Meri Baat Article: पश्चिम का ‘पाकिस्तान’ बन रहा कनाडा

Upendrra Rai
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Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network
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Saturday Special Article: इतिहास ऐसे अनेक वृत्तांतों से भरा पड़ा है जहां सत्ता की भूख सत्ताधीशों की मति भ्रष्ट करने की वजह बनी है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इसकी ताजा मिसाल साबित हो रहे हैं। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर दिख रही ट्रूडो की बदहवासी इसका बड़ा सबूत है। ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि इस हत्या के पीछे भारत का हाथ है। ट्रूडो के अपने देश की संसद को इस कथित ‘विश्वसनीय खुफिया सूचना’ के बारे में जानकारी दिए हुए एक सप्ताह से ज्यादा समय बीत चुका है और इस अवधि में दोनों देशों के रिश्ते बद से बदतर हो गए हैं। पहले कनाडा ने विदेशी हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए भारत के एक वरिष्ठ राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश दिया। इसके अगले ही दिन भारत ने भी कनाडा के एक राजनयिक को वापसी का आदेश थमा दिया। फिर सुरक्षा चिंताओं को लेकर वहां रह रहे भारतीय नागरिकों को एडवाइजरी जारी करने के साथ ही भारत ने कनाडा में वीजा सेवाओं को निलंबित कर दिया और कनाडा को भारत में अपने राजनयिकों की संख्या घटाने के लिए कह दिया। 

संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इस विवाद पर परोक्ष रूप से भारत का पक्ष जोरदार तरीके से रखा है। जयशंकर ने साफ कहा कि ‘निश्चित रूप से वे दिन बीत गए हैं जब कुछ देश एजेंडा तय करते थे और फिर उम्मीद करते थे कि दूसरे भी उनकी बातें मान लें। क्षेत्रीय अखंडता के प्रति सम्मान और अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप की कवायद अब चुनिंदा तरीके से नहीं की जा सकती।’ संदेश स्पष्ट है। निज्जर की हत्या का प्रसंग भले ताजा है लेकिन इसका संदर्भ पुराना है। पिछले कुछ साल में कनाडा में भारत को लक्षित करने वाली अलगाववादी ताकतों से जुड़े काफी संगठित अपराध हुए हैं। प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस के मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू के लिए भी कनाडा की सहानुभूति सवालों में रही है। पन्नू ने अब 5 अक्टूबर से भारत में शुरू हो रहे क्रिकेट वर्ल्ड कप को खुलेआम आतंकवाद वर्ल्ड कप बनाने की धमकी दी है। भारत सरकार की ओर से ऐसे तत्वों पर कार्रवाई की लगातार मांग की गई है, वहां मौजूद कई गैंगस्टरों के बारे में जानकारी दी गई है, प्रत्यर्पण के कई अनुरोध किए गए हैं लेकिन कनाडा की सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।

निज्जर मामले पर छिड़े कूटनीतिक विवाद में भी दुनिया इस बात को लेकर हैरान है कि आखिर यह निज्जर कौन है जिसे कनाडा भारत से अपने संबंधों से ज्यादा अहमियत दे रहा है। निज्जर भारत के वांछित खालिस्तानी आतंकवादियों में से एक था। वह खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) का प्रमुख और भारत में वांटेड था। इसके बावजूद दिलचस्प बात यह है कि ट्रूडो और कनाडाई विदेश मंत्री दोनों ने अपने बयानों में उसे कनाडाई नागरिक बताया है। उसे यह नागरिकता कब और कैसे मिली, यह खुफिया एजेंसियों के सामने भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। दरअसल, ट्रूडो की इस हिमाकत की वजह सत्ता की वह भूख है जिसका जिक्र मैंने इस लेख की शुरुआत में किया है। साल 2025 में कनाडा में आम चुनाव होने हैं और अपनी सरकार बचाने के लिए खालिस्तानियों का समर्थन ट्रूडो की मजबूरी है। साल 2021 में हुए चुनाव में ट्रूडो की पार्टी को बहुमत नहीं मिला था और सरकार बनाने के लिए उन्हें जगमीत सिंह की अगुआई वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन लेना पड़ा था। जगमीत सिंह को कनाडा में खालिस्तानी समर्थक नेता माना जाता है।

उसने निज्जर को ‘न्याय’ दिलाने की कसम खाई है। इसलिए उसके समर्थन की बैसाखी पर चल रहे ट्रूडो भी उसके सुर में सुर मिला रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में कनाडा में सिखों की बड़ी आबादी को भी ट्रूडो के रुख का आधार बनाया जा रहा है जबकि हकीकत में अमन पसंद सिख कौम दुनिया में कहीं भी आतंक के समर्थन में खड़ी नहीं दिखती। मौजूदा परिस्थितियां असल में इस बात का इशारा हैं कि अपनी कुर्सी बचाने के लिए ट्रूडो ने भी वही राह पकड़ी है जिस पर चल कर पाकिस्तान दशकों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। जिस तरह पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दा सियासी प्राणवायु का काम करता है, उसी तरह खालिस्तान का मसला कनाडा की राजनीति में महत्वपूर्ण होता जा रहा है। दिलचस्प बात यह भी है कि निज्जर की हत्या के तार भी पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं। ऐसी खबरें हैं कि आईएसआई ने भारत और कनाडा के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बनाने के लिए निज्जर की हत्या की साजिश रची है। आईएसआई निज्जर पर पिछले दो साल से कनाडा पहुंचे पाकिस्तानी गैंगस्टरों का समर्थन करने का दबाव बना रही थी लेकिन उसका झुकाव पूर्व खालिस्तानी नेताओं की ओर था। निज्जर की हत्या के बाद आईएसआई अब उसके विकल्प की तलाश कर रही है और कनाडा में खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों को इकट्ठा करने की तैयारी कर रही है।

हालांकि भारत में एनआईए की कार्रवाई के बाद इस ऑपरेशन को फिलहाल टाल दिया गया है और इस मिशन से जुड़े 15 प्रमुख खालिस्तानी आतंकियों को ईरान सीमा से सटे पाकिस्तानी सेना के सेफ हाउस में शिफ्ट कर दिया गया है। अगर बात वाकई इतनी आगे जा चुकी है तो सत्ता बचाने के चक्कर में ट्रूडो निश्चित ही आग से खेल रहे हैं। और इस बात को उनके अलावा पूरी दुनिया समझ रही है। अपने घर में वे पूर्व सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री कैश हीड और अपनी ही पार्टी के नेता रमेश संघा जैसे लोगों के निशाने पर हैं, तो भारत के पड़ोसी श्रीलंका और बांग्लादेश भी उनकी आतंक को समर्थन देने वाली राजनीति पर सवाल उठा रहे हैं। कनाडा ने दावा किया था कि एस जयशंकर से एंटनी ब्लिंकन की मुलाकात में उसका दोस्त अमेरिका यह मुद्दा जरूर उठाएगा, लेकिन अमेरिका ने भी उसे अंगूठा दिखा दिया है। बैठक के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में इस दावे की पोल खोलते हुए साफ कर दिया कि दोनों नेताओं के बीच भारत की जी-20 प्रेसिडेंसी, इंडिया-मिडिल ईस्ट कॉरिडोर के अलावा ट्रेड, डिफेंस, स्पेस और क्लीन एनर्जी पर बात हुई यानी ये मुद्दा चर्चा में ही नहीं आया।

ऐसे में यह विवाद अब किस ओर जाता दिख रहा है? जाहिर है अगर कनाडा कड़े बयान देना जारी रखता है और आगे भी सीधे भारत पर आरोप लगाता है, तो यह पश्चिमी सरकारों, विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक अनूठी चुनौती पेश करेगा। हाल के जी-20 शिखर सम्मेलन में जिस तरह से पश्चिम ने दिल्ली का समर्थन किया, वह स्पष्ट संकेत है कि चीन के संदर्भ में भारत अब पूरी दुनिया की आवश्यकता बन गया है। जाहिर है भारत और कनाडा के बीच चयन करने की स्थिति किसी रणनीतिक सिरदर्द से कम नहीं होगी। ये इस बात से भी साफ है कि इस मसले पर अब तक सभी देशों की ओर से सोची-समझी संतुलित प्रतिक्रिया ही सामने आई है। लेकिन क्या कनाडा भी इस तरह की समझदारी दिखा पाएगा? हालांकि अमेरिका से झटका मिलने के बाद कनाडा के सुर थोड़े नर्म जरूर हुए हैं। ट्रूडो ने भारत के साथ अपने ‘घनिष्ठ संबंध’ बनाने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। मॉन्ट्रियल में एक संवाददाता सम्मेलन में ट्रूडो ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह बेहद महत्वपूर्ण है कि कनाडा और उसके सहयोगी विश्व मंच पर भारत के बढ़ते महत्व को देखते हुए उसके साथ रचनात्मक और गंभीरता से जुड़ते रहें। उम्मीद की जानी चाहिए कि ट्रूडो अपने वक्तव्य का मान रखते हुए भविष्य में कथनी और करनी में फर्क नहीं करेंगे।

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