Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, बाले युगोऽयं दारूणःकलिः। देवर्षि नारद जी महाराज भक्ति महारानी से कहते हैं कि- ये कलियुग है। यहां तो सदाचार लुप्त हो गया है। धर्म-कर्म सब छूट चुका है। यहां...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भारतवर्ष में मनुष्य जीवन प्राप्त हो जाना बहुत बड़े पुण्य या ईश्वर की कृपा का फल है। बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।। श्रीगुरु नानक...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान के भक्तों की गति मति का अद्भुत वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण में किया गया है. आओ नंदलाल तरस रहे नैना, दायित दृश्यतां. हे प्राण प्यारे! कभी एक बार तो...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मैया के दिव्य कन्हैया, भक्त के बस में है भगवान। मैया दही बिलो रही थी, कन्हैया सो रहे थे, मैया सोचती है कि कन्हैया थोड़ी देर और सोता रहे,...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, 'भोगा न भुक्ता स्वयमेव भुक्ता' हम भोग भोगते हैं। शास्त्र कहते हैं कि आप भोग नहीं भोग रहे हैं, भोग आपको भोग रहे हैं। भोग संसार में ज्यों के...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सत्संग द्वारा अपने जीवन की धारा को योग की ओर मोड़ देना ही मानव जीवन का परम लक्ष्य है। भगवान व्यास श्रीमद्भागवत महापुराण में कहते हैं कि- प्रभु !...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, संसार में बिखरे मन को समेट कर भगवान् के साथ जुड़ने की पद्धति। अपने जीवन के व्यापार को समेटना है। एक व्यक्ति पंजाब की गतिविधियों से आतंकित हुआ, अपनी...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, नाम रूप लीला धाम सच्चिदानंद विग्रहम्। भगवान का नाम, भगवान का दर्शन, भगवान की कथा और भगवान का धाम, चार रूप में भगवान जीव मात्र का कल्याण कर रहे...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान की भक्ति- मानव जीवन का श्रेय भगवान की भक्ति है। धर्म शास्त्रों में एक श्रेय का मार्ग बताया गया, दूसरा प्रेह का मार्ग बताया गया। श्रेय कहते हैं,...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, परमात्मा के मधुर मंगलमय चरित्रों को, उनके जन्मों को, उनके कर्मों को सुनना और उनके पवित्र चरित्र गाना, अनासक्त होकर संसार में विचरण करते रहना- यह वैष्णव का धर्म है....