Mahakumbh: Mahatmya Par Mahamanthan: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में हुए भारत एक्सप्रेस के मेगा कॉन्क्लेव ‘महाकुंभ: माहात्म्य पर महामंथन’ में पद्मश्री से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर भी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने महाकुंभ के वैज्ञानिक महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘एक वैज्ञानिक के तौर पर जब मैं मेला क्षेत्र जाता था तो मुझे कुछ ऐसी चीजें नजर आती थीं, जिसे देखकर लगता था कि प्राकृतिक तरीके से ये चीजें कैसे हो रही हैं.
जैसे जब कोई मुहूर्त होता है तो मैंने देखा है बहुत सारे लोग बहुत दूर से पैदल ही पूरी रात चलकर यहां पहुंच रहे होते हैं. आप देखेंगे तो लगेगा कि हर सड़क पर एक नदी बह रही है और सब संगम की ओर जा रहे होते हैं. ठंड में रात के 2 बजे लोग डुबकी लगा रहे हैं, मैं सोच भी नहीं सकता. मैंने जब ठंडे पानी के अंदर प्रवेश किया तो एक अजीब सी अनुभूति हुई और बहुत सारी डुबकियां लगाईं, बहुत अच्छा महसूस हुआ. इसको लेकर मेरा कोई झुकाव नहीं है. एक वैज्ञानिक के तौर पर मैं बहुत निष्पक्ष तरीके से देख रहा हूं और मुझे अच्छा लग रहा है. मैंने सोचा ये हो क्या कहा है.’
अल्फा और बीटा वेव्स
उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने यहां कुछ टेस्ट भी किए हैं, तो मैंने पाया कि यहां जो साउंड वेव्स हैं, वो बहुत अलग है. हर जगह पर अल्फा वेव्स हैं. हर कुछ दूरी पर देखेंगे तो कुछ लोग शंख बजा रहे हैं, घंटियां बज रही हैं. शंख की ध्वनि में अल्फा वेव्स होते हैं. इसे आप हमारे दिमाग की वेव्स कह सकते हैं. इसकी फ्रीक्वेंसी 8 से 12 हर्ट्ज के बीच होती है.
आज की जो लाइफस्टाइल है, उसमें लोगों को एंजाइटी और घबराहट है, लोगों में बेचैनी है. उसकी वजह ये है कि जो बीटा वेव्स हैं, वो अधिकांश लोगों में बढ़ी होती हैं. इसकी वजह से हम सजग और अलर्ट रहते हैं, लेकिन इसकी फ्रीक्वेंसी 12 से लेकर 30 हर्ट्ज रहती है. हालांकि जांच में ये पाया गया कि सभी में ये बढ़ी हुई हैं, किसी में 34 किसी में 36. अगर किसी में इतनी हैं तो उनको पैनिक अटैक आ सकता है.’
महाकुंभ में शांति का अनुभव
अजय सोनकर ने कहा, ‘ऐसा कोई भी व्यक्ति नास्तिक हो या किसी भी धर्म का हो, अगर मेला क्षेत्र में पहुंच जाएगा, तो वहां का जो वातावरण है वो कई तरह से उस पर असर डालता है. थोड़ी आप वहां जाकर खड़े हो जाइए आप एक तरह की शांति का अनुभव करेंगे. वजह ये है कि कोई नास्तिक है, आस्तिक है, उसके दिमाग में जो साउंड वेव्स हैं वो तो वहीं हैं, तो उस पर जब इम्पैक्ट आता है तो चेहरे पर दिखाई देता है. यहां का वातावरण बीटा वेव्स को डाउन कर देती हैं और उसके शांति और अच्छा महसूस होने लगता है.’
गंगा में स्नान अमृत कुंड के समान
उन्होंने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात ये है कि जब हम किसी बड़े समूह के साथ कोई एक्टिविटी कर रहे होते हैं तो हमारे दिमाग की जो इलेक्ट्रिकल सिग्नल होते हैं वो मल्टिप्लाई हो जाते हैं. जब इस तरह से हम किसी बहुत बड़े समूह में इन्वॉल्व हो जाते हैं तो उसका इम्पैक्ट हमारे ऊपर सीधा पड़ता है.’ ऐसा मानना है कि इस समय गंगा में स्नान करना, अमृत कुंड में स्नान के समान है, इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘एक खास मुहूर्त में लाखों की संख्या में संगम में डुबकी लगाते हैं. मेरी निगाह में अगर कोई नदी के पानी में गया तो वह उसके लिए एक प्रदूषक के समान है, उसकी वजह से पानी प्रदूषित हुआ. मैं देखता हूं कि महाकुंभ में हर किसी की इच्छा होती है कि वह उसी छोटे से एरिया में नहा ले. हमने वहां से बहुत सारे सैंपल लिए. हमने पाया कि गंगा नहीं कुछ मामलों में समुद्र की तरह व्यवहार करती है.’
सेल्फ स्टरलाइजेशन प्रॉसेस
वे आगे कहते हैं, ‘गंगा नदी में अगर बैक्टिरिया का प्रभाव बढ़ता है तो उसी समय उसी प्रपोरशन में बैक्टिरियोफेस नाम का वायरस पैदा हो जाता है. ये वायरस करोड़ों की संख्या में पैदा हुए बैक्टिरिया को पकड़ता है और उसे मार देता है और उन्हें मारने के बाद खुद भी गायब हो जाता है.’ वैज्ञानिक सोनकर ने कहा, ‘गंगा के लिए कहा जाता है कि उसमें नहाने से लोग पवित्र हो जाते हैं. पवित्र यानी स्टरलाइजेशन प्रॉसेस (जीवाणु और विषाणु खत्म होने की प्रक्रिया) होती है, ये मैं गंगा में देखता हूं. जितने भी कन्टैमिनेशन होते हैं, वो स्टरलाइज हो जाते हैं.’
बीमार के ठीक होने की संभावना
आज अगर गंगा में डुबकी लगाएं तो क्या असर होगा, इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘महत्वपूर्ण बात ये है कि हमारा जो शरीर है वो हमारे मन से ऑपरेट होता है. जैसे ही आप वहां पहुंचते हैं, धार्मिक प्रक्रिया में इन्वॉल्व होते हैं तब आपका दिमाग आपके हाथ से निकल जाता है और वहां के वातावरण के नियंत्रण में आ जाता है. जैसे ही आप वहां पहुंचते हैं, आपके दिमाग को एक जबरदस्त पावर मिलती है. तो ब्रेन फैक्टरी सेटिंग की तरफ रिस्टोर होती है. आपका डीएनए कोड अपने नेचुरल स्थिति में आने की कोशिश करता है. ऐसी कंडिशन में अगर कोई बीमार है तो उसके ठीक होने के दर बढ़ जाती है.’