Nazariya Article: चीन पर ‘बीस’ भारत

Upendrra Rai
Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network

Sunday Special Article: नई दिल्ली इस समय केवल भारत की नहीं, दुनिया की भी राजधानी बनी हुई है। पृथ्वी के सबसे सुरक्षित, सबसे समृद्ध और सबसे संभावनाशील वैश्विक केन्द्र वाली भारत की यह नई तस्वीर जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी की वजह से बनी है जिसमें वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए दुनिया के तमाम दिग्गज देशों के नेता दिल्ली में जुटे हैं। जी-20 में शामिल देशों को एक साथ मिला जाए तो ये वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 फीसद, वैश्विक व्यापार का 75 फीसद से अधिक और विश्व जनसंख्या में लगभग दो-तिहाई हिस्सेदारी करते हैं। इतने बड़े वैश्विक प्रतिनिधित्व को एक सूत्र में पिरोने, एकजुट होकर एक नजर से देखने की इस कवायद से भारत को विश्व मंच पर जिस तरह की अहमियत मिल रही है, वैसी कई विश्व शक्तियों को भी अब तक नसीब नहीं हुई है। चीन का मामला भी ऐसा ही दिखता है जो भारत के बढ़ते कद को पचा नहीं पा रहा है। शायद इसलिए ही चीन ने इस सम्मेलन को कमतर दिखाने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग का दिल्ली दौरा रद्द कर उनकी जगह अपने प्रधानमंत्री ली कियांग को भेजा है। 

वैसे शिखर सम्मेलनों में राष्ट्र प्रमुखों का नहीं आना कोई असामान्य बात नहीं है, पहले भी कई नेता ऐसा कर चुके हैं। लेकिन जिनपिंग का विषय अलग है। मार्च, 2013 में चीन की सबसे ऊंची गद्दी संभालने के बाद से जिनपिंग जी-20 के हर सालाना आयोजन में सशरीर उपस्थित होते रहे हैं। साल 2021 में इटली में हुआ शिखर सम्मेलन एकमात्र अपवाद है, लेकिन उसकी वजह कोविड महामारी के कारण बनी असाधारण परिस्थितियां थीं। हालांकि G-20 सम्मेलन में दिल्ली नहीं आने वाले राष्ट्र प्रमुखों में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी हैं, लेकिन पुतिन और जिनपिंग को एक पलड़े पर रखकर नहीं देखा जा सकता। भारत और रूस का रिश्ता समय, काल और परिस्थिति की हर चुनौती पर खरा उतरा है। जी-20 के लिए भारत नहीं आने से पहले पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बात की थी और चंद्रयान-3 की सफलता पर बधाई भी दी थी। लेकिन चीन की ओर से रस्मी राजनीतिक शिष्टाचार भी नहीं निभाया गया। अनौपचारिक बातचीत तो दूर, जिनपिंग के सम्मेलन में नहीं आने को लेकर कोई औपचारिक बयान भी जारी नहीं हुआ। 

तस्वीर को बड़ी करके देखें, तो भारी उथल-पुथल से भरे समय में अब तक के सबसे हाईप्रोफाइल अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में से एक की मेजबानी करके भारत ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि हम बड़ा सोचने और वैश्विक नेतृत्व को लेकर अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तैयार हैं। दुनिया लंबे समय से भारत से इस भूमिका में आने की उम्मीद लगा रही थी। अब तो इसका परिणाम भी स्पष्ट है। वैश्विक मंच पर आत्मविश्वासी भारत की यह नई छवि दुनिया को अपनी शर्तों पर चलाने की कोशिश कर रहे चीन के लिए एक वास्तविक चुनौती बन गई है।

पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब रहे हैं, जैसा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में छिटपुट सैन्य झड़पों में देखा गया है। लेकिन यह व्यापक और हालिया सवाल है कि विकासशील दुनिया में कौन सा देश सबसे अधिक प्रभाव रखता है, वर्तमान को प्रधानमंत्री मोदी या राष्ट्रपति जिनपिंग में से कौन सा नेता अधिक प्रभावित करता है। इस मामले में हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण अधिक व्यापक दिखता है। केवल 2020 के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रा की सूची को देखें तो इस दौरान वह विश्व के कई प्रमुख नेताओं के साथ जुड़े हैं और उनकी मेजबानी कर चुके हैं। दूसरी तरफ घर में कोविड और अर्थव्यवस्था की कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए जिनपिंग की विदेश यात्राएं सीमित कर दी गई हैं। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत को रोकने की चीन की दशकों पुरानी रणनीति के विपरीत, भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप, अफ्रीका, ओशिआनिया और अमेरिका में अपने रणनीतिक संबंधों का विस्तार करना शुरू कर दिया है। इसने अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में चीन की स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से चुनौती दी है।

दूसरा बड़ा सिरदर्द है चीन की अर्थव्यवस्था जो बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। चीनी अर्थव्यवस्था अभी भी कोविड के झटके से नहीं उभरी है। कई दशकों में यह पहली बार है कि चीन की अर्थव्यवस्था को कई मोर्चों पर दबाव का सामना करना पड़ रहा है, इस हद तक कि पूरी दुनिया इससे घबरा गई है। चीन में हालत यह है कि पिछले साल की तुलना में चीनी परिवार कम खर्च कर रहे हैं, कारखाने कम उत्पादन कर रहे हैं और व्यवसाय में निवेश की गति थम सी गई है। दूसरे देशों की कंपनियों की बात छोड़िए, अब तो चीनी कंपनियां भी चीन के बाहर स्थानांतरित हो रही हैं। निर्यात में भी भारी गिरावट है। अगस्त में चीन के निर्यात में साल-दर-साल 8.8 फीसद और आयात में 7.3 फीसद की गिरावट आई। युवा बेरोजगारी में तेज वृद्धि के बीच प्रॉपर्टी की कीमतें गिर रही हैं और वहां कई प्रमुख डेवलपर्स ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया है, जिससे रियल एस्टेट क्षेत्र भी खतरे में पड़ गया है। चीन की पच्चीस फीसद अर्थव्यवस्था इसी रियल एस्टेट सेक्टर पर निर्भर है। चीन जिन मौजूदा आर्थिक बाधाओं का सामना कर रहा है, उससे दुनिया पर दबदबा बनाने वाले उसके 40 साल के सफल विकास मॉडल पर खात्मे का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर मजबूती से आगे बढ़ रहे भारत की ग्रोथ स्टोरी निश्चित ही चीन को असहज कर रही है। चीन का कर्ज चुकाने में अफ्रीकी देशों की मदद हो, बेल्ट एंड रोड पहल का विरोध हो या एलएसी पर ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ के माध्यम से सीमावर्ती गांवों के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना हो, नया भारत हर मोर्चे पर चीन के विस्तारवादी मंसूबों के सामने दीवार बनकर खड़ा है। जाहिर है, इन सब वजहों से नए वर्ल्ड ऑर्डर में शीर्ष ओहदे की दावेदारी को लेकर चीन पहले के मुकाबले और भी ज्यादा सशंकित हुआ है। 

जी-20 शिखर सम्मेलन में जिनपिंग की अनुपस्थिति से यह तथ्य एक बार फिर स्थापित हुआ है कि वैश्विक व्यवस्था कितनी तेजी से बदल रही है और चीन उससे तालमेल बैठाने में लगातार नाकाम हो रहा है। जी-20 की साल भर की प्रक्रिया के दौरान यथासंभव बाधा डालने की कोशिशों के बावजूद भारत को हाशिए पर रखने के चीनी हथकंडे विफल ही रहे हैं। इसके उलट  वैश्विक व्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाने की भारत की प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में और मजबूत हुई है। लेकिन इन सबके बीच यह भी ध्यान रखना होगा कि यह चीन की चालबाजी का अंत नहीं है। अपनी फितरत के तहत वह भविष्य में भी बाधाएं पैदा करना जारी रखेगा लेकिन नया भारत ये संकेत दे रहा है कि वह उन तमाम बाधाओं से आगे बढ़ने के लिए केवल सक्षम ही नहीं, बल्कि आकांक्षी भी है।

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