Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।। श्रीशुकदेवजी का आगमन।। जहां भेद, वहां भय जो प्रत्येक प्राणी को भगवद्भाव से देखने की आदत डालता है, उसकी मन कभी नहीं बिगड़ता। ऐसे सत्पुरुषों का कोई बैरी भी...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत वेदरूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है जिसमें गुठली, छिलका जैसा कुछ त्याज्य नहीं है, केवल रस ही रस है। अतः भक्तों को यह रस जीवन भर पीते रहना...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्तिमय व्यवहार- साधु का समय बहुत ही मूल्यवान होता है। भक्ति सर्वत्र संभव है। राह चलते, गाड़ी में प्रवास करते या दुकान में बैठकर व्यापार करते- सर्वकाल एवं सर्वत्र बिराजने...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, होली का त्यौहार भक्ति भावना का त्यौहार है। सनातन धर्म में वर्ष के सभी दिन उत्सव के हैं। तीन सौ पैंसठ दिन है और इससे भी कई गुना ज्यादा उत्सव...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्तिमय ज्ञान- प्रभु का दास कभी उदास नहीं होता। श्रीकृष्ण के बिरह में तड़पती हुई गोपियों को सांत्वना प्रदान करने के लिए जब उद्धव जी ने ज्ञान की बातें कही,...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, हम लोग दुःखी हैं, क्योंकि हम लोग भगवान को भूल गये हैं. उनके उपकारों को भूल गये हैं. मृत्यु का अर्थ है- परमात्मा के दरबार से आने वाली इन्कम-टैक्स की...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, यह शरीर मेरा नहीं तो फिर यह धन मेरा कैसे हो सकता है. आजकल के लोग ज्ञान-वैराग्य की बातें तो बहुत करते हैं, किन्तु जरा-सा नुकसान देखकर क्रोध से जल...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सर्वत्र हरि दर्शन- कथा सुनने के बाद जीवन में परिवर्तन होना चाहिए. प्रत्येक जीव को हरि दर्शन की प्यास है. अपनी इस प्यास को बुझाने के लिए ही वह धरती...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।संपत्ति में सावधानी।। प्रभु को हमेशा साथ में रखोगे तभी जीवन सफल बनेगा. गोकुल में नंगे पांव घूमने वाले श्रीकृष्ण कंस-वध के पश्चात् एकाएक मथुरेश्वर बन गए. उनके चरणों...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।तुम नौकर नहीं, मालिक हो।। वंदन में हृदय के भावों का संगम हो, तभी वह सार्थक होता है।
ज्ञानस्वरूप कपिल भगवान ने कर्दम और देवहुति के यहां पुत्र के रूप में...