महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ के साथ जावेद अख्तर ने बताया दिल का रिश्ता, बोले- वो मेरी जिंदगी में पिरोए हुए हैं

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Neeraj Samman Samaroh: देश के महान कवि, गीतकार और लेखक गोपाल दास ‘नीरज’ की छठी पुण्यतिथि के मौके पर राजधानी दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में काव्यांजलि और नीरज सम्मान समारोह का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम में ​गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर को सम्मानित किया गया. उन्हें प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपय का चेक दिया गया. जावेद ने अपने संबोधन में दिवंगत कवि गोपाल दास ‘नीरज’ के साथ अपने भावनात्मक जुड़ाव को जाहिर किया.

पुरस्कार ग्रहण करने के बाद जावेद अख्तर ने श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं बहुत आभारी हूं आप सबका, जो मुझे यहां इतनी इज्जत और सम्मान मिला. मुझे यहां पुरस्कृत किया गया. एक अजीब-सी कहानी है मेरी जिंदगी से जुड़ी. महाकवि गोपालदास नीरज से मेरा क्या रिश्ता था, क्या नहीं था… इन दोनों सवालों का जवाब बड़ी मुश्किल से दिया जा सकता है. वो मेरी जिंदगी में पिरोए हुए हैं. जब मैं 10-11 साल का था… 1952 की बात कर रहा हूं. मैं उस समय अलीगढ़ में था. वहां एक गर्ल्स कॉलेज था. चूंकि मैं तब छोटा था, तो उस गर्ल्स कॉलेज के हॉस्टल में जा सकता था.’

‘अलीगढ़ में कवि सम्मेलन होते थे, गोपाल जी छाए रहते थे’

उन्होंने कहा, ‘अलीगढ़ में जब कवि सम्मेलन होते थे तो महाकवि गोपालदास नीरज वहां सुपरस्टार होते थे. आपने कहीं उनकी पंक्तियां सुनी होंगी कि ‘कारवां गुजर गया…’ अपने बचपन में बरसों पहले मैंने उनके मुंह से ही सुनी थीं. उसके बाद कुछ बड़ा हुआ तो मैं भोपाल आ गया. भोपाल में भी नीरजजी की बड़ी फैन फॉलोइंग थी. फैमिली थी. नीरज जी आते थे तो वहीं ठहरते थे. मैं तब कॉलेज में पढ़ता था. हालांकि, मेरी उनसे मुलाकात तब भी होती थी. फिर जब मैं मुंबई आया.. तो नीरज जी भी मुंबई आ गए.’

‘जिन लोगों के मैंने पैर छुए, उनमें से एक नीरजजी ही थे’

जावेद बोले, ‘मैंने नीरजजी से कहा कि दादा मैं तो जाता ही नहीं हूं कवि सम्मेलनों में, क्योंकि मैं उतना काबिल नहीं हूं. हालांकि, मैं जब कभी सम्मेलनों में जाता था, उनसे मेरी मुलाकात होती रहती थी. वो मुझे भूलते नहीं थे. मेरी जिंदगी में सिर्फ 2-3 आदमी रहे हैं, जिनके मैं पैर छूता हूं, उनमें से एक नीरजजी थे. एक बार जब मैं दिल्ली आया था तो यहां भी उनसे मिला. दिल्ली और अलीगढ़ में 88 मील की दूरी है, मैंने एक कार ली और बिना कोई मतलब के वहां चला गया. सीधे उन्हीं के घर गया. वहां दोपहर गुजारी, वहीं उनके साथ खाना खाया. तस्वीरें भी खिंचवाईं. उसके बाद शाम को वहां से वापस आ गया. अब मैं क्यों गया, कोई वजह नहीं थी. लेकिन दिल में आया और फिर मैं उनके घर ही उनसे मिलने चला गया.’

महाकवि गोपालदास नीरज को याद करते हुए जावेद अख्तर आगे बोले, “जब मैं उनके पास गया था, तब की तस्वीरें उनके परिजनों के पास भी मौजूद हैं. उस मुलाकात के ही महीने-डेढ़ महीने बाद वे ये दुनिया छोड़कर चले गए. ये अलग तरह का रिश्ता था उनके साथ मेरा..जो था भी और नहीं भी था.”

यहां देखिए काव्यांजलि कार्यक्रम से संबंधित पूरा वीडियो-

More Articles Like This

Exit mobile version