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Mahakumbh: Mahatmya Par Mahamanthan: प्रयागराज शहर में शुक्रवार को हुए भारत एक्सप्रेस के मेगा कॉन्क्लेव ‘महाकुंभ: माहात्म्य पर महामंथन’ में परमार्थ निकेतन आश्रम के प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कुंभ के अलावा विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे. कुंभ में किस तरह की तैयारियां हैं, इसके जवाब में स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस बार का कुंभ अनोखा है, अलौकिक है, अद्भुत है, अकल्पनीय है. मैंने पूरे विश्व में बड़े-बड़े इवेंट्स देखे हैं, लेकिन मैं आपको कह सकता हूं यह भारत का सौभाग्य है कि भारत के पास एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी सोच ही अलग है.’
महाभारत नहीं महान भारत की जरूरत
उन्होंने कहा, ‘आज अगर पूरे विश्व में कोई संकट है तो वह सोच का संकट है. एक सोच यह भी है कि अब इस देश को महाभारत की नहीं बल्कि महान भारत की जरूरत है, इसलिए इसे उस दिशा में ले जाने के लिए भारत के ऊर्जावान यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ी अमर रहे.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह जोड़ी सचमुच सबको जोड़ने के लिए है. सब जुड़े सबको जोड़ा जाए, इसी का प्रयास है यह कुंभ. पूरे विश्व में बड़े बड़े फंक्शन होते हैं, लेकिन इतना बड़ा कभी नहीं होता लेकिन जब भी वहां कुछ भी होता है निश्चित रूप में क्राइम भी होते हैं. यहां इतनी बड़ी गैदरिंग होती है, लेकिन कोई क्राइम नहीं. अगर संदेश है वो है संगम का संदेश, एकता का संदेश.’
इको फ्रेंडली कुंभ
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा, ‘मुझे याद है 2019 में जब मैं योगी आदित्यनाथ जी के साथ भोजन कर रहा था तो मुझसे उन्होंने कहा था कि हमने इस बार टेंट सिटी बनाई है तो मुझे देखने के लिए सुरेश खन्ना के साथ भेजा, मैं देखकर आया. मैंने उनको आकर कहा कि आपने टेंट सिटी बनाई है, मुझे लगता है हम टाट सिटी बनाएंगे. टाट सिटी मतलब सबकुछ जूट का हो. मतलब सारा कुछ इको फ्रेंडली हो. दूसरा प्लास्टिक मुक्त कुंभ बने.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा पूरे कुंभ में हम ऐसी व्यवस्था करें कि अपना थैला, अपनी थाली, कुंभ कभी न होगा मैला. इसलिए अपनी-अपनी थाली लेकर आओ. एक लाख थालियों का प्लान किया जा रहा है, ताकि जो आएं उनको फ्री में दी जा सकें. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी किया कि 10 लाख थालियां लोगों को फ्री में दी जाए. हर कैंप को थाली मिले हर कैंप को थैला मिले, ताकि कुंभ न हो मैला, क्योंकि मेले मैल नहीं बढ़ाते मेल बढ़ाते हैं.’
राष्ट्रीय एकता का महायज्ञ
राष्ट्र निर्माण में ये महाकुंभ कितना महत्वपूर्ण है, इसके जवाब में चिदानंद सरस्वती ने कहा, ‘भारत के ऊर्जावान यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने 13 दिसंबर को ही कह दिया था कि यह राष्ट्रीय एकता का महायज्ञ है, क्योंकि मुझे लगता है यह सरकार नहीं है, यह संस्कारी सरकार है. उसके दिमाग में है कि यदि राष्ट्र को खड़ा करना है तो आप कोई और तरीके से खड़ा नहीं कर सकते उसके लिए अहंकार से नहीं संस्कार से खड़ा करना होगा, क्योंकि जीता हुआ भी व्यक्ति हार जाता है अहंकार से और हारी हुई बाजी भी आदमी जीत जाता है संस्कार से. भारत ताकत और तलवारों के बल पर नहीं, यह संस्कृति और संस्कारों के बल पर खड़ा है.’
संस्कृति और संस्कारों का बल
उन्होंने कहा, ‘भारत ताकत और तलवारों के बल पर नहीं, यह संस्कृति और संस्कारों के बल पर खड़ा है. यह राष्ट्र का यज्ञ है. इस देश से समता, सद्भाव, समरसता की धारा बहेगी. संगम के तट से संदेश जाएगा, आकर देखो विश्व के लोगों जब डुबकी लगती है तो सब एक हो जाते हैं. यह देश सबका है, इसको सबको सजाना है.’
वे कहते हैं, ‘बात संभल की भी क्यों ना हो, डरना किस बात का खुदने दो, एक जगह नहीं हर जगह खुदने दो. किसे चिंता है, अगर सच है सच ही निकलेगा. इसलिए उस सत्य के लिए साहस चाहिए, समर्पण चाहिए अगर मेरे अंदर साहस है, सत्य है, समर्पण है तो भारत एक्सप्रेसवे पर चलेगा. मैं आज कहना चाहता हूं संभल एक सिम्पटम है, रोग तो बहुत हुए हैं, ये एक सिम्पटम है इसलिए संभल संदेश देता है कि अब संभलने का समय आ गया है. संभल कहता है कि बहुत कुछ संभालो, नहीं तो बहुत कुछ संभाल लिया जाएगा.’
न कटेंगे, न काटेंगे
उन्होंने कहा, ‘जहां तक बंटने और कटने की बात है. मैं कहना चाहूंगा जब-जब भारत बंटा, तब-तब भारत कटा, जब-जब भारत बंटा, तब-तब भारत घटा. आप देख लीजिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान, पीओके, बांग्लादेश अपने सामने सब कुछ घटता चला जा रहा है. इसलिए निश्चय करें इस संगम के तट से न कटेंगे, न काटेंगे, ये सनातन है, संगम है, यही कुंभ है. कुंभ कोई डुबकी का नाम नहीं है. यह सागर मंथन से शुरू होने वाली कहानी स्वयं के मंथन यानी आत्म मंथन की कहानी है. अगर आप आत्म मंथन करेंगे, उन मौलानाओं को भी लगेगा कि एक देश हमने ले लिया, जिसमें 8 लाख हेक्टेयर जमीन है और यहां पर वक्फ के पास 9.5 लाख एकड़ की जमीन है. अगर ऐसा है तो वक्फ का भी वक्त आ गया है.’