की जाती है. प्रार्थना के बाद शव को चील और गिद्ध जैसे पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है. हालांकि, इस परंपरा का पालन करना अब मुश्किल है. यही वजह है कि पारसी समुदाय के लोग हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करते हैं.

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