मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर नर्मदा, सोन और जालेश्वर नदी का उदगम स्थल है। यहां मन मोहने वाली हरियाली दिखाई देती है। अमरकंटक जाने के लिए मैं प्रयागराज से एक कार द्वारा निकला, रास्ते में मध्य प्रदेश के रीवा जनपद पहुंचने से पहले राम पहाड़ी के चारो ओर खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य काफी अच्छे लग रहे थे। रीवा से होते हुए शहडोल से पहले लगभग 10 किलोमीटर अमरकंटक जाने के लिए एक हाईवे मिलता है। यहां से लगभग 90 किलोमीटर बाद अनूपपुर जिले में अमरकंटक है। अमरकंटक से लगभग 30 किलोमीटर पहले पहाड़ी सुनसान रास्ता था। इस रास्ते पर कई झरने और हरियाली आंखों को काफी सुकून दे रही थी। अमरकंटक पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी, वहां एक गेस्ट हाउस में रुक गया। गेस्ट हाउस के एक कर्मचारी से पूछा कि नर्मदा नदी का उदगम स्थल कितना दूर है, उसने बताया कि 500 मीटर पर ही यह स्थान है, मैं वहां पहुंच गया। नर्मदा नदी के उदगम स्थल पर सफेद रंग से रंग हुए कई मंदिर थे और नर्मदा नदी एक कुंड से एक धारा के रूप में निकल रही थी। जब मैं वहां पहुंचा, तब पुजारी नर्मदा नदी मंदिर की पूजा-अर्चना कर रहे थे।
कुछ देर रुकने के बाद जब मैं मंदिर के द्वार से निकला, तब मुझे प्राचीन मंदिरों की एक श्रृंखला दिखाई पड़ी, जब पहुंचा तब मालूम हुआ कि यह मंदिरों की श्रृंखला सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुलती है, जो पुरातत्व विभाग के द्वारा संरक्षित है और यह विभाग इन मंदिरों को देखने के लिए 25 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट भी लेता है । यही पर अमरकंटक के थानाध्यक्ष इंस्पेक्टर सुनील बाजपेयी से मुलाकात हुई, मेरे मन में बार-बार यही सवाल उठ रहा था कि छत्तीसगढ़ नक्सलियों की गतिविधियों का काफी बड़ा क्षेत्र है, ऐसे में क्या यहां पर कभी कोई नक्सली घटना हुई है या नहीं हुई है, इस बारे में जब मैने इंस्पेक्टर सुनील बाजपेयी से पूछा, तब उन्होंने बताया कि आज तक अमरकंटक में कोई भी नक्सली घटना नहीं हुई है, जबकि ये आदिवासी क्षेत्र है। पूरा क्षेत्र काफी शांत रहता है और अपराधिक घटनाएं ना के बराबर हैं। यह सुनकर मुझे सुकून हुआ, क्योंकि अक्सर मैं कई लेखों में यह पढ़ चुका था कि अमरकंटक के आसपास छत्तीसगढ़ राज्य के जनपदों में नक्सली घटनाएं हुई हैं और जल्द ही अमरकंटक में सीआरपीएप कैंप स्थापित होगा, जिससे यहां पर कोई ऐसी घटना न होने पाए। यहां आने के बाद मैंने महसूस किया कि धार्मिक क्षेत्र होने के नाते कहीं न कहीं नक्सली भी इस क्षेत्र में कोई भी वारदात नहीं करते हैं।
यह पूरा क्षेत्र जंगलों से भरा हुआ है और जगह-जगह कई सुंदर वाटर फाल है, जिनमें से कपिल धारा, दुग्ध धारा, गंगा धारा आदि हैं। अगले दिन मैं इन मंदिरों को देखने पहुंच गया और वहां लिखे पत्थरों का इतिहास भी मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया। जो इन पत्थरों पर लिखा था वह इस तरह है ।
कर्ण मंदिर
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कल्चुरि नरेश कर्ण देव ने (1041-1073 ई.) में करवाया था। यहाँ एक ही जगती पर तीन गर्भगृह निर्मित है, इस प्रकार के त्रिआयतन मंदिर कम ही है। इन तीनों मंदिरों के समक्ष एक उभरा मण्डप बनाने की योजना रही होगी, जो किसी कारणवश पूर्ण नहीं हो सकी।
विष्णु मंदिर
यह मंदिर केशव नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में दो गर्भगृह उनके अन्तराल और एक मण्डप है। पंचरथ गर्भगृह का शकुवाकार शिखर नागर शैली में है। मण्डप की छत फाँसना शैली में निर्मित है, भर्गगृह तथा मण्डप के प्रवेश द्वार के ललाटबिम्ब पर गणेश का शिल्पांकन है। यह मंदिर कल्चुरिकालिन 11 वीं-12वीं शती ई. का माना जाता है।
पंचमठा मंदिर
यहा पांच मंदिरों का समूह है, इसीलिये यह पंचमठा के नाम से जाना जाता है। पत्थर के चबूतरे पर स्थित इन मंदिरों पर चूने का मोटा प्लास्टर है। यह मंदिर 15वी-16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में गोंड शासन काल में निर्मित माने जाते है।
पातालेश्वर मंदिर
पातालेश्वर मंदिर का निर्माण आदी जगतगुरु शंकराचार्य ने कराया था। मंदिर में लगभग 10 फीट नीचे शिवलिंग है। इस शिवलिंग की स्थापना नहीं की गई है, बल्कि यह शिवलिंग स्वयं ही निर्मित है। माना जाता है कि वर्ष में एक बार नर्मदा जी अपने पिता भोलेनाथ से मिलने खुद गर्भगृह तक आती हैं। मंदिरों के इस परिसर में एक कुंड भी है, जिसे सूर्य कुंड कहा जाता हैं। सूर्य कुंड का निर्माण भी आदी शंकराचार्य ने ही कराया था। इसी सूर्य कुंड के कुछ ही मीटर पर नर्मदा माता का मंदिर है, जहां नर्मदा नदी का उदगम स्थल है।
अमरकंटक के ऐतिहासिक मंदिर समूह परिसर ‘रंगमहला’ में 41 वर्ष बाद कोर्ट के आदेश के बाद पूजा-अर्चना शुरू हो पाई। मंदिरों के इस प्राचीन परिसर में 15 छोटे-बड़े मंदिर हैं। पुरातत्व विभाग ने मंदिरों को संरक्षित घोषित करते हुए लगभग 41 वर्ष पूर्व पूजा-अर्चना पर रोक लगा दी थी। 1998 में द्वारिका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने यहाँ पूजा करने का प्रयास किया तो उन्हें अनुमति नहीं मिली थी। यह मामला सन् 2015 में अपर सत्र न्यायालय राजेन्द्रग्राम में दाखिल हुआ और 7 वर्ष के बाद 16 सितंबर, 2022 को न्यायालय ने पूजा-अर्चना पर लगी रोक को हटा दिया था।