Saturday Special Article: तमाम उम्मीदों पर खरा उतरते हुए नया भारत एक बार फिर अपने खाते में आई महत्वपूर्ण वैश्विक जिम्मेदारी को निभाने में प्रभावी रूप से सफल हुआ है। केवल सफल ही नहीं हुआ है, वरन भारत ने विश्व को नई दिशा देने और इसके लिए नए कदम उठाने का हौसला देने में भी महत्वपूर्ण कामयाबी दर्ज की है। संदर्भ पिछले सप्ताह देश की राजधानी नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन का है जिसमें भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अपने एक वर्षीय अध्यक्षीय कार्यकाल का बेहद ही जिम्मेदार, गौरवपूर्ण और गरिमामय तरीके से समापन किया।
यूक्रेन में रूस के युद्ध से दुनिया के सबसे प्रमुख आर्थिक मंच को कमजोर किए बिना एक आम सहमति बनाना इस सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। जब शिखर सम्मेलन शुरू हुआ था तो यह लक्ष्य ऐसी मृगतृष्णा लग रहा था जिसका अक्स आंखों में तो समाया था पर वो हाथों की पहुंच से ओझल था। लेकिन दो दिनों में 200 घंटों की सतत वार्ता, राजनयिकों के बीच 300 द्विपक्षीय बैठकों और 15 मसौदों के बाद आखिरकार भारत बीते कुछ वर्षों से विषम से विषम परिस्थिति में भी हार नहीं मानने और असंभव को भी संभव कर दिखाने की अपनी नई पहचान को सार्थक करने में एक बार फिर सफल रहा।
नई दिल्ली घोषणापत्र में यूक्रेन के खिलाफ युद्ध के लिए रूस की किसी भी सीधी आलोचना से परहेज किया गया। विरोधाभासी विचारों के कारण दिल्ली में इस विषय पर बातचीत में बार-बार गतिरोध पैदा हुआ और शिखर सम्मेलन शुरू होने से एक दिन पहले तक आम सहमति पर काम किया गया। बेशक यह रूस के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है क्योंकि पश्चिमी देशों ने पिछले साल बाली में हुए जी-20 अधिवेशन में उसकी निंदा में कहीं अधिक कठोर भाषा का उपयोग किया था, लेकिन इस कदम से हमारी प्रतिष्ठा और भी चमकदार हुई है क्योंकि भारत दुनिया को यह संदेश देने में कामयाब रहा है कि वह केवल खुद के लिए नहीं बल्कि अपने दोस्तों की बेहतरी के लिए भी संकल्पित है।
ऐसा और भी बहुत कुछ है जिसके लिए नई दिल्ली का शिखर सम्मेलन याद रखा जाएगा। जी-20 में अफ्रीकी संघ को समूह के स्थायी सदस्य के रूप में मान्यता दिलवाने के भारत के एक और प्रमुख एजेंडे को भी मंजूरी मिल गई। इस कदम ने विश्व मंच पर ग्लोबल साउथ से विकासशील देशों की आवाज को बढ़ाने के भारत के प्रयासों को मजबूती दी है। साथ ही यह निर्णय अफ्रीकी महाद्वीप के 1.4 अरब लोगों के लिए भी एक बड़ी छलांग है, जिनका अब प्रमुख आर्थिक मंच पर व्यापक प्रतिनिधित्व होगा। 55 सदस्यीय ब्लॉक में से केवल दक्षिण अफ्रीका ही अब तक जी-20 का सदस्य था।
भारत के नजरिये से सबसे महत्वपूर्ण पहल तो अमेरिका और सऊदी अरब के साथ हुआ महत्वाकांक्षी समझौता है जिसमें आने वाले समय में चीन को जवाब देने और वैश्विक संतुलन में बड़ा बदलाव लाने का माद्दा दिख रहा है। इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकॉनमिक कॉरिडोर या भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा नाम की यह विशाल परियोजना रेलवे, बंदरगाहों, बिजली, डेटा नेटवर्क और हाइड्रोजन पाइपलाइनों की स्थापना करके मध्य-पूर्व के रास्ते एशिया और यूरोप को जोड़ेगी। पूरा हो जाने पर यह परियोजना चीन की बरसों से चली आ रही बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को टक्कर देगी। प्रचलन के तौर पर इस परियोजना को ‘स्पाइस रूट’ कॉरिडोर का नाम दिया गया है जिसमें भारत और यूरोप के बीच व्यापार को 40 फीसद ऊपर ले जाने की संभावना है। उम्मीद है कि इस गलियारे के खुलने से न केवल भारत से मिस्र और लाल सागर तक प्राचीन व्यापार मार्ग पुनर्जीवित हो जाएंगे, बल्कि इसके साथ आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के वैश्विक केन्द्र के रूप में भारत का गौरव भी नए सिरे से प्रतिस्थापित होगा।
जी-20 के इतिहास में नई दिल्ली शिखर सम्मेलन को जलवायु परिवर्तन को लेकर शायद सबसे मजबूत, सक्रिय और महत्वाकांक्षी सहमति तैयार करने के लिए भी याद रखा जाएगा। सम्मेलन में जी-20 नेता साल 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा में अपने निवेश को तीन गुना करने और जलवायु संकट से प्रेरित आपदाओं के लिए निवेश बढ़ाने के प्रयास करने पर सहमत हुए हैं। हालांकि कोयले को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के मौजूदा दृष्टिकोण को बरकरार रखा गया है जो जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता का एक बड़ा संकेत है। बहुतों को साल 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना करना एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य लग रहा है लेकिन साल 2015 से 2022 तक वार्षिक क्षमता की वृद्धि को देखें तो यह दोगुनी से अधिक हो गई है। ऐसे में गंभीर प्रयास किए जाएं तो अगले सात वर्षों में यह लक्ष्य भी पहुंच से बाहर नहीं होना चाहिए।
जी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता यकीनन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व के सामर्थ्य को दर्शाती है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि यह सम्मेलन भारत के लिए एक आश्चर्यजनक कूटनीतिक सफलता का माध्यम बना है और इस उपलब्धि का उत्सव मनाने में देश का राजनीतिक विपक्ष भी खुले मन से प्रधानमंत्री का यशोगान कर रहा है। शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले हर कोई यह मान बैठा था कि यूक्रेन में युद्ध के संबंध में भाषा को लेकर एक ओर पश्चिमी देश और दूसरी ओर रूस और चीन के बीच तीव्र मतभेदों को देखते हुए जी-20 के इतिहास में पहली बार कोई आम सहमति नहीं बन पाएगी। जी-20 पर खर्च की गई भारी राजनीतिक पूंजी और प्रधानमंत्री के साथ इसके सीधे जुड़ाव के बाद निश्चित ही इसे नेतृत्व की विफलता के रूप में देखा जाता। लेकिन जैसे हम बार-बार ‘मोदी है तो मुमकिन है’ को साकार होते देखते आए हैं, इस बार भी ठीक वैसा ही हुआ। प्रधानमंत्री एक बार फिर यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि बाकी दुनिया अब भारत के लिए रोड़े खड़े करने की स्थिति में नहीं है, बल्कि आज की तारीख में भारत आगे बढ़कर दुनिया के लिए रास्ते बनाता है। आज दुनिया का बड़े से बड़ा नेता व्यापक चर्चा के लिए एजेंडा तय करने की प्रधानमंत्री मोदी की क्षमता का कायल है।
इस दिशा में वैश्विक नेताओं की उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं भी इस बात का संकेत है कि आज दुनिया भारत से किस तरह की उम्मीदें जोड़ रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बिना लाग-लपेट के कहा है कि भारत की अध्यक्षता में इस साल का जी-20 शिखर सम्मेलन दुनिया को यह भरोसा दिलाने में सफल रहा है कि यह समूह अपने सबसे अहम मुद्दों का समाधान निकालने में पूर्व के मुकाबले और सक्षम हुआ है। दूसरी ओर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी ‘ग्लोबल साउथ’ की ताकत और महत्व बढ़ाने में भारत की भूमिका का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि दुनिया सत्ता के नए केन्द्र को उभरते देख रही है। वहीं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भारत को जी-20 की अध्यक्षता के लिए सही समय पर सही देश बताया है।
वैश्विक कूटनीति के संदर्भ में यह भारत को लेकर आया एक बड़ा बदलाव है और इसका श्रेय पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ही जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की यह दृढ़ मान्यता रही है कि जो देश गुलामी की मानसिकता को पीछे छोड़कर स्वतंत्र होने के स्वाभिमान के साथ आगे बढ़ना शुरू करता है, उसका कायाकल्प भी शुरू हो जाता है। जी-20 शिखर सम्मेलन ने साबित किया है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज का भारत कायाकल्प की दिशा में रफ्तार पकड़ चुका है। ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ की थीम के साथ शुरू हुए शिखर सम्मेलन में वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका जिस नए प्रकाश से आलोकित हुई है, उसके बाद इस सम्मेलन की थीम में ‘वन लीडर’ को भी जोड़ दिया जाए तो यह बिल्कुल अप्रासंगिक नहीं होगा।