महात्मा गांधी निकले थे राजकोट और पहुंच गए संगम नगरी इलाहाबाद, यह था उनका पहला इलाहाबाद आगमन

Must Read

Mahatma Gandhi: राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी इलाहाबाद में सर्वप्रथम लगभग एक सौ 26 वर्ष पूर्व 5 जुलाई 1896 को पहली बार इलाहाबाद आये थे. 5 जुलाई की दोपहर को लगभग ग्यारह बजे मोहनदास करमचंद गांधी अंग्रेजी पोशाक में स्टेशन पर उतरे थे. उस दिन बादल घिरे हुए थे और बेहद गर्मी थी. गांधी जी को दवा की आवश्यकता थी. वह तांगे पर बैठकर दवा लेने के लिए जानसेनगंज पहुंच गए और उस समय जानसेनगंज के रास्ते काफी धूलभरे थे. गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में लगभग तीन वर्ष से थे और वह वहां पर अपने सार्वजनिक जीवन में काफी उलझ गए थे और उनके मित्रों ने उन्हें सलाह दी कि वह अपने परिवार के सदस्यों को यहीं पर ले आए, पता नहीं कब तक उन्हें यहां रहना पड़े, इसिलिए वह भारत के लिए निकल पड़े.

5 जून, 1896 को गांधी जी डर्बन से हुगली जाने वाले जहाज से भारत के लिए रवाना हुए. चौबीस दिन की यात्रा के बाद वे 29-30 जून के लगभग कलकत्ता पहुँचे. वे कलकत्ता-बंबई मेल से प्रयाग-बंबई मार्ग से राजकोट के लिए रवाना हुए. उनका रास्ते में कहीं रुकने का कोई इरादा नहीं था. 5 जुलाई, 1896 को 11 बजे ट्रेन इलाहाबाद पहुँची. इलाहाबाद में ट्रेन पैंतालीस मिनट रुकती थी. उनका इलाहाबाद रुकने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन होना कुछ और ही था. महात्मा गांधी के ही शब्दों में- “मैंने सोचा इतने समय में जरा शहर देख आऊँ. मुझे दुकान से दवा लेनी थी. दुकानदार ऊँघता हुआ बाहर आया और दवा देने में थोड़ी देर लगा दी. मैं ज्यों ही स्टेशन पहुँचा, गाड़ी चलती हुई दिखाई दी. भले स्टेशन मास्टर ने एक मिनट तक गाड़ी रोके रखी, किन्तु मुझे वापस न आता देखकर मेरा सामान उतरवा दिया. गाड़ी छूट चुकी थी. अब अगले ही दिन जाना संभव था.”

महात्मा गांधी ने यात्रा में आई इस अप्रत्याशित बाधा का सदुपयोग करने का प्रयास किया. महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी अपने संस्मरणों में इस तरह लिखा है, “मैं केलनर के होटल में उतरा और वहीं से अपना काम शुरू करने का निश्चय किया. मैंने इलाहाबाद के “पायनियर” की ख्याति सुनी थी, मैं यह जानता था कि वह भारत की आकांक्षाओं का विरोधी है. मुझे याद आता है कि मि. चेजनी उस समय “पायनियर” के संपादक थे. मैं तो सभी पक्षों के आदमियों से मिलकर सहायता पाना चाहता था. मैंने मि. चेंजनी को मुलाकात के लिए पत्र लिखा. अपनी ट्रेन छूट जाने का हाल लिखकर उन्हें सूचित किया कि कल ही मुझे प्रयाग से चले जाना है. “उत्तर में उन्होंने मिलने के लिए मुझे तुरंत बुला लिया.

मुझे खुशी हुई. उन्होंने बहुत ध्यान से मेरी बातें सुनी. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि आप जो कुछ लिखेंगे, मैं उस पर तुरंत टिप्पणी करूंगा, किन्तु मैं आपको यह वचन नहीं दे सकता कि मैं आपकी सब बातों को मान सकूँगा. हमें औपनिवेशिक दृष्टिबिंदु भी तो समझना और देखना चाहिए.” मैंने कहा- “आप इस प्रश्न पर गौर करें और अपने अखबार में इसकी चर्चा करते रहें, इतना ही मेरे लिए काफी है. मैं विशुद्ध न्याय के अलावा कुछ और नहीं चाहता.” ‘पायनियर’ का कार्यालय आज के आनंद भवन से थोड़ी दूर प्रयाग स्टेशन के पास था. लाल रंग का यह भवन कुछ दिनों तक एफ. सी. आई. का कार्यालय था और अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अधिकार में है. मि. चेंजनी के मिलने के बाद गांधी जी संगम तट पर गये और वहाँ स्नान-दर्शनादि किए. उन्होंने लौटकर होटल में भोजन-विश्राम किया तथा अपने भावी कार्यक्रम पर विचार करते रहे. दूसरे दिन 6 जुलाई, 1896 को वे राजकोट के लिए रवाना हुए, इस तरह गांधी जी पहली बार इलाहाबाद आए और उनके जीवन में यह अप्रत्यासित घटना घटित हुई.

Latest News

गुयाना की संसद में बोले PM मोदी- ‘हमारा रिश्ता आत्मीयता से भरा हुआ…’

PM Modi Guyana Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को गुयाना में संसद के विशेष सत्र को संबोधित किया. अपने संबोधन...

More Articles Like This