मौत के बाद LIC ने नहीं किया बीमा राशि का भुगतान, अदालत पहुंचा मामला; कोर्ट ने दिया ये आदेश

Abhinav Tripathi
Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Varanasi News: एलआईसी यानी लाइफ इंश्‍योरेंस कॉर्पोरेशन आफ इंडिया की लापरवाही से जुड़ा एक नया मामला सामने आया है. इस मामले में एक व्यक्ति ने एलआईसी की जीवन सरल पॉलिसी कराई. इस पॉलिसी के अनुसार यदि शख्स की मौत होती है तो दावा धनराशि 20.00 लाख रुपया होगी. इस पॉलिसी में दुर्घटना बीमा समाहित था. 17 फरवरी 2023 को उमेश कुमार वर्मा (जिसने पॉलिसी ली थी) की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई. इसके बाद भी बीमा कंपनी ने पॉलिसी का भुगतान नहीं किया.

जानिए मामला

पॉलिसी लेने वाले शख्स के मौत के बाद उसकी पत्नी ने दो पॉलिसियों पर दावा किया. इसके एवज में पत्नी को दो पालिसियों के दावे का भुगतान किया गया, लेकिन एक पालिसी के भुगतान में चेक अनादरित हो गया. इसके बाद बीमा निगम ने उसे पत्र भेजा कि एक पालिसी के तथ्‍य को छिपाने के लिए उसका एक दावा निरस्‍त कर दिया गया. इस पत्र के बाद पत्नी ने बीमा निगम के विरूद्ध राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग, उ.प्र. लखनऊ में याचिका डाली. इस याचिका पर सुनवाई राज्‍य आयोग में हुई.

इस मामले के सभी तथ्‍यों का प्रिसाइडिंग जज राजेन्‍द्र सिंह ने अवलोकन किया और यह पाया कि इस मामले में मृत्‍यु का कारण वाहन दुर्घटना था. जोकि एफआईआर में स्‍पष्‍ट है. इस मामले में मृतक ने दो जीवन बीमा के प्रस्‍ताव एक ही दिनांक को भरे थे. कोर्ट ने पाया कि जब एक ही दिनांक को दो प्रस्‍ताव भरे जा रहे थे, तब यह नहीं कहा जा सकता कि कौन सा प्रस्‍ताव पहले का है और कौन सा प्रस्ताव बाद का है.

जब दोनों प्रस्‍ताव बीमा निगम के कार्यालय में पहुंच गये और पॉलिसी जारी हो गई तब बीमा निगम को देखना था कि दो प्रस्‍ताव एक ही व्‍यक्ति द्वारा भरे गये हैं और एक ही दिनांक के हैं, लेकिन बीमा निगम की लापरवाही स्‍पष्‍ट है कि उसने इन तथ्‍यों को अनदेखा किया और जब भुगतान का समय आया तब अनावश्‍यक आपत्ति उठायी गयी.

जांच में क्या मिला?

प्रिसाइडिंग जज राजेन्‍द्र सिंह ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि इसमें एक पॉलिसी के तथ्‍य को छिपाने का कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता, क्‍योंकि दोनों प्रस्‍ताव एक ही दिनांक को एक ही समय भरे गये थे, इसलिए बीमा निगम को यह भलीभांति ज्ञात था कि दोनों पॉलिसियों के प्रस्‍ताव पत्र एक ही दिन और एक ही समय पर दिये गये हैं. इसलिए बीमा निगम, जो एक पॉलिसी का भुगतान कर चुका था, दूसरी पॉलिसी का भुगतान करने के लिए उत्‍तरदायी पाया गया.

कोर्ट ने दिया ये आदेश

कोर्ट इस मामले में बीमा निगम को आदेश दिया कि वह मृतक की पत्नी को 20.00 लाख रुपया और इस धनराशि पर दिनांक 17-02-2013 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज इस परिवाद के निर्णय के 30 दिन के अन्‍दर अदा करे. इसी के साथ यदि यह धनराशि इस परिवाद के निर्णय के 30 दिन के अन्‍दर अदा नहीं की जाती है, तब ब्‍याज की दर 12 प्रतिशत वार्षिक होगी, जो दिनांक 17-02-2013 से इसके वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक देय होगी.

वहीं, कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बीमा निगम मृतक की पत्नी को मानसिक प्रताड़ना के मद में 50,000/- रुपया हर वाद व्‍यय के मद में 25,000/- रुपया जिसका एमटीएलबी हुआ कुल 75,000/- रुपया और इस धनराशि पर दिनांक 17-02-2013 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज इस परिवाद के निर्णय के 30 दिन के अन्‍दर अदा करे. वहीं, अगर यह धनराशि इस परिवाद के निर्णय के 30 दिन के अन्‍दर अदा नहीं की जाती है, तब ब्‍याज की दर 12 प्रतिशत वार्षिक होगी, जो दिनांक 17-02-2013 से इसके वास्‍तविक भुगतान की तिथि तक देय होगी.

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