Hardoi: आमतौर पर रावण दहन दशहरे के मौके पर किया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में रावण दहन होली के पहले किया जाता है. यहां लोग करीब 115 वर्ष पुरानी परंपरा को निभाते हैं. इस अवसर पर नुमाइश मैदान में मेले का आयोजन होता है.
स्थानीय लोगो के मुताबिक, इस मेले को प्रदेशभर में लगने वाले सभी मेलों की जननी कहा जाता है. कहते हैं कि कि हरदोई जिले से ही मेलों की शुरुआत हुई है. यहां होने वाली रामलीला के बाद रावण दहन भी होता है. यहां पिछले 115 वर्षों से रावण दहन होली से पूर्व किया जाता है. खास बात यह है कि इस पुतले को बनाने वाले मुस्लिम समुदाय के ताजिया बनाने वाले लोग हैं. इस तरह यह आयोजन हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की एक अनूठी मिसाल पेश करती है.
115 वर्षों पुरानी है रावण दहन परंपरा
हरदोई जिले के नुमाइश मैदान में लगने वाले मेले में रामलीला का आयोजन होता है. रामलीला के बाद होने वाला रावण दहन अपने आप में एक खास रखता है. रावण दहन होली की प्रक्रिया अन्य जगहों पर होने वाली रावण दहन से काफी अलग है. अन्य जगहों पर रावण दहन दशहरे पर किया जाता है, लेकिन हरदोई में होली से पूर्व रावण दहन किया जाता है. यहां पिछले करीब 115 सालों से ये परंपरा चली आ रही है. इस ला गुरूवार यानी 21 मार्च को भी 48 फुट लंबे विशाल रावण के पुतले को जलाकर शान्ति और अच्छाई का संदेश दिया गया. आयोजन में हज़ारों लोगों ने शामिल हुए.
कौमी व राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ये ऐतिहासिक मेला
हरदोई के नुमाइश मेले में होने वाले विशाल रावण दहन में जो पुतला जलाया जाता है, उसे बनाने वाले कलाकार कोई और नहीं बल्कि लखीमपुर जिले के रहने वाले नूर आलम हैं. ये इनकी चौथी पीढ़ी है जो यहां इस मेले में शामिल हुंई है. ये वो लोग हैं जो मोहर्रम पर ताजिया बनाते हैं. यही लोग यहां आकर रामलीला में रावण का पुतला भी बनाते हैं. पुतले को करीब 48 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा बनाया जाता है. वहीं, इसे बनाने से लेकर यहां होने वाली आतिशबाजी में करीब 70,000 रुपये का खर्च आता है. ऐसे में साफ है कि हरदोई का ये धार्मिक एवं ऐतिहासिक मेला राष्ट्रीय एकता के साथ ही कौमी एकता का भी मिसाल है.
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