Bharat Literature Festival 2025 में बोले भारत एक्‍सप्रेस के CMD उपेंद्र राय- ‘स्‍त्री समर्पण भाव से, लेकिन पुरुष गुणा-गणित से प्रेम करता है’

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Bharat Literature Festival 2025 Season 4: भारत लिटरेचर फेस्टिवल की ओर से चौथे सीजन का आयोजन आज (26 मार्च) दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस में किया जा रहा है. कार्यक्रम में तमाम दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की. इस दौरान भारत एक्सप्रेस के सीएमडी एवं एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय भी शामिल हुए. CMD उपेन्द्र राय ने ‘Women of the New Era’ (नए दौर की महिलाएं, सपने, संघर्ष और स्वतंत्रता) पर अपने विचार व्यक्त किए. सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, सवाल ये उठता है कि स्त्री को लेकर अभी भी कोई संस्थान बनाने की, कोई स्कीम बनाने की और इस पर विमर्श करने की जरूरत क्यों पड़ती है? हम क्यों स्त्री के संघर्ष, सपने और उसकी सफलता पर चर्चा करते हैं?
शायद किसी के बारे में इसलिए बात होती है क्योंकि कुछ बात होती है. अगर बात न हो, तो शायद बात करने की जरूरत न पड़े, बात या तो सफलता के बारे में होती है या फिर असफलता के बारे होती है. बात या तो मजबूत के बारे में की जाती है, या फिर बात सबसे पीड़ित के बारे में की जाती है, जिसके लिए दया और सहानुभूति उमड़ रही होती है. उन्होंने आगे कहा कि समाज के बदलाव में सबसे कम योगदान वे लोग देते हैं, जो समाज के सबसे निचले पायदान पर होते हैं, क्योंकि समाज में उतार-चढ़ाव आए, महंगाई आए, गरीबी आए, व्याभिचार आए, सदाचार आए, इससे उनपर कोई फर्क नहीं पड़ता है. वे लोग इम्यून होते हैं. वहीं, दूसरी स्थिति होती है अति अमीरों की, लेकिन क्रांति वहां से पैदा होती है, जो इन दोनों के बीच की स्थिति होती है. हमारे-आप जैसे लोगों की, मध्यम वर्ग की. क्रांति हमेशा मध्यम वर्ग लेकर आता है.

‘स्त्री के बारे में हमें चर्चा करने की जरूरत क्यों पड़ती है?’

सीएमडी उपेन्द्र राय ने आगे कहा कि अब सवाल ये उठता है कि स्त्री के बारे में हमें चर्चा करने की जरूरत क्यों पड़ती है? तो इसलिए चर्चा करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि स्त्री का स्वभाव ऐसा है कि वह जिसको भी देती है अपना सर्वस्व दे देती है. जब स्त्री प्रेम करती है तो वह गुणा-गणित से प्रेम नहीं करती है. वह समर्पण भाव से प्रेम करती है, लेकिन पुरुष गुणा-गणित से प्रेम करता है, पुरुष प्रेम करते समय भी कुछ पाना चाहता है, लेकिन स्त्री प्रेम करते समय सब कुछ खो देना चाहती है. ये जो खो देने का उसका जुनून है, पुरुष को ताकतवर बना देता है और स्त्री को हारा हुआ महसूस करा देता है. इसलिए मैं मानता हूं कि स्त्रियों के साथ पुरुषों ने बड़ा गहरा छल किया है, क्योंकि जिस स्त्री से पुरुष का जन्म हुआ, आज पूरी दुनिया में ये विर्मश है, आज अमेरिका और यूरोप में ऐसा नहीं है कि स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी है, कभी अमेरिका में महिलाओं की स्थिति भारत से ज्यादा खराब थी. यूरोप की बद से बदतर स्थिति थी. अमेरिका और यूरोप की महिलाओं को वोट देने का अधिकार भारत की महिलाओं से बाद मिला. उपेन्द्र राय ने कहा, “वैसे तो हम विश्व गुरु होने का दम भरते हैं, लेकिन चेला बराबर की भी हमारी औकात नहीं है, क्योंकि जो विश्व गुरु के पैमाने हैं, वो कभी रहा होगा भारत. अल्लामा इकबाल की एक कविता है कि ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा.’…तो पहले कभी थी हमारी ऐसी स्थिति, हमारे महापुरुषों ने ऐसा प्रयास किया, यहां तक कि महात्मा बुद्ध जैसे तेजस्वी व्यक्ति को भी स्त्रियों को संघ में लेने में बड़ी दिक्कत थी, उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर स्त्रियों को संघ में लिया गया तो संघ 500 सालों से ज्यादा नहीं चल पाएगा.”

मनु महाराज बोले थे- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः

आदि शंकराचार्य ने स्त्रियों के बारे में अच्छे श्लोक भी लिखे, तो मनु ने स्त्रियों को नरक की खान तक बताया, लेकिन मनु ने ये भी लिखा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः तो बड़ी दुविधा रही कि हमारे पूरे मानस में और हमारे मनीषियों के मानस में बड़ी दुविधा बनाकर रखी गई…तो एक द्वंद पैदा हुआ कि किन-किन चीजों से मुक्त होना है? संसार से मुक्त होना है, संसार माया है, रुपया-पैसा से मुक्त होना है. काम-वासना माया है. हमारे भारतीय वाङ्मय में काम-वासना के देवता कामदेव को तो रखा गया है, लेकिन काम कहां से पैदा होता है, काम तो पुरुष से पैदा होता है. काम स्त्री से भी पैदा होता है. हमारे अंदर लालच है तो लालच का कोई देवता तो है नहीं इतिहास में या फिर हमारे वाङ्मय में. क्रोध का कोई देवता नहीं है, हालांकि क्रोध का नाम आने पर दुर्वासा ऋषि का नाम जरूर याद आ जाता है, लेकिन और किसी की याद नहीं आती है, …तो इन चीजों से मुक्त होने की जगह हमने स्त्री को चुन लिया, और हमारे साधु-संन्यासियों ने स्त्रियों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय किया. इसलिए मैं मानता हूं कि पूरी दुनिया की आधी आबादी अगर मौन और बेबस-लाचार रहेंगी, तो बची हुई आधी आबादी के लोग दुनिया को सुंदर नहीं बना पाएंगे. आधी आबादी जब सबल होगी, माताएं-बहनें जब मजबूत होंगी, किसी मंच पर खड़ी होकर बोलने में समर्थ होंगी, तब मुझे लगता है कि ये दुनिया सही अर्थ में मजबूत बनेगी.

अपने विवाह बंधन, पत्‍नी-पुत्र का CMD ने किया जिक्र

सीएमडी उपेन्द्र राय ने कहा, “21 साल पहले जब मेरी शादी हुई थी, तो मेरी पत्नी अपना नाम रचना लिखती है, उसके आगे या फिर पीछे कुछ नहीं लिखती है, तो मैंने उनसे पूछा कि आगे या फिर पीछे कुछ लिख देना चाहिए. आईआईटी से पीएचडी भी हैं. मैंने कहा, डॉक्टर ही लगा दो, तो वह बोलीं कि क्या जरूरत है डॉक्टर लगाने की. बाद में जब मेरी पहली बेटी हुई तो उन्होंने कहा कि बेटी का भी सरनेम नहीं लिखा जाएगा, तो मैंने भी कहा कि ठीक है नहीं लिखा जाएगा. मैंने इतने सहज भाव से जवाब दिया कि उनको आश्चर्य लगा कि ये राय सरनेम लगाने के लिए जरा भी लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं. एकदम आसानी से हां कर दी. उन्हेंने मुझसे पूछा कि इतनी आसानी से कैसे आप मान गए? तो मैंने कहा कि तुम्हारी बात का सम्मान किया. फिर जब सात साल बाद हमारा बेटा पैदा हुआ 21 मई 2012 को. तब नाम रखने की बात चली तो मैंने कहा कि साद्यांत रखते हैं, भगवान विष्णु का नाम है, तो उन्होंने कहा कि उसकी बहन राग कौशल सीख रही है तो आगे कौशल लगा देते हैं. इस पर मैंने हां कर दी और बेटे का नाम साद्यांत कौशल रखा गया…तो महिलाओं के मन में इतना संशय है कि मेरा सहज मान लेना भी उसको संशय लगा. अगर मैं उसकी बात टालकर उससे लड़ता-भिड़ता तो उसे शायद ज्यादा खुशी मिलती. हालांकि बाद में भी एक-दो बार रिश्तेदारों ने टोका कि आपने सरनेम नहीं लगाया, ये तो कमाल की बात हो गई. तो ये भी औरत का एक सहज, सरल स्वभाव है. उसको भरोसा ही नहीं होता है कि उसे कोई चीज सरल और सहज भाव से मिल गई. महिलाओं को इतना तड़पाकर और लड़ाकर कदम-कदम पर महिलाओं को दिया गया है कि उसे मिली हुई हर चीज Reward लगती है.”

चीन में महिलाओं को पहले निभानी पड़ती थी ये प्रथा

सीएमडी उपेन्द्र राय ने आगे कहा, चीन में 70 के दशक में अगर कोई मर्डर कर देता था तो उसपर पुलिस केस नहीं लगता था. इसके साथ ही चीन में जो उच्च घराने की महिलाएं थीं, वह जब पैदा होती थीं, तो उन्हें लोहे के जूते पहनाए जाते थे, क्योंकि जब उसके पैर विकसित नहीं होंगे, तो जब वह महफिल में जाएगी तो आदमी के कंधे का सहारा लेकर चलेगी, अकेले नहीं चलेगी. अगर अकेले चलने की कोशिश करेगी तो चार-पांच कदम चलने के बाद गिर जाएगी. इसलिए जिस समाज में स्त्रियों पर कब्जा करने की लड़ाई हो, वह समाज कैसे विकास करेगा. आज से 80 साल पहले हैदराबाद के निजाम के पास 500 रानियां थीं. क्योंकि इस पृथ्वी पर ताकतवर आदमी के दो निशान हैं.

‘जिसके पास फाइनेंशियल पावर, आज वही मालिक’

उन्‍होंने यह भी कहा, “जिसके पास फाइनेंशियल पावर है वही आज मालिक है. पुरुष हो या औरत वह अकेले खड़ा रहे, तो वह टूट जाएगा, लेकिन वह समाज के साथ खड़ा है, तो सरवाइव कर सकता है. मैं बहुत सारी औरतों को जानता हूं, दुनिया के 87 देश होकर में आया हूं वर्ल्ड को ठीक से देखा हूँ. आज हमारे आपके घरों में औरतों को भरमाकर बिना दरवाजे के बंद कर दिया जाता है. उनको अपने मन की बात कहने और करने से रोका जाता है. औरतों को उड़ने के लिए पंख देने चाहिए, आसमान वो खुद बना लेती हैं. परमात्मा ने पुरुषों और औरतों को अलग तरह से निर्मित किया है. उन्होंने कहा कि मैं इस बात को सिरे से खारिज करता हूं कि पहले का जमाना अच्छा था. मैं कहता हूं आज का जमाना अच्छा है. आज मोबाइल का बटन दबाते ही हमें सारी सुख सुविधा उपलब्ध है. एक जमाना था- जब जानवरों के गोबर से अनाज निकालकर आया करते थे. आज हम विकसित युग में जी रहे हैं. अमेरिका आज हमसे कहीं ज्यादा आगे निकल चुका है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह ये नहीं पूछते हैं कि आप किस जाति से हो.”

¤ कार्यक्रम की झलकियां ¤

भारत एक्सप्रेस के सीएमडी एवं एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय के संबोधन में स्पष्ट था कि स्त्रियों के अधिकारों, उनके संघर्षों और उनके स्वभाव पर विचार करने की जरूरत आज भी मौजूद है. उनका विश्वास है कि समाज में बदलाव लाने के लिए महिलाओं को सशक्त करना अत्यंत आवश्यक है. उनका यह संदेश यह प्रेरणा देगा कि जब महिलाएं स्वतंत्र और मजबूत होंगी, तभी समाज का संपूर्ण विकास संभव होगा.

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