Artificia Intelligence: हमें ‘मंदबुद्धि’ बना रहा AI, रिसर्चर्स ने किया चौकाने वाला दावा

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Artificia Intelligence: हाल ही में फ्रांस के राजधानी पेरिस में आयोजित AI समिट में पीएम मोदी ने एआई के पॉजिटिव पहलुओं के बारे में बताया था कि कैसे ये हमारे जीवन को आसान बना रहा है. वहीं, अब क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स डेबोरा ब्राउन और पीटर एलर्टन ने AI के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया है, जिसे लोगों को चिंताए बढ़ी हुई है.दरअसल, इस अध्‍ययन में कहा गया है कि एआई हमारी बौद्धिक क्षमता को कम कर रहा है यानी हमें ‘मंदबुद्धि’ बना रहा है.

IQ लेवल हो रहा कम

स्‍टडी से पता चला है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के कारण हमारा आईकू (IQ) यानी इंटेलिजेंस कोसेंट लेवल कम हो रहा है. वहीं, ज्‍यादातर लोग एक लिमिट तक ही कुछ सोच पाते हैं, बहुत से लोग बिना पेपर और पेन या फिर कैल्कुलेटर के कैल्कुलेशन नहीं कर पाते हैं और तो और ज्यादातर लोग अब मोबाइल नंबर या फिर एक हफ्ते में बनाई गई सूची तक को याद नहीं रख पाते हैं.

डिवाइस पर बढ़ी निर्भरता

हमारे फोन तो स्मार्ट हो गए हैं, लेकिन हमारी स्मार्टनेस लगातार कम हो रही है. ChatGPT या Google Gemini जैसे AI टूल के आने के बाद हमारे लिए ये सवाल और भी अहम हो गए है कि क्‍या हम अपने जीवन को आसान बनाने के लिए इन डिवाइसेज पर निर्भर रहकर खुद को अधिक बुद्धिमान मूर्ख बना रहे हैं? या अपनी वर्क स्किल बढ़ाने के चक्कर में अज्ञानता के खई में जा रहे है.

रिपोर्ट के मुताबिक, इन जेनरेटिव एआई का यूज करीब 30 करोड़ लोग हर सप्ताह कर रहे हैं. वहीं, ‘माइक्रोसॉफ्ट’ और अमेरिका के कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स की एक टीम द्वारा हाल ही जारी किए गए एक शोधपत्र के मुताबिक, उपरोक्‍त सभी सवालों के जवाब हां में हो सकता है, लेकिन‍ इससे आगे तक जा पहुंची है. अच्छी सूझबूझ का रिसर्चर्स ने मूल्यांकन किया कि यूजर्स अपनी एनालिटिकल सोच पर एआई के प्रभाव को कैसे समझते हैं.

क्या है एनालिटिकल थिंकिंग?

आमतौर पर एनालिटिकल थिंकिंग का संबंध अच्छी तरह से सोचने से होता है, जिसका सबसे अच्‍छा तरीका है कि हम अपनी खुद की विश्लेषणात्मक प्रक्रियाओं को स्थापित मानदंडों और अच्छे तर्कों के आधार पर आंकें और इन मानदंडों में तर्कों की सटीकता, स्पष्टता, गहनता, प्रासंगिकता, महत्व व तार्किकता जैसे मूल्य शामिल हैं.

बता दें कि एनालिटिकल और क्रिटिकल थिंकिंग की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकने वाले अन्य कारणों में हमारे मौजूदा वैश्विक दृष्टिकोण का प्रभाव, संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह तथा अधूरे या गलत मानसिक तंत्रों पर निर्भरता शामिल हैं. वहीं, हाल ही में किए गए अध्ययन के लेखकों ने अमेरिकी शैक्षिक मनोवैज्ञानिक बेंजामिन ब्लूम और उनके सहयोगियों द्वारा 1956 में पेश की गई विश्लेषणात्मक सोच की परिभाषा को अपनाया है.

लगतार प्रयोग है खतरनाक

जानकारों का मानना है कि एआई में अधिक विश्वास करने का मतलब है विश्लेषणात्मक सूझबूझ का कम होना है. स्‍टडी से पता चला है कि “एआई के लगातार इस्‍तेमाल और विश्लेषणात्मक सोच की क्षमताओं के बीच महत्वपूर्ण नकारात्मक सह-संबंध हैं.’’

आपको बता दें कि इस नई स्टडी में स्वास्थ्य सेवा व्यवसायी, शिक्षक और इंजीनियर जैसे 319 नॉलेज बेस्ड लोगों के साथ यह सर्वे किया गया, जिन्होंने एआई की मदद से किए गए 936 कार्यों पर चर्चा की. जिसमें पता चला है कि यूजर्स काम करने के दौरान विश्लेषणात्मक सोच का कम उपयोग करते हैं.

एनालिटिकल सोच का कम इस्तेमाल करते है ये लोग

इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जिन लोगों ने एआई पर अधिक भरोसा जताया वे सामान्यतः एनालिटिकल सोच का कम इस्तेमाल करते हैं, जबकि जिन लोगों को स्वयं पर अधिक भरोसा था, उनकी सोचने-समझने की क्षमता काफी अच्छी थी. इससे पता चलता है कि एआई किसी की एनालिटिकल क्षमता को नुकसान नहीं पहुंचाता है- बशर्ते वह व्यक्ति शुरू से ही इसमें माहिर हो.

अपनी सूझबूझ को बरकरार रखें

हाल ही में किए गए इस अध्‍ययन के मुताबिक, यह भी कहा जा सकता है कि‘जनरेटिव एआई’ आपकी एनालिटिकल क्षमता को भले नुकसान न पहुंचाए, लेकिन यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि इसका इस्तेमाल करने से पहले आप अपनी सूझबूझ को बरकरार रखें. इसके लिए हमें सावधान रहने की जरूरत है ताकि हम अपनी क्रिटिकल थिंकिंग की क्षमताओं को बरकरार रख सके.

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