अफगानिस्तान में महिलाएं अब नहीं कर सकेंगी नर्सिंग की ट्रेनिंग, तालिबान के फैसले पर बोले राजेश्वर सिंह- ‘सभ्यता को अंधयुग में ले जाने वाला फैसला’

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता के तीन साल पूरे हो चुके हैं और इन तीन वर्षों में महिलाओं की आजादी पर ताले लगा दिए गए हैं. पहले माध्यमिक शिक्षा से आगे पढ़ाई पर रोक लगाई गई और अब महिलाओं को स्वास्थ्य क्षेत्र में शिक्षा और ट्रेनिंग लेने पर भी पाबंदी लगा दी गई है. स्वास्थ्य क्षेत्र अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए आखिरी उम्मीद थी, मगर इस फैसले से देश में महिलाओं की पढा़ई का आखिरी रास्ता भी बंद हो गया है.

न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक, काबुल में स्वास्थ्य अधिकारियों की हाल ही में बैठक हुई थी, जिसमें तालिबान सरकार का फैसला सुनाया गया. इस्लामिक सहयोग संगठन ने गुरुवार को एक बयान जारी कर तालिबान से बैन को वापस लेने की अपील भी की है. चेतावनी दी कि पहले से ही बदहाल हेल्थ सिस्टम पर इसका असर पड़ेगा.

अंधयुग में ले जाने वाला फैसला है- डा. राजेश्वर सिंह

तालिबान सरकार के इस आदेश को लेकर भाजपा विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह (Dr. Rajeshwar Singh) ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “आज के समाचार पत्रों में प्रकाशित, तालिबान द्वारा बेटियों की नर्सिंग शिक्षा पर पाबंदी की खबर स्तब्ध करने वाली है! तालिबान द्वारा महिलाओं की नर्सिंग शिक्षा पर लगाई गई पाबंदी एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन और 21वीं सदी में, जब लोकतंत्र और उदारवाद सबसे महत्वपूर्ण हैं, यह कदम सभ्यता को अंधयुग में ले जाने वाला है!

एक ओर, महिलाएं जैसे फाइटर पायलट (शिवांगी सिंह), अंतरिक्ष यात्री (कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स) और राजनेता जैसे जैसिंडा अर्डर्न (न्यूजीलैंड), एंजेला मार्केल (जर्मनी), सहर मुरादोवा (मोल्दोवा) व एलेन जॉनसन सरलीफ (लिबेरिया) अपने क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों तक पहुंच रही हैं. दूसरी ओर, तालिबान द्वारा महिलाओं को घर की चाहरदीवारी तक सीमित किया जा रहा है, उन्हें मूलभूत अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, यह एक बड़ा विरोधाभास है!

“महिलाओं से बुनियादी अधिकारी छीने जा रहे”

तालिबान शासन ने महिलाओं को न केवल शिक्षा से वंचित किया है, बल्कि उनके सार्वजनिक जीवन में भाग लेने, नौकरी करने, और स्वतंत्र रूप से यात्रा करने जैसे बुनियादी अधिकार भी छीन लिए हैं. महिलाओं को बाहर जाने के लिए पुरुष संरक्षक ले जाना अनिवार्य कर दिया है, वे अपने परिवारों को आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करने के अधिकार से भी वंचित हैं. इसके अलावा, तालिबान के सख्त नियमों के कारण महिलाएं नौकरी के लिए भी संघर्ष कर रही हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य अहम क्षेत्रों में, जहाँ उनका योगदान पूरे विश्व में एक जैसा महत्वपूर्ण होता है,

यह सब उनके मौलिक मानवाधिकारों पर हमला है. ऐसे कदम न केवल अपमानजनक हैं, बल्कि समाज की प्रगति के लिए हानिकारक भी हैं. महिलाएं विज्ञान और साहित्य में नोबेल पुरस्कार (मैरी क्यूरी, मलाला यूसुफजई) जीत चुकी हैं, राज्य प्रमुख बनी हैं, और ऐसे क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त की है जिन्हें कभी उनके लिए प्रतिबंधित माना जाता था. फिर भी, तालिबान जैसे शासन में उन्हें शिक्षा और अवसर से वंचित किया जा रहा है, यह कितनी बड़ी हठधर्मिता है.

BJP विधायक ने की ये अपील

मैं सभी राजनीतिक दलों और नेताओं से अपील करता हूं कि वे तालिबान के इस अपमानजनक कदम की कड़ी निंदा करें. यह कदम न केवल महिलाओं के खिलाफ है, बल्कि मानवाधिकारों, लोकतंत्र और प्रगति के विरुद्ध भी है. 22वी सदी की तरफ़ बढ़ते हमारे कदम, हमारी आने वाली पीढ़ी को पिछड़ी सदियों में नहीं भेज सकते हैं. यह समय है कि हम सभी एकजुट होकर इस अत्याचार का विरोध करें.

इसके अलावा, मैं मुस्लिम देशों और संगठनों से भी अपील करता हूं: जैसे कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC), इंटरनेशनल यूनियन ऑफ मुस्लिम स्कॉलर्स, और अरब लीग, कि वे तालिबान के इस कदम की कड़ी निंदा करें. इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं को समान शिक्षा और अधिकारों का अधिकार दिया गया है, और इस तरह की रूढ़िवादी व्याख्याएं समाज के विकास के खिलाफ हैं. अब यह आवश्यक है कि हम एकजुट होकर इन अत्याचारों के खिलाफ खड़े हों.

सभी लोकतांत्रिक देशों, मानवाधिकार संगठनों, और मुस्लिम विद्वानों को इस की कड़ी निंदा करनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अन्य वैश्विक मंचों को भी तालिबान के इस अत्याचार के विरुद्ध कठोर कदम उठाने चाहिए. साथ ही, मुस्लिम धर्मगुरुओं को भी इस विचारधारा का विरोध करना चाहिए, क्योंकि इस्लाम में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान शिक्षा और अधिकारों का समर्थन किया गया है.

हमें आवाज़ उठानी चाहिए, तालिबान की इस हरकत की कड़ी निंदा करनी चाहिए, यह समझना होगा कि इस प्रकार की रूढ़िवादी धार्मिक व्याख्याएं और उनका लागू करना प्रगति और मानवाधिकारों के लिए खतरनाक हैं. यह समय है कि हम महिलाओं के अधिकारों के लिए खड़े हों.”

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