भगवान श्रीराम ने यहां से ग्रहण की थी शिक्षा, जानिए कहां है उनके गुरु का आश्रम

Raginee Rai
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Lord Ram: रामजन्‍मभूमि अयोध्‍या में राममंदिर का निर्माण काफी तेजी से चल रहा है. वहीं, 22 जनवरी को मंदिर में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा होगी. रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा को लेकर पूरे देश में उत्‍साह का माहौल है. प्रभु राम के जन्‍मस्‍थली के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन जहां गुरु वशिष्ठ ने भगवान राम समेत तीनों भाइयों को शिक्षा दी थी, क्‍या आप उस जगह को जानते हैं. आज की लेख में हम आपको इसकी जानकारी देंगे.

प्राचीन काल में अयोध्या राज्य का अंश रहे बाराबंकी का सतरिख इलाका कभी सप्तऋषिधाम और आश्रम के रूप में जाना जाता था. कहा जाता है कि यहां महर्षि वशिष्ठ का आश्रम है और सप्तऋषियों ने भी यहीं पर तपस्या की थी. साथ ही यहीं पर गुरु वशिष्ठ ने भगवान राम सहित तीनों भाइयों को उपदेश दिया था. बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने इस आश्रम को तोड़ दिया. अब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही सतरिख को भी एक बार फिर से सप्तऋषिधाम के रूप में निर्मित करके इसका पुनरुद्धार किया जाएगा.

आश्रम में है राम-लक्ष्ण और माता सीता की मूर्ती

बाराबंकी के सतरिख-चिनहट मार्ग पर सप्तऋषि आश्रम मौजूद है. आश्रम में प्राचीन राम, लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियां स्थापित हैं. मान्‍यता है कि यहां पर भगवान श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ सप्तऋषियों से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी. सप्तऋषि आश्रम पर मौजूद प्राचीन मूर्तियों का हर रोज तिलकोत्सव और पूजा अर्चना की जाती है. भगवान श्रीराम का पुराना और खास नाता होने के कारण सतरिख को प्राचीन धरोहर के रूप में माना जाता है.

सप्तऋषि आश्रम में ली धनुष विद्या  

स्थानीय लोगों के मुताबिक, प्रभु श्रीराम के जन्म से पहले यह सप्तऋषि आश्रम एक गुरुकुल था. ऋषि मुनि यहां रहा करते थे. यहां कई ऐसे राक्षस भी हुआ करते थे, जो ऋषि मुनियों के यज्ञ अनुष्ठान को भंग कर देते थे. इन राक्षसों से ऋषि मुनि बहुत परेशान रहते थे. राक्षसों से छुटकारा पाने के लिए गुरु विश्वामित्र स्‍वयं अयोध्या गए. गुरु विश्वामित्र ने राजा दशरथ से चारों भाइयों को मांगकर सप्त ऋषि आश्रम लेकर आए. यहां उन्होंने चारों भाइयों को धनुष विद्या सिखाई.

आज भी है प्रमाण

महंत नानक शरण दास उदासीन ने बताया कि धनुष विद्या सीखने के बाद प्रभु राम ने सभी राक्षसों का वध कर किया. आज भी इस आश्रम में ऐसी कई चीजें मौजूद हैं जो इन सभी बातों का प्रमाण देती हैं. बताया कि श्रीराम जब धनुष विद्या सीख रहे थे, तब एक तीर जाकर करीब डेढ़ किमी दूरी पर गड़ गया था, जो आज भी वहां पर मौजूद है. वह तीर अब तो पत्थर का है, लोग आज भी उसकी पूजा करते हैं. उसके पास में ही कुआं और नदी बहती है. महंत नानक शरण दास ने बताया कि प्रभु राम वहीं स्नान करते थे. इसी कुंआ से आश्रम के सभी विद्यार्थी पानी पीते थे और खाना बनाते थे. यह ऋषि-मुनियों की परंपरा से भरी हुई भूमि है.

रामायण कालखंड के तीन बड़े ऋषि हुए

बाराबंकी के निवासी साहित्यकार अजय गुरू जी ने बताया कि रामायण कालखंड के तीन बड़े ऋषि उत्तर भारत के महर्षि वशिष्ठ, दक्षिण भारत में महर्षि अगस्त और मध्य भारत में महर्षि विश्वामित्र हुए. इस दुनिया में जहां कहीं भी भगवान राम हैं, वहां इन तीनों ऋषियों की चर्चा अवश्‍य होगी. महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम और उनके तीनों भाइयों को शास्त्र ज्ञान दिया था. महर्षि अगस्त से उन्‍होंने शस्त्र और शास्त्र दोनों विद्या सीखीं. वहीं, महर्षि विश्वामित्र के निर्देशन में प्रभु राम ने अपने जीवन का बहुत बड़ा काल खंड जिया, जिसमें उन्होंने कई राक्षसों का भी नाश किया था. साहित्यकार अजय गुरू जी के अनुसार, 1028 ई. के आसपास जब महमूद गजनवी के बहनोई सैय्यद साहू ने अपने लड़के सालार मसूद के साथ इस क्षेत्र पर आक्रमण किया, तब उसने ही महर्षि वशिष्ठ का आश्रम, सप्तऋषि आश्रम और मंदिर में तोड़फोड़ किया था.

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