Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वेद-उपनिषद् में परमात्मा का वर्णन करते समय ' नेति-नेति जैसी निषेधात्मक भाषा का प्रयोग किया गया है, किन्तु भागवत आदि वैष्णव-शास्त्रों में 'अरे , यह रहा मेरा भगवान !...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वंदन- मंदिर में प्रभु के पास जाओ, तब प्रभु के उपकारों का स्मरण करो, हृदय को भावना से भर दो और भावपूर्ण हृदय से परमात्मा की वंदना करो। वन्दन...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन को पवित्र रखने के लिए जिसको आंखें बन्द करने की आवश्यकता मालूम पड़ती है, जिसका मन आंखें बन्द रखने पर ही पवित्र रहता है, उसका मन आंख खुलते ही...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन को जबरदस्ती पकड़ कर ब्रह्मरंध्र में लाते हुए तेजोमय ब्रह्म में स्थिर करने को जड़ समाधि कहते हैं। ऐसी समाधि में बैठने वाले को काल भी स्पर्श कर...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ज्ञानी महापुरुष केवल मंदिर में ही नहीं, बल्कि प्राणी मात्र में प्रभु के दर्शन करता है। वह तो जड़ पदार्थ में भी परमात्मा की सत्ता का अनुभव कर सकता...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रद्धा से युक्त किए गए सत्कर्म से जीवन को परमात्मा और परोपकार के साथ जोड़ देना ही सच्चा श्राद्ध है।
प्रभु के द्वारा दिए गए इस मानव देह के पिण्ड...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, स्वयं के हृदय में श्री आनंदकंद परमात्मा की अत्यंत निकटता का सतत अनुभव करने वाले भक्तों का हृदय हमेशा सद्भावना से लबालब भरा रहता है। ऐसे ज्ञानी पुरुष तो अपने...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, बहुत प्रेम पूर्वक मिलने पर भी यदि सामने वाला व्यक्ति हमारी उपेक्षा करे तो हमें बहुत बुरा लगता है। इसी तरह स्वयं के अंगों को क्षीण करके हमें जीवन...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मंदिर में प्रभु के पास जाओ, तब प्रभु को भावपूर्ण आंखों से देखो और विचारो की मेरा प्रभु मुझे देख रहा है, अतः प्रभु के पास ऐसा बनकर जाना...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मानव मात्र परमात्मा का स्वरूप है। अज्ञान के आवरण से ही वह जीवभाव से रहता है। अज्ञान के आवरण से रहित चेतना अर्थात् ईश्वर और अज्ञान के आवरण से...