Saturday Special Article: चोर चोरी से जाए, सीनाजोरी से न जाए। कहावत पुरानी है, लेकिन हमारे पड़ोसी चीन से जुड़े बार-बार के नए संदर्भों पर एकदम सटीक बैठती है। अब तक चीन एलएसी के पास चोरी-चुपके सीनाजोरी करता था, लेकिन अबकी बार उसने एक प्रोपेगेंडा नक्शा जारी कर संप्रभुता की प्रतीक हमारी सीमाओं के अंदर की जमीन पर आधिकारिक रूप से दावा ठोकने की हिमाकत की है। इस नक्शे में चीन ने अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। चीन ने भारत के साथ-साथ फिलीपींस और मलेशिया की सरहद में भी इस तरह की फर्जी घुसपैठ करने की कोशिश की है। भारत समेत इन दोनों देशों ने भी चीन की इस हरकत पर कड़ी आपत्ति दर्ज करवाई है।
चीन की सीनाजोरी देखिए कि वो इसे दक्षिण चीन सागर पर उसकी मानक स्थिति को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ाने की एक नियमित प्रक्रिया बता रहा है और उस पर आपत्ति उठाने वाले देशों को उल्टा इसे तर्कसंगत दृष्टिकोण से देखने की नसीहत दे रहा है। साफ तौर पर सोची-समझी साजिश दिख रही इस हरकत को आधारहीन बताते हुए भारत ने वाजिब तौर पर इस दावे को खारिज किया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे बेतुका बताते हुए ठीक ही कहा है कि दूसरे देशों के क्षेत्रों को नक्शे में अपना क्षेत्र बताना चीन की पुरानी आदत रही है। इसी साल अप्रैल में चीन ने एकतरफा रूप से अरुणाचल प्रदेश में 11 भारतीय स्थानों का नाम बदल दिया था और चीनी, तिब्बत और पिनयिन भाषा में नामों की लिस्ट जारी की थी जिसमें मैदानी और रिहायशी इलाकों के साथ ही नदियों और पहाड़ों की चोटियों को भी शामिल किया था। इससे पहले भी चीन ने साल 2021 में 15 और साल 2017 में छह स्थानों के नाम बदले थे। हालांकि भारत हर मौके पर चीन के इन दावों को मजबूती से खारिज करता रहा है।
हैरानी की बात ये है कि कुछ दिन पहले ही ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सीमा पर तनाव कम करने के प्रयासों को तेज करने पर सहमति जताई थी। इसके बाद ये माना जा रहा था कि सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 19 दौर की बातचीत के बाद देर से ही सही, चीन ने वस्तुस्थिति को स्वीकार करते हुए सही दिशा में कदम बढ़ाया है। लेकिन ताजा विवाद बताता है कि चीन एक बार फिर खुद की बनाई तिकड़मी छवि से बाहर नहीं निकल पाया है। साल 2012 में सत्ता में आने के बाद से ही जिनपिंग पर वैश्विक महाशक्ति बनने का जुनून सवार रहा है जिसके लिए चीन ने एक आक्रामक विदेश नीति को आगे बढ़ाया है और जिससे पूरा एशिया प्रभावित होता रहा है। दरअसल, चीन की यह रणनीति उसके आर्ट ऑफ वॉर यानी युद्धकला का एक प्रमुख आधार है। इसकी बुनियाद चीन के सैन्य रणनीतिकार सुन जू का सिद्धांत है, जिसके तहत चीन दुश्मन से निपटने के लिए ऐसी तैयारी करता है कि बिना आमने-सामने का युद्ध लड़े प्रतिद्वंद्वी पर दबाव डाल कर उसे इस कदर घेरा जाए कि वह खुद बिखर जाए या सरेंडर कर दे।
चीन की इस रणनीति को लेकर भारत के पास चिंता करने की कई वजह हैं। जिस दिन चीन का यह कथित ‘मानक’ नक्शा सुर्खियों में आया, उसी दिन सैटेलाइट तस्वीरों से इस बात का भी खुलासा हुआ कि एलएसी से केवल 70 किलोमीटर दूर अक्साई चिन में चीन बंकरों और भूमिगत सुविधाओं के निर्माण में काफी आगे बढ़ चुका है। तस्वीरों से पता चलता है कि दिसंबर, 2021 के बाद से बीते करीब 20 महीनों में ही चीन ने कम-से-कम तीन क्षेत्रों में बंकरों का निर्माण किया है और तीन अन्य क्षेत्रों में सुरंग जैसी भूमिगत सुविधाएं बनाने की गतिविधि की है। निर्माण की यह तमाम गतिविधियां लगभग 15 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हुई हैं। कुछ महीने पहले इस बात का भी खुलासा हो चुका है कि इस क्षेत्र में नए रनवे और युद्धक विमानों की सुरक्षा के लिए शेल्टर बना कर चीन एयरबेस का विस्तार कर रहा है।
दूसरी तरफ चीन भूटान के साथ अपनी सीमा वार्ता को भी तेजी से आगे बढ़ा रहा है जिसका मकसद उसे डोकलाम को जल्द से जल्द औपचारिक और आधिकारिक तौर पर चीन को सौंपने के लिए मजबूर करना है। डोकलाम, जो अब तक भूटान का हिस्सा रहा है, चीन और भारत दोनों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यदि चीन डोकलाम पर कब्जा कर लेता है, तो हमारा 22 किलोमीटर लंबा ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ सीधे-सीधे उसके हमले की जद में आ जाता है और पूरा का पूरा पूर्वोत्तर खतरे में पड़ सकता है। डोकलाम की सीमा इस कॉरिडोर से सटी हुई है, जिसे अपनी पतली पट्टी जैसी बनावट के कारण ‘चिकेन नेक’ के रूप में भी जाना जाता है और जो समूचे पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ता है। यदि पूर्वोत्तर को शेष भारत से काट दिया जाता है, तो चीन आसानी से अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर सकता है, जिस पर वो अवैध रूप से दक्षिण तिब्बत के विस्तार के रूप में दावा करता रहा है।
सवाल ये है अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन बार-बार ऐसी हिमाकत क्यों कर रहा है? क्या इसके पीछे उसकी ये सोच है कि भारत हर वैश्विक मंच पर उस पर भारी पड़ने लगा है? क्या उसे ये लगता है कि चीन के खिलाफ हर एक चक्रव्यूह में हिंदुस्तान बड़ी भूमिका अदा कर रहा है? या फिर ये सोच है कि चीन आने वाले दिनों में आर्थिक तौर पर भी भारत से पिछड़ सकता है? आर्थिक मोर्चे पर एशिया में चीन को अब भारत से सबसे बड़ी चुनौती मिल रही है। चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे वर्ष तेज गति से आगे बढ़ रही है। इस वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7 फीसदी वृद्धि दर होने का अनुमान है जबकि चीन की अर्थव्यवस्था में महज 3 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान है। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की ‘बीएए3’ रेटिंग को बरकरार रखा है और कोरोना की मार के बाद चीन की अर्थव्यवस्था को सबसे खराब दौर में बताया है। चीन से निवेशक धीरे-धीरे दूरी बना रहे हैं तो भारत 3 ट्रिलियन इकॉनमी के साथ तेज गति से आगे बढ़ रहा है।
जिस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के कारण चीन को दुनिया का ‘ग्रोथ इंजन’ कहा जाता रहा है, उसमें अगस्त में लगातार पांचवें महीने गिरावट आई, जो बताता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए परेशानियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। वैश्विक मांग में गिरावट के साथ-साथ घरेलू उपभोक्ता खर्च में कमी के कारण चीन की फैक्ट्रियां महीनों से संघर्ष कर रही हैं। इसके कारण चीन को मार्च महीने में अपने आधिकारिक सकल घरेलू उत्पाद लक्ष्य को भी घटाकर केवल 5 फीसद करना पड़ा जो उसके लड़खड़ाते विकास का एक और प्रमाण है। लेकिन ये उपाय भी उसके बीमार उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं कर पा रहे हैं और इसमें उसका विशाल, ऋणग्रस्त रियल एस्टेट सेक्टर भी शामिल है। चीन का रियल एस्टेट देश के कुल उत्पादन का करीब 30 फीसद है। साल 2021 के बाद से 50 से ज्यादा चीनी रियल-एस्टेट कंपनियां ध्वस्त हो चुकी हैं, जिसके कारण वैश्विक बाजार का चीन से भरोसा उठ गया है।
एक तरफ वैश्विक सप्लाई चेन में बढ़ रही हिस्सेदारी, अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर सकारात्मक बदलाव और शेष विश्व के साथ मैत्री संबंध भारत की स्थिति को मजबूत कर रहे हैं तो विस्तारवादी नीति, कर्ज के जाल में छोटे और गरीब देशों को फंसाने की चाल और कई देशों से मोल ली गई दुश्मनी ने चीन की हालत पतली कर रखी है। लेकिन चीन है कि अपनी गलतियों से कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि वर्षों से अलग-अलग देशों के खिलाफ रची जा रही साजिशों और अकड़ के कारण अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपने नक्शे में शामिल करने को भी वह गलती मानने से इनकार कर रहा है।