Ayodhya: कहानी है भारतीय जन मानस में आस्था के केंद्र भगवान श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या की. अयोध्या जिसका अजुध्या, अवध, साकेत, कोसम कई नाम है. कहा जाता है कि भगवान राम के स्वधाम जाने के बाद सरयू में आई बाढ़ से अयोध्या की भव्य विरासत को काफी क्षति हुई थी. अयोध्या (Ayodhya) की विरासत को भगवान राम के पुत्र कुश ने नए सिरे से सहेजने का प्रयास किया और राम जन्मभूमि पर विशाल मंदिर का निर्माण कराया. युगों के सफर में यह मंदिर और अयोध्या जीर्ण-शीर्ण हुई, तो राजा विक्रमादित्य ने इसका उद्धार किया. कहा जाता है कि एक समय अयोध्या (Ayodhya) भारत की राजधानी हुआ करती थी जो बाद के कालखंड में हस्तिनापुर हो गई.
पिछले 500 वर्षो में रामनगरी अयोध्या की चर्चा मुगलों के आक्रमण और मंदिर को तोड़े जाने पर केंद्रित रही. पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त इतिहास के मुताबिक राम मंदिर की वापसी के लिए 76 युद्ध लड़े गए. ऐसा भी हुआ, जब विवादित स्थल पर मंदिर के दावेदार राजाओं और लड़ाकों ने कुछ समय के लिए उसे हासिल भी किया पर यह स्थाई नहीं रह पाया. हालांकि अयोध्या (Ayodhya) पर आक्रमण करने वाला बाबर कोई पहला आक्रमणकारी नहीं था.
बाबर से पहले अयोध्या कौन आया था
जी हां, मुगल शासक बाबर के आने से पहले विदेशी यवन राजा मिनेंडर (मिहिरकुल) अयोध्या आया था. उसके आक्रमण के तीन महीने के अंदर ही शुंग वंश के राजा द्युमत्सेन ने रामजन्मभूमि को फिर से मुक्त करा लिया. यही नहीं, सोमनाथ मंदिर को कई बार लूटने वाले महमूद गजनवी के भांजे मसूद गाजी ने भी रामनगरी पर आक्रमण की कोशिश की थी. बताया जाता है कि मसूद गाजी दिल्ली, मेरठ, बुलंदशहर को रौंदता हुआ आगे की ओर बढ़ रहा था. रास्ते में स्थानीय राजाओं से लड़ाई करते बड़ी संख्या में देवस्थलों को ध्वस्त करता गया. वह बाराबंकी तक आ गया था और रामजन्मभूमि जाना चाहता था.
गाजी के मंसूबे नाकाम
साल 1034 की बात है, जब कौशल के महाराज सुहेलदेव से गाजी का युद्ध हुआ. महाराजा की ताकतवर सेना ने गाजी की 1.30 लाख सैनिकों वाली फौज का सफाया कर दिया. उस समय अयोध्या सुहेलदेव की उपराजधानी हुआ करती थी. हालांकि सैकड़ों साल बाद 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी का हमला किया और अयोध्या (Ayodhya) को फिर संघर्ष करना पड़ा. ये इंतजार फिर से 500 वर्ष लंबा खिंचा. मंदिर तोड़ दिया गया. जैसे ही खबर आसपास के क्षेत्रों में पहुंची कई राज्यों की सेनाओं ने मीर बाकी पर हमला बोल दिया. बताया जाता है कि तब 15 दिनों तक लगातार युद्ध लड़ा गया था.
वो वीर पांडेय
मुगल शासक बाबर की जीवनी में हंसवर नरेश के राजगुरु पंडित देवीदीन पांडेय की वीरता का जिक्र मिलता है. इसमें लिखा गया है कि देवीदीन ने अकेले 700 से अधिक सैनिकों को मिट्टी में मिला दिया था. एक ब्रिटिश इतिहासकार ने भी उस समय का वर्णन करते हुए लिखा है कि डेढ़ लाख से ज्यादा लाशें गिरने के बाद ही मीर बाकी अयोध्या मंदिर को तोड़ पाया था.
वो महारानी जो मुगलों से भिड़ गईं
हुमायूं के शासन काल में एक महारानी ऐसी थीं, जो रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए मुगलों से लड़ गई थीं. बताते हैं हुमायूं के समय में रामजन्मभूमि के लिए 10 लड़ाइयां लड़ी गई थीं. बलरामपुर की महारानी जयराज ने महिला सेना और स्वामी महेश्वरानंद साधु सेना के साथ मुगलों से लड़ गई. इतिहास में इस बात का जिक्र है कि जयराज ने रामजन्मभूमि पर अधिकार जमा भी लिया था, लेकिन हुमायूं की सेना ने फिर से हमला कर दिया और महारानी वीरगति को प्राप्त हुईं.
मुगल राज में सत्ता बदलती रही लेकिन अयोध्या के लिए संघर्ष जारी रहा. रामजन्मभूमि में मंदिर के लिए अकबर के समय में 20 बार संघर्ष हुआ. कभी मुगल सेना हावी होती तो कभी बलरामाचार्य का दबदबा होता. आखिरकार बलरामाचार्य को मौत के घाट उतार दिया गया. बलरामाचार्य के मौत के बाद लोगों का गुस्सा भड़क उठा. तब बीरबल ने अकबर को मंदिर बनवाने की सलाह दी. अकबर ने बाबरी मस्जिद के सामने एक चबूतरे पर छोटा राम मंदिर बनाने की इजाजत दे दी. साथ ही यह हुक्म भी दिया कि हिंदुओं की पूजा में कोई बाधा न पैदा की जाए. औरंगजेब के शासन काल में भी अयोध्या पर संघर्ष जारी रहा.
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