तिरंगे की शान के लिए शेरपुर के आठ क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते सीने पर खाई थी गोलियां

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Independence Day Special: गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील भवन के सामने वर्ष 1942 में 18 अगस्त को अहिंसक क्रांति हुई थी. जिसका नेतृत्व डा. शिवपूजन राय ने किया था. तहसील भवन पर शेरपुर गांव आठ जवानों ने डा. शिवपूजन राय के नेतृत्व में हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी. 18 अगस्त 1942 को हजारों की भीड़ जिनके दिलों में भारत माता को अंग्रेजी शासन को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का जज्बा था और वे तहसील भवन पर तिरंगा फरहाने के लिए पहुंचे. गाजीपुर जिले के तत्कालीन कलक्टर मुनरों अपनी फौज के साथ मौजूद था. जुलूस अभी तहसील भवन पर ही पहुंचा था, तभी अंधाधुंध फायरिंग शुरु हो गई. वहां भगदड़ मच गई, लेकिन आजादी के दीवाने गोलियां अपने सीने पर झेलते हुए कदम आगे बढ़ाते रहे.

डा. शिवपूजन राय के नेतृत्व में हजारों पहुंचे थे तिरंगा फहराने
18 अगस्त 1942 को शेरपुर गांव के हजारो लोग डा. शिवपूजन राय के नेतृत्व में मुहम्मदाबाद तहसील भवन पर ध्वज फहराने के लिए पहुंचे. संयोग से तहसीलदार डा. शिवपूजन राय का सहपाठी रह चुका था. दल के नेता डा. राय ने कहा कि अंहिसा हमारा अस्त्र है. आप लोग पुलिस के गोली चलाने पर भी किसी प्रकार की हिंसा की कोशिश न कीजिएगा. आजादी के दीवानों ने पुलिस की तनी बंदूकों की परवाह न करते हुए तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़ते गए. तहसीलदार ने पदोन्नति के लोभ में क्रूरता का नग्न तांडव किया. जुलूस के पहुंचते ही अंधाधुंध गोली-बारी शुरु करा दी. समूह में भगदड़ मच गई, लेकिन आजादी के दीवाने डा. राय निर्भीकता से तहसीलदार को गोली चलाने के लिए ललकारते हुए हाथ में तिरंगा लिए तहसील भवन की ओर बढ़े.

तुम अपना काम करो, मुझे अपना काम करने दो. सीने में गोली मारो
इसी दौरान उनकी जांघ में गोली मार दी गई. तब डा. राय ने कहा कि तुम अपना काम करो, मुझे अपना काम करने दो. सीने में गोली मारो. तब तक भारत मां चीख उठी. उसका लाल उसके आंचल में सो गया. इसी प्रकार वंशनारायण राय, रामबदन उपाध्याय, वशिष्ट राय, रिशेश्वर राय, नारायण राय, वंशनारायण राय द्वितीय और राजनारायण राय, सभी शेरपुर के शेर स्वतंत्रता की बलिवेदी पर आहुत हो गए. आखिरकार सीताराम राय ने झंडा फहराने में कामयाबी हासिल कर ली. आजादी की इस लड़ाई में डा. शिवपूजन राय सहित आठ जवान अंग्रेजों की गोलियों के सामने हंसते-हंसते शहीद हो गए.

सिपाहियों ने मृत समझ सीताराम राय को नदी में फेंक दिया
घायल सीताराम राय को मृत समझकर सिपाहियों ने नदी में फेंक दिया. उन्हें जिंदा शहीद कहा जाता था. प्रति वर्ष वह शहीद पार्क में आकर अपने शहीद साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद उस घटना का आंखों देखा विवरण सुनाते थे. करीब आठ वर्ष पहले एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. तत्कालीन अखबारों ने इस घटना का विस्तार से उल्लेख किया. नेशनल हेराल्ड ने 1945 में इस घटना को याद करते हुए लिखा कि शेरपुर में लायन हार्टेड लोग रहते है. इस घटना के बाद शेरपुर गांव पर अंग्रेजी फौज ने काफी जुल्म ढाया. 29 अगस्त सन् 42 को शेरपुर गांव में अंग्रेजों की गोली से रमाशंकर लाल, खेदन यादव, राधिका पांडेय शहीद हो गई. उनकी याद में शेरपुर शहीद पार्क बना है. मुहम्दमाबाद की शहादत के साथ-साथ सैदपुर, सादात एवं नंदगंज के नवजवानों के शहादत भी इस जिले को महानता के शिखर पर ले जाती है.

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